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*आज का प्रेरक प्रसंग*

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*सोच का अंतर*

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        *एक अंधा लड़का एक इमारत की सीढ़ियों पर बैठा था*
          *उसके पैरों के पास एक टोपी रखी थी,पास ही एक बोर्ड रखा था, जिस पर लिखा था,"मैं अंधा हूँ,मेरी मदद करो"टोपी में केवल कुछ सिक्के थे वहां से गुजरता एक आदमी यह देख कर रुका,उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकले और टोपी में गिरा दिये,फिर उसने उस बोर्ड को पलट कर कुछ शब्द लिखे और वहां से चला गया,उसने बोर्ड को पलट दिया था जिससे कि लोग वह पढ़ें जो उसने लिखा था जल्द ही टोपी को भरनी शुरू हो गई*
       *अधिक से अधिक लोग अब उस अंधे लड़के को पैसे दे रहे थे,दोपहर को बोर्ड बदलने वाला आदमी फिर वहां आया,वह यह देखने के लिए आया था उसके शब्दों का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?अंधे लड़के ने उसके क़दमों की आहट पहचान ली और पूछा,"आप सुबह मेरे बोर्ड को बदल कर गए थे?आपने बोर्ड पर क्या लिखा था? उस आदमी ने कहा मैंने केवल सत्य लिखा था,मैंने तुम्हारी बात को एक अलग तरीके से लिखा"आज एक खूबसूरत दिन है और मैं इसे नहीं देख सकता आपको क्या लगता है?*
      *पहले वाले शब्द और बाद वाले शब्द,एक ही बात कह रहे थे?*
      *बेशक दोनों संकेत लोगों को बता रहे थे कि लड़का अंधा था*
       *लेकिन पहला संकेत बस इतना बता रहा था कि वह लड़का अंधा है,जबकि दूसरा संकेत लोगों को यह बता रहा था कि वे कितने भाग्यशाली हैं कि वे अंधे नहीं हैं. क्या दूसरा बोर्ड अधिक प्रभावशाली था? दोस्तों! यह कहानी हमें बताती है कि,जो कुछ हमारे पास है उसके लिए हमें आभारी होना चाहिए,रचनात्मक रहो,अभिनव रहो,अलग और सकारात्मक सोच रखो,लोगों को अच्छी चीजों की तरफ,समझदारी से आकर्षित करो,जीवन तुम्हे रोने का एक कारण देता है, तो तुम्हारे पास मुस्कुराने के लिए 10 कारण हैं*

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*आज का प्रेरक प्रसंग*
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*जो चाहोगे सो पाओगे*


*एक साधु था , वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता था ,”जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।”*

*बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीँ देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे।*




*एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसनेँ उस साधु की आवाज सुनी , “जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।” ,और आवाज सुनते ही उसके पास चला गया।*

*उसने साधु से पूछा -“महाराज आप बोल रहे थे कि ‘जो चाहोगे सो पाओगे’ तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मैँ जो चाहता हूँ?”*

*साधु उसकी बात को सुनकर बोला – “हाँ बेटा तुम जो कुछ भी चाहता है मैँ उसे जरुर दुँगा, बस तुम्हे मेरी बात माननी होगी। लेकिन पहले ये तो बताओ कि तुम्हे आखिर चाहिये क्या?”*

*युवक बोला-” मेरी एक ही ख्वाहिश है मैँ हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूँ। “*

*साधू बोला ,” कोई बात नहीँ मैँ तुम्हे एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने भी हीरे मोती बनाना चाहोगे बना पाओगे !”*

*और ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुए कहा , ” पुत्र , मैं तुम्हे दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं, लोग इसे ‘समय’ कहते हैं, इसे तेजी से अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे कभी मत गंवाना, तुम इससे जितने चाहो उतने हीरे बना सकते हो “*

*युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि साधु उसका दूसरी हथेली , पकड़ते हुए बोला , ” पुत्र , इसे पकड़ो , यह दुनिया का सबसे कीमती मोती है , लोग इसे “धैर्य ” कहते हैं , जब कभी समय देने के बावजूद परिणाम ना मिलेंटो इस कीमती मोती को धारण कर लेना , याद रखन जिसके पास यह मोती है, वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर सकता है। “*

*युवक गम्भीरता से साधु की बातों पर विचार करता है और निश्चय करता है कि आज से वह कभी अपना समय बर्वाद नहीं करेगा और हमेशा धैर्य से काम लेगा । और ऐसा सोचकर वह हीरों के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम शुरू करता है और अपने मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक दिन खुद भी हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनता है।*

*Friends, ‘समय’ और ‘धैर्य’ वह दो हीरे-मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। अतः ज़रूरी है कि हम अपने कीमती समय को बर्वाद ना करें और अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए धैर्य से काम लें।*
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बहुत मर्मस्पर्शी

*जन्मदिन का उपहार*

मैं सुचित्रा। आज मेरा जन्मदिन है।

सचिन ने सुबह ही कहा : *" आज कुछ बनाना नहीं। लंच के लिए हम बाहर चलेंगे। तुम्हारे जन्मदिन पर आज तुम्हें एक अनोखी ट्रीट मिलेगी। "*

10 साल हो गए हमारी शादी को। मैं सचिन को बहुत अच्छे से जानती हूँ। जीवन के अनोखे अनुभव देना, दुनिया से अलग कुछ मजेदार करना उसकी आदत में शुमार है।
दोनों बच्चे शाम 4 बजे स्कूल से लौटेंगे यानी लंच पर मैं और सचिन ही जाएँगे और बच्चों के आने से पहले लौट भी आएँगे।

दोपहर 12 बजे हम घर से निकले।
एक नए बने मॉल की पार्किंग में हमारी गाड़ी पहुँची। पार्किंग की लिफ्ट में हम दाखिल हुए और सचिन ने 5 वीं मंजिल का स्विच दबाया।
इस मंजिल पर खाने पीने के ढेरों स्टॉल्स थे लेकिन सचिन मेरा हाथ थामे उन सारे स्टॉल्स के सामने से आगे बढ़ता गया। फाइनली एक बंद द्वार पर हम पहुँचे। *द्वार पर एक बोर्ड लगा था, जिसपर लिखा था : “ Dialogue in the dark ”*

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। *" अंधेरे में संवाद " ? ये कैसा नाम है, रेस्टॉरेंट का ?*

द्वार ठेलकर हम अंदर पहुँचे। वो एक मध्यम आकार बिना चेयर टेबल्स वाला कमरा था। रिसेप्शन काउंटर के पीछे से तुरंत एक सूटबूटधारी बाहर आया और स्वागत भरे स्वर में हमसे बोला : *" वेलकम मिस्टर सचिन। हैप्पी बर्थडे टू यू मैडम। "*

मैं समझ गई कि, सचिन पहले ही सारी व्यवस्था कर चुका है। फिर सूटबूटधारी बोला : *" सर, मैडम, यू आर अवर स्पेशल गेस्ट टुडे। कहिए क्या लेंगे आप ? "*
उसने काउंटर पर से उठाकर एक मैनू कार्ड हमें दिया। सचिन ने कार्ड मुझे थमाया। *मुझे अजीब लगा। टेबल पर बैठने से पहले ही ऑर्डर देने की प्रथा मैंने पहली बार अनुभव की। बड़ा विचित्र लग रहा था सब कुछ। मुस्कुराते हुए सचिन, मेरे चेहरे पर आते जाते भावों को पढ़ जैसे आनंदित हो रहा था। फिर मैंने ऑर्डर दिया और वह आदमी हमें कमरे के एक अन्य दरवाजे पर ले गया और उसे खोला।*

सामने एक संकरा गलियारा नजर आया जिसपर 3 लोग एक साथ नहीं चल सकते थे। वो आदमी आगे बढ़ा और हम उसके पीछे। कुछ कदम बाद गलियारा दाएँ मुड़ गया। हम भी मुड़े। पीछे कमरे की जो थोड़ी बहुत रोशनी आ रही थी, वो भी खत्म हो गई। उस गलियारे में प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं थी। अगले मोड़ के बाद इतना अंधेरा हो गया कि, मैंने सचिन का हाथ पकड़ लिया और दूसरे हाथ को गलियारे की दीवार को महसूस करती आगे बढ़ती रही। सचिन मेरे हाथ पर दबाव बढ़ाकर जैसे मुझे सांत्वना दे रहा था। अगले *मोड़ के बाद हाथ को हाथ सुझाई देना भी बंद हो गया। आँखें फाड़ फाड़कर देखने के बाद भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन हवा ठंडी और खुशबूदार थी। फिर शायद हम एक हॉल में पहुँचे।*

उस आदमी ने किसी को आवाज लगाई : *" संपत। "*

*“ यस सर। ”* अंधेरे में ही जवाब मिला। फिर किसी के करीब आते कदमों की आवाज आई।

*“ ये आज के हमारे स्पेशल गेस्ट हैं। आज मैडम का बर्थडे है। गिव देम स्पेशल ट्रीट। ऑर्डर मैंने ले लिया है, तुम इन्हें इनकी टेबलपर लेकर जाओ। "*

*“ यस सर। ”* : अंधेरे में फिर वही आवाज एकदम करीब सुनाई दी।
अब उस दूसरे आदमी संपत ने हमारे हाथ थामे और हमें टेबल पर पहुँचाया। फिर चेयर सरकाने की आवाज आई और उसने मेरा हाथ चेयर की पीठ पर रखा। वैसे ही जरूर सचिन के साथ भी किया होगा।

हम बैठ गए। *मैंने सामने टेबल पर हाथ फिराया। जब टेबल ही नहीं दिख रहा तो खाना कैसे दिखेगा ? हम खाना कैसे खाएँगे ? ये सचिन की कैसी जग से निराली पार्टी है ? ये कैसा जन्मदिन का उपहार है ? ऐंसे न जाने कितने प्रश्न मेरे दिमाग में घुमड़ रहे थे। लेकिन मुझे सचिन पर भरोसा था। आज जरूर उसने मेरे लिए कुछ अलग, कुछ आश्चर्यजनक कर रखा है।*

फिर कोई आया और उसने हमारे हाथ धुलवाए। फिर टेबल पर प्लेट्स आदि सजाए जाने की आवाजें आने लगीं। वेटर्स का आना जाना समझ में आ रहा था। फिर *संपत ने मेरे हाथ प्लेट्स पर छुआए और उनकी पोजीशन बताई। चम्मच मेरे हाथ में पकड़ाया। फिर वो प्लेट्स में खाना सर्व करने लगा।*

सबकुछ सर्व होने के बाद वो बोला : *" मैंने परोस दिया है। अब आप लोग शुरू कीजिए। आपको कुछ दिखेगा नहीं लेकिन मुझे विश्वास है कि, स्पर्श और खुशबू से आपको खाने में एक अलग ही आनंद प्राप्त होगा। "*

उस घनघोर अंधेरे में मैंने रोटी तोड़ी, प्लेट में रखी सब्जी को लपेटा और पहला निवाला लिया। फिर ऐंसे ही अंदाज से 4-5 निवाले और खाए। उल्टे हाथ से मैंने प्लेट पकड़ी हुई थी अतः प्रत्येक पदार्थ की जगह सीधे हाथ के स्पर्श से मुझे ज्ञात हो रही थी।

और फिर, *आहा... अंधेरे में भी मैं बड़ी सहजता से भोजन कर पा रही थी। खाने के पदार्थ तो अपने स्वाद का मजा दे ही रहे थे लेकिन साथ ही इस अनोखे खेल में एक अलग ही आनंद की अनुभूति हम दोनों को ही हो रही थी।  सचिन ने किस पदार्थ का निवाला लिया ये मैं पूछ रही थी और ऐंसे ही सचिन मुझसे पूछता जा रहा था। कभी कभी हम दोनों का जवाब एक ही होता था तो कभी अलग। बहुत मजा आ रहा था।  उस स्याह अंधकार में, खुशबू, स्पर्श और आवाज बस यही काम कर रहे थे। बीच बीच में संपत, सब्जियाँ या अन्य कुछ और परोस देता।*

हमें *खुद नहीं समझ आ रहा था कि, प्लेट में कौन सा पदार्थ खत्म हुआ लेकिन संपत को शायद दिव्यदृष्टि प्राप्त थी, जो वो तुरंत समझ जाता और पुनः वह पदार्थ परोस देता।*
आखीर में *संपत स्वीट डिश लाया जो उसने हमारे हाथों में थमा दी।*

मेरा *जन्मदिन, अंधेरे में लंच, एक अनोखा आनंद दे गया। कदाचित कैंडल लाइट डिनर से भी अधिक आनंददायक रहा।*

*" आप जब, बाहर जाना चाहें तो बताइएगा। मैं आपको बाहर छोड़ आऊँगा। "* ---संपत ने कहा।

तो सचिन बोल पड़ा : *" हाँ.... हाँ.... अब चलो। बिल भी तो बाहर ही पे करना है। चलो संपत, ले चलो हमें। "*

फिर संपत ने हम दोनों के हाथ थामे और हमें बाहर को ले चला। अंधेरे हॉल से बाहर निकल हम गलियारे में पहुँचे तो दूसरा खाली हाथ स्वतः ही दीवार को छूने लगा।
दो मोड़ों के बाद प्रकाश दिखने लगा और हम संपत का हाथ छोड़ उसके पीछे चलते रहे।

फाइनली रिसेप्शन काउंटर वाले रूम में हम पहुँचे। सचिन बिल देने काउंटर पर पहुँचा और संपत लौटकर गलियारे की ओर बढ़ा। उसका आभार मानने के लिए मैंने उसे आवाज लगाई तो संपत पलटा और मेरी ओर देखने लगा।
तब कमरे के प्रकाश में मैंने संपत का चेहरा देखा और *मैं जहाँ की तहाँ खड़ी रह गई, मेरे मुँह से हल्की चीख निकल गई क्योंकि, संपत की आँखों की जगह दो अंधेरे गढ्ढे नजर आ रहे थे। वो पूर्ण रूप से अँधा था।*

संपत बोला : *" येस मैडम ? "*

मैं समझ नहीं पा रही थी कि, क्या कहूँ ? फिर मैंने कहा : *" संपत, अपनी ऐंसी हालत में भी तुमने, हमारी खूब और दिलखुश सेवा की, इतनी बढ़िया खातिरदारी की। मैं ये बात सारी जिंदगी नहीं भूलूँगी। "*

संपत : *" मैडम, आपने जिस अंधेरे को आज अनुभव किया है वो तो हमारा रोज का ही है। लेकिन हमने उसपर विजय पा ली है। We are not disabled, we are differently able people. We can lead our life without any problem with all joy and happiness as you enjoy. ”*

मुझे अपने सहानुभूति पूर्ण बोले गए शब्दों पर खुद ही लज्जा आई। *बिना किसी की सहानुभूति के मोहताज एक सशक्त व्यक्ति से आज सचिन ने मुझे मिलवाया। ऐंसा जन्मदिन मुझे कभी नहीं भूलेगा। मुझे अभिमान है अपने सचिन पर।*

सचिन बिल देकर मेरे पास आया और बिल मेरे हाथ में पकड़ाया। हमेशा सचिन को उसकी फिजूलखर्ची के चिल्लाने वाली मैंने, बिल को देखा तो मेरी नजर बिल पर सबसे नीचे लिखे प्रिंटेड शब्दों पर ठहर गई.......

लिखा था : *We do not accept tips, Please think of donating your eyes, which will bring light to somebody’s life.* (हम टिप्स स्वीकार नहीं करते। कृपया अपने नेत्रदान के बारे में सोचें, जो किसी के जीवन में रोशनी ले आएगा)

*नेत्रदान महादान...*🙏

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*आज का प्रेरक प्रसंग*


*💐अनोखी_परीक्षा💐*

"बेटा! थोड़ा खाना खाकर जा ..!! दो दिन से तुने कुछ खाया नहीं है।" लाचार माता के शब्द है अपने बेटे को समझाने के लिये।

"देख मम्मी! मैंने मेरी बारहवीं बोर्ड की परीक्षा के बाद वेकेशन में सेकेंड हैंड बाइक मांगी थी, और पापा ने प्रोमिस किया था। आज मेरे आखरी पेपर के बाद दीदी को कह देना कि जैसे ही मैं परीक्षा खंड से बाहर आऊंगा तब पैसा लेकर बाहर खडी रहे। मेरे दोस्त की पुरानी बाइक आज ही मुझे लेनी है। और हाँ, यदि दीदी वहाँ पैसे लेकर नहीं आयी तो मैं घर वापस नहीं आऊंगा।"

एक गरीब घर में बेटे मोहन की जिद्द और माता की लाचारी आमने सामने टकरा रही थी।

"बेटा! तेरे पापा तुझे बाइक लेकर देने ही वाले थे, लेकिन पिछले महीने हुए एक्सिडेंट ..

मम्मी कुछ बोले उसके पहले मोहन बोला "मैं कुछ नहीं जानता .. मुझे तो बाइक चाहिये ही चाहिये ..!!"

ऐसा बोलकर मोहन अपनी मम्मी को गरीबी एवं लाचारी की मझधार में छोड़ कर घर से बाहर निकल गया।

12वीं बोर्ड की परीक्षा के बाद भागवत 'सर एक अनोखी परीक्षा का आयोजन करते थे।
हालांकि भागवत सर का विषय गणित था, किन्तु विद्यार्थियों को जीवन का भी गणित भी समझाते थे। और उनके सभी विद्यार्थी विविधतासभर ये परीक्षा अचूक देने जाते थे।

इस साल परीक्षा का विषय था #मेरी_पारिवारिक_भूमिका

मोहन परीक्षा खंड में आकर बैठ गया।
उसने मन में गांठ बांध ली थी कि यदि मुझे बाइक लेकर देंगे तो मैं घर नहीं जाऊंगा।

भागवत सर के क्लास में सभी को पेपर वितरित हो गया। पेपर में 10 प्रश्न थे। उत्तर देने के लिये एक घंटे का समय दिया गया था।

मोहन ने पहला प्रश्न पढा और जवाब लिखने की शुरुआत की।

प्रश्न नंबर १ :-  आपके घर में आपके पिताजी, माताजी, बहन, भाई और आप कितने घंटे काम करते हो? सविस्तर बताइये?

मोहन ने त्वरा से जवाब लिखना शुरू कर दिया।

जवाबः
पापा सुबह छह बजे टिफिन के साथ अपनी ओटोरिक्षा लेकर निकल जाते हैं। और रात को नौ बजे वापस आते हैं। कभी कभार वर्धी में जाना पड़ता है। ऐसे में लगभग पंद्रह घंटे।

मम्मी सुबह चार बजे उठकर पापा का टिफिन तैयार कर, बाद में घर का सारा काम करती हैं। दोपहर को सिलाई का काम करती है। और सभी लोगों के सो
जाने के बाद वह सोती हैं। लगभग रोज के सोलह घंटे।

दीदी सुबह कालेज जाती हैं, शाम को 4 से 8 पार्ट टाइम जोब करती हैं। और रात्रि को मम्मी को काम में मदद करती हैं। लगभग बारह से तेरह घंटे।

मैं, सुबह छह बजे उठता हूँ, और दोपहर स्कूल से आकर खाना खाकर सो जाता हूँ। शाम को अपने दोस्तों के साथ टहलता हूँ। रात्रि को ग्यारह बजे तक पढता हूँ। लगभग दस घंटे।

(इससे मोहन को मन ही मन लगा, कि उनका कामकाज में औसत सबसे कम है।)

पहले सवाल के जवाब के बाद मोहन ने दूसरा प्रश्न पढा ..

प्रश्न नंबर २ :-  आपके घर की मासिक कुल आमदनी कितनी है?

जवाबः
पापा की आमदनी लगभग दस हजार हैं। मम्मी एवं दीदी मिलकर पांंच हजार
जोडते हैं। कुल आमदनी पंद्रह हजार।

प्रश्न नंबर ३ :-  मोबाइल रिचार्ज प्लान, आपकी मनपसंद टीवी पर आ रही तीन सीरियल के नाम, शहर के एक सिनेमा होल का पता और अभी वहां चल रही मुवी का नाम बताइये?

सभी प्रश्नों के जवाब आसान होने से फटाफट दो मिनट में लिख दिये ..

प्रश्न नंबर ४ :-  एक किलो आलू और भिन्डी के अभी हाल की कीमत क्या है? एक किलो गेहूं, चावल और तेल की कीमत बताइये? और जहाँ पर घर का गेहूं पिसाने जाते हो उस घन्टी का पता दिजिये।

मोहनभाई को इस सवाल का जवाब नहीं आया। उसे समझ में आया कि हमारी दैनिक आवश्यक जरुरतों की चीजों के बारे में तो उसे लेशमात्र भी ज्ञान नहीं है। मम्मी जब भी कोई काम बताती थी तो मना कर देता था। आज उसे ज्ञान हुआ कि अनावश्यक चीजें मोबाइल रिचार्ज, मुवी का ज्ञान इतना उपयोगी नहीं है। अपने घर के काम की
जवाबदेही लेने से या तो हाथ बटोर कर साथ देने से हम कतराते रहे हैं।

प्रश्न नंबर ५ :- आप अपने घर में भोजन को लेकर कभी तकरार या गुस्सा करते हो?

जवाबः हां, मुझे आलू के सिवा कोई भी सब्जी पसंद नहीं है। यदि मम्मी और कोई सब्जी बनायें तो, मेरे घर में झगड़ा होता है। कभी मैं बगैर खाना खायें उठ खडा हो जाता हूँ।
(इतना लिखते ही मोहन को याद आया कि आलू की सब्जी से मम्मी को गैस की तकलीफ होती हैं। पेट में दर्द होता है, अपनी सब्जी में एक बडी चम्मच वो अजवाइन डालकर खाती हैं। एक दिन मैंने गलती से मम्मी की सब्जी खा ली, और फिर मैंने थूंक दिया था। और फिर पूछा कि मम्मी तुम ऐसा क्यों खाती हो? तब दीदी ने बताया था कि हमारे घर की स्थिति ऐसी अच्छी नहीं है कि हम दो सब्जी बनाकर खायें। तुम्हारी जीद्द के कारण मम्मी बेचारी क्या करें?)
मोहन ने अपनी यादों से बाहर आकर
अगले प्रश्न को पढा

प्रश्न नंबर ६ :- आपने अपने घर में की हुई आखरी जीद्द के बारे में लिखिये ..

मोहन ने जवाब लिखना शुरू किया। मेरी बोर्ड की परीक्षा पूर्ण होने के बाद दूसरे ही दिन बाइक के लिये जीद्द की थी। पापा ने कोई जवाब नहीं दिया था, मम्मी ने समझाया कि घर में पैसे नहीं है। लेकिन मैं नहीं माना! मैंने दो दिन से घर में खाना खाना भी छोड़ दिया है। जबतक बाइक नहीं लेकर दोगे मैं खाना नहीं खाऊंगा। और आज तो मैं वापस घर नहीं जाऊंगा कहके निकला
हूँ।
अपनी जीद्द का प्रामाणिकता से मोहन ने जवाब लिखा।

प्रश्न नंबर ७ :- आपको अपने घर से मिल रही पोकेट मनी का आप क्या करते हो? आपके भाई-बहन कैसे खर्च करते हैं?

जवाब: हर महीने पापा मुझे सौ रुपये देते हैं। उसमें से मैं, मनपसंद पर्फ्यूम, गोगल्स लेता हूं, या अपने दोस्तों की छोटीमोटी पार्टियों में खर्च करता हूँ।

मेरी दीदी को भी पापा सौ रुपये देते हैं। वो खुद कमाती हैं और पगार के पैसे से मम्मी को आर्थिक मदद करती हैं। हां,  उसको दिये गये पोकेटमनी को वो गल्ले में डालकर बचत करती हैं। उसे कोई मौजशौख नहीं है, क्योंकि वो कंजूस भी हैं।

प्रश्न नंबर ८ :- आप अपनी खुद की पारिवारिक भूमिका को समझते हो?

प्रश्न अटपटा और जटिल होने के बाद भी मोहन ने जवाब लिखा।
परिवार के साथ जुड़े रहना, एकदूसरे के प्रति समझदारी से व्यवहार करना एवं मददरूप होना चाहिये। और ऐसे अपनी जवाबदेही निभानी चाहिये।

यह लिखते लिखते ही अंतरात्मासे आवाज आयी कि अरे मोहन! तुम खुद अपनी पारिवारिक भूमिका को योग्य रूप से निभा रहे हो? और अंतरात्मा से जवाब आया कि #ना बिल्कुल नहीं ..!!

प्रश्न नंबर ९ :- आपके परिणाम से
आपके माता-पिता खुश हैं? क्या वह अच्छे परिणाम के लिये आपसे जीद्द करते हैं? आपको डांटते रहते हैं?

(इस प्रश्न का जवाब लिखने से पहले हुए मोहन की आंखें भर आयी। अब वह परिवार के प्रति अपनी भूमिका बराबर समझ चुका था।)
लिखने की शुरुआत की ..

वैसे तो मैं कभी भी मेरे माता-पिता को आजतक संतोषजनक परिणाम नहीं दे पाया हूँ। लेकिन इसके लिये उन्होंने कभी भी जीद्द नहीं की है। मैंने बहुत बार अच्छे रिजल्ट के प्रोमिस तोडे हैं।
 फिर भी हल्की सी डांट के बाद वही प्रेम और वात्सल्य बना रहता था।

प्रश्न नंबर १० :- पारिवारिक जीवन में असरकारक भूमिका निभाने के लिये इस वेकेशन में आप कैसे परिवार को मददरूप होंगें?

जवाब में मोहन की कलम चले इससे पहले उनकी आंखों से आंसू बहने लगे, और जवाब लिखने से पहले ही कलम रुक गई .. बेंच के निचे मुंह रखकर रोने लगा। फिर से कलम उठायी तब भी वो कुछ भी न लिख पाया। अनुत्तर दसवां प्रश्न छोड़कर पेपर सबमिट कर दिया।

स्कूल के दरवाजे पर दीदी को देखकर उसकी ओर दौड़ पडा।

"भैया! ये ले आठ हजार रुपये, मम्मी ने कहा है कि बाइक लेकर ही घर आना।"
दीदी ने मोहन के सामने पैसे धर दिये।

"कहाँ से लायी ये पैसे?" मोहन ने पूछा।

दीदी ने बताया
"मैंने मेरी ओफिस से एक महीने की सेलेरी एडवांस मांग ली। मम्मी भी जहां काम करती हैं वहीं से उधार ले लिया, और मेरी पोकेटमनी की बचत से निकाल लिये। ऐसा करके तुम्हारी बाइक के पैसे की व्यवस्था हो गई हैं।

मोहन की दृष्टि पैसे पर स्थिर हो गई।

दीदी फिर बोली " भाई, तुम मम्मी को बोलकर निकले थे कि पैसे नहीं दोगे तो, मैं घर पर नहीं आऊंगा! अब तुम्हें समझना चाहिये कि तुम्हारी भी घर के प्रति जिम्मेदारी है। मुझे भी बहुत से शौख हैं, लेकिन अपने शौख से अपने परिवार को मैं सबसे ज्यादा महत्व देती हूं। तुम हमारे परिवार के सबसे लाडले हो, पापा को पैर की तकलीफ हैं फिर भी तेरी बाइक के लिये पैसे कमाने और तुम्हें दिये प्रोमिस को पूरा करने अपने फ्रेक्चर वाले पैर होने के बावजूद काम किये जा रहे हैं। तेरी बाइक के लिये। यदि तुम समझ सको तो अच्छा है, कल रात को अपने प्रोमिस को पूरा नहीं कर सकने के कारण बहुत दुःखी थे। और इसके पीछे उनकी मजबूरी है।
बाकी तुमने तो अनेकों बार अपने प्रोमिस तोडे ही है न?
मेरे हाथ में पैसे थमाकर दीदी घर की ओर चल निकली।

उसी समय उनका दोस्त वहां अपनी बाइक लेकर आ गया, अच्छे से चमका कर ले आया था।
"ले .. मोहन आज से ये बाइक तुम्हारी, सब बारह हजार में मांग रहे हैं, मगर ये तुम्हारे लिये आठ हजार ।"

मोहन बाइक की ओर टगर टगर देख रहा था। और थोड़ी देर के बाद बोला
"दोस्त तुम अपनी बाइक उस बारह हजार वाले को ही दे देना! मेरे पास पैसे की व्यवस्था नहीं हो पायी हैं और होने की हाल संभावना भी नहीं है।"

और वो सीधा भागवत सर की केबिन में जा पहूंचा।

"अरे मोहन! कैसा लिखा है पेपर में?
भागवत सर ने मोहन की ओर देख कर पूछा।

"सर ..!!, यह कोई पेपर नहीं था, ये तो मेरे जीवन के लिये दिशानिर्देश था। मैंने एक प्रश्न का जवाब छोड़ दिया है। किन्तु ये जवाब लिखकर नहीं अपने जीवन की जवाबदेही निभाकर दूंगा।

और भागवत सर को चरणस्पर्श कर अपने घर की ओर निकल पडा।

घर पहुंचते ही, मम्मी पापा दीदी सब उसकी राह देखकर खडे थे।
"बेटा! बाइक कहाँ हैं?" मम्मी ने पूछा।

मोहन ने दीदी के हाथों में पैसे थमा दिये और कहा कि सोरी! मुझे बाइक नहीं चाहिये। और पापा मुझे ओटो की
चाभी दो, आज से मैं पूरे वेकेशन तक ओटो चलाऊंगा और आप थोड़े दिन आराम करेंगे, और मम्मी आज मैं मेरी पहली कमाई शुरू होगी। इसलिये तुम अपनी पसंद की मैथी की भाजी और बैगन ले आना, रात को हम सब साथ मिलकर के खाना खायेंगे।

मोहन के स्वभाव में आये परिवर्तन को देखकर मम्मी उसको गले लगा लिया और कहा कि "बेटा! सुबह जो कहकर तुम गये थे वो बात मैंने तुम्हारे पापा को बतायी थी, और इसलिये वो दुःखी हो गये, काम छोड़ कर वापस घर आ गये। भले ही मुझे पेट में दर्द होता हो लेकिन आज तो मैं तेरी पसंद की ही सब्जी बनाऊंगी।"

मोहन ने कहा
"नहीं मम्मी! अब मेरी समझ गया हूँ कि मेरे घरपरिवार में मेरी भूमिका क्या है? मैं रात को बैंगन मैथी की सब्जी ही खाऊंगा, परीक्षा में मैंने आखरी जवाब नहीं लिखा हैं, वह प्रेक्टिकल करके ही दिखाना है। और हाँ मम्मी हम गेहूं को पिसाने कहां जाते हैं, उस घंटी का नाम और पता भी मुझे दे दो"

और उसी समय भागवत सर ने घर में प्रवेश किया। और बोले "वाह! मोहन जो जवाब तुमनें लिखकर नहीं दिये वे प्रेक्टिकल जीवन जीकर कर दोगे ..👌🏻👍🏻😊

"सर! आप और यहाँ?" मोहन भागवत सर को देख कर आश्चर्य चकित हो गया।
"मुझे मिलकर तुम चले गये, उसके बाद मैंने तुम्हारा पेपर पढा इसलिये तुम्हारे घर की ओर निकल पडा। मैं बहुत देर से तुम्हारे अंदर आये परिवर्तन को सुन रहा था।
मेरी #अनोखी_परीक्षा सफल रही 😊
और इस परीक्षा में तुमने पहला नंबर पाया है।"
ऐसा बोलकर भागवत सर ने मोहन के सर पर हाथ रखा।

मोहन ने तुरंत ही भागवत सर के पैर छुएँ और ओटोरिक्षा चलाने के लिये निकल पडा।


परिवार नाम का भले ही कोई वार न हो, 
लेकिन उसके बगैर एक भी त्यौहार नहीं है।
नम्रता से विनय विवेक से बडे छोटे का सम्मान के साथ समजदारी से साथ रहना सर्वश्रेष्ठ हैं।

मित्रों, आप भी अपने जीवन की प्राथमिकताओं पर ध्यान देते हुए जीवन के लक्ष्य हासिल करें ।

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महादानी कर्ण
*आज का प्रेरक प्रसंग*
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भगवान् कृष्ण ने भी कर्ण को सबसे बड़ा दानी माना है। अर्जुन ने एक बार कृष्ण से पूछा की सब कर्ण की इतनी प्रशांसा क्यों करते हैं? तब कृष्ण ने दो पर्वतों को सोने में बदल दिया और अर्जुन से कहा के इस सोने को गांव वालों में बांट दो। अर्जुन ने सारे गांव वालों को बुलाया और पर्वत काट-काट कर देने लगे और कुछ समय बाद थक कर बैठ गए।

तब कृष्ण ने कर्ण को बुलाया और सोने को बांटने के लिए कहा, तो कर्ण ने बिना कुछ सोचे समझे गांव वालों को कह दिया के ये सारा सोना गांव वालों का है और वे इसे आपस में बांट ले। तब कृष्ण ने अर्जुन को समझाया के कर्ण दान करने से पहले अपने हित के बारे में नहीं सोचता। इसी बात के कारण उन्हें सबसे बड़ा दानवीर कहा जाता है।


1.कवच और कुंडल : भगवान कृष्ण यह भली-भांति जानते थे कि जब तक कर्ण के पास उसका कवच और कुंडल है, तब तक उसे कोई नहीं मार सकता। ऐसे में अर्जुन की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। उधर देवराज इन्द्र भी चिंतित थे, क्योंकि अर्जुन उनका पुत्र था। भगवान कृष्ण और देवराज इन्द्र दोनों जानते थे कि जब तक कर्ण के पास पैदायशी कवच और कुंडल हैं, वह युद्ध में अजेय रहेगा। दोनों ने मिलकर योजना बनाई और इंद्र एक विप्र के वेश में कर्ण के पास पहुंच गए और उनसे दान मांगने लगे। कर्ण ने कहा मांगों। विप्र बने इंद्र ने कहा, नहीं पहले आपको वचन देना होगा कि मैं जो मांगूगा आप वो दे देंगे। कर्ण ने तैश में आकर जल हाथ में लेकर कहा- हम प्रण करते हैं विप्रवर! अब तुरंत मांगिए। तब क्षद्म इन्द्र ने कहा- राजन! आपके शरीर के कवच और कुंडल हमें दानस्वरूप चाहिए।



एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। कर्ण ने इन्द्र की आंखों में झांका और फिर दानवीर कर्ण ने बिना एक क्षण भी गंवाएं अपने कवच और कुंडल अपने शरीर से खंजर की सहायता से अलग किए और विप्रवर को सौंप दिए। इन्द्र ने तुंरत वहां से दौड़ ही लगा दी और दूर खड़े रथ पर सवार होकर भाग गए। लेकिन कुछ मील जाकर इन्द्र का रथ नीचे उतरकर भूमि में धंस गया। तभी आकाशवाणी हुई, 'देवराज इन्द्र, तुमने बड़ा पाप किया है। अपने पुत्र अर्जुन की जान बचाने के लिए तूने छलपूर्वक कर्ण की जान खतरे में डाल दी है। अब यह रथ यहीं धंसा रहेगा और तू भी यहीं धंस जाएगा। तब इंद्र ने कर्ण को कवच कुंडल के बदले अमोघ अस्त्र दिया।


2.कुंती को दान में दिया वचन : एक बार कुंती कर्ण के पास गई और उससे पांडवों की ओर से लड़ने का आग्रह करने लगी। कर्ण को मालूम था कि कुंती मेरी मां है। कुंती के लाख समझाने पर भी कर्ण नहीं माने और कहा कि जिनके साथ मैंने अब तक का अपना सारा जीवन बिताया उसके साथ मैं विश्‍वासघात नहीं कर सकता।

तब कुंती ने कहा कि क्या तुम अपने भाइयों को मारोगे? इस पर कर्ण ने बड़ी ही दुविधा की स्थिति में वचन दिया, 'माते, तुम जानती हो कि कर्ण के यहां याचक बनकर आया कोई भी खाली हाथ नहीं जाता अत: मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अर्जुन को छोड़कर मैं अपने अन्य भाइयों पर शस्त्र नहीं उठाऊंगा।'


3.कृष्ण ने ली दान की परीक्षा : जब महाराज युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ पर राज्य करते थे तब वे काफी दान आदि दिया करते थे। पांडवों को इसका अभिमान होने लगा। भीम व अर्जुन ने श्रीकृष्ण के समक्ष युधिष्ठिर की प्रशंसा शुरू की कि वे कितने बड़े दानी हैं। लेकिन कृष्ण ने उन्हें बीच में ही टोककर कहा- हमने कर्ण जैसा दानवीर कहीं नहीं देखा। पांडवों को यह बात पसंद नहीं आई। तब कृष्ण ने कहा कि समय आने पर सिद्ध कर दूंगा।


कुछ ही दिनों बाद एक याचक युधिष्ठिर के पास आया और बोला, महाराज! मैं आपके राज्य में रहने वाला एक ब्राह्मण हूं और मेरा व्रत है कि बिना हवन किए कुछ भी नहीं खाता-पीता। कई दिनों से मेरे पास यज्ञ के लिए चंदन की लकड़ी नहीं है। यदि आपके पास हो तो, मुझ पर कृपा करें, अन्यथा हवन तो पूरा नहीं ही होगा, मैं भी भूखा-प्यासा मर जाऊंगा।

युधिष्ठिर ने तुरंत कोषागार के कर्मचारी को बुलवाया और कोष से चंदन की लकड़ी देने का आदेश दिया। संयोग से कोषागार में सूखी लकड़ी नहीं थी। तब महाराज ने भीम व अर्जुन को चंदन की लकड़ी का प्रबंध करने का आदेश दिया। लेकिन काफी दौड़- धूप के बाद भी सूखी लकड़ी की व्यवस्था नहीं हो पाई। तब ब्राह्मण को हताश होते देख कृष्ण ने कहा, मेरे अनुमान से एक स्थान पर आपको लकड़ी मिल सकती है, आइए मेरे साथ।


ब्राह्मण यह सुनकर खुश हो गए। बोला कहां पर। तब भगवान ने अर्जुन व भीम का भी वेष बदलकर ब्राह्मण के संग लेकर चल दिए।। कृष्ण सबको लेकर कर्ण के महल में गए। सभी ब्राह्मणों के वेष में थे, अत: कर्ण ने उन्हें पहचाना नहीं। याचक ब्राह्मण ने जाकर लकड़ी की अपनी वही मांग दोहराई। कर्ण ने भी अपने भंडार के मुखिया को बुलवा कर सूखी लकड़ी देने के लिए कहा, वहां भी सूखी लकड़ी नहीं थी।


ऐसे में ब्राह्मण निराश हो गया। अर्जुन और भीम प्रश्न-सूचक निगाहों से भगवान कृष्ण को ताकने लगे। लेकिन श्री कृष्ण अपनी चिर-परिचित मुस्कान लिए चुपचाप बैठे रहे। तभी कर्ण ने कहा, हे ब्राह्मण देव! आप निराश न हों, एक उपाय है मेरे पास। उसने अपने महल के खिड़की-दरवाजों में लगी चंदन की लकड़ी काट-काट कर ढेर लगा दी, फिर ब्राह्मण से कहा, आपको जितनी लकड़ी चाहिए, कृपया ले जाइए। कर्ण ने लकड़ी ब्राह्मण के घर पहुंचाने का प्रबंध भी कर दिया। ब्राह्मण कर्ण को आशीर्वाद देता हुआ लौट गया। पांडव व श्रीकृष्ण भी लौट आए। वापस आकर भगवान ने कहा, साधारण अवस्था में दान देना कोई विशेषता नहीं है, असाधारण परिस्थिति में किसी के लिए अपने सर्वस्व को त्याग देने का ही नाम दान है। अन्यथा हे युधिष्ठिर! चंदन की लकड़ी के खिड़की-द्वार तो आपके महल में भी थे।


4.यौवन दान दे दिया : किंवदंती है कि एक बार कर्ण ने अपना यौवन ही दान दे दिया था। कथा अनुसार एक बार की बात है दुर्योधन के महल पर भगवान नारायण स्वयं विप्र के वेश में पधारे और दुर्योधन के भिक्षा मांगने लगे।

दुर्योधन के द्वार पर आकर एक विप्र ने अलख जगाई, 'नारायण हरि! भिक्षां देहि!'...
दुर्योधन ने स्वर्ण आदि देकर विप्र का सम्मान करना चाहा तो विप्र ने कहा, 'राजन! मुझे यह सब नहीं चाहिए।'
दुर्योधन ने आश्चर्य से पूछा, 'तो फिर महाराज कैसे पधारे?'
विप्र ने कहा, 'मैं अपनी वृद्धावस्था से दुखी हूं। मैं चारों धाम की यात्रा करना चाहता हूं, जो युवावस्था के स्वस्थ शरीर के बिना संभव नहीं है इसलिए यदि आप मुझे दान देना चाहते हैं तो यौवन दान दीजिए।'
दुर्योधन बोला, 'भगवन्! मेरे यौवन पर मेरी सहधर्मिणी का अधिकार है। आज्ञा हो तो उनसे पूछ आऊं?'
विप्र ने सिर हिला दिया। दुर्योधन अंत:पुर में गया और मुंह लटकाए लौट आया। विप्र ने दुर्योधन के उत्तर की प्रतीक्षा नहीं की। वह स्वत: समझ गए और वहां से चलते बने। उन्होंने सोचा, अब महादानी कर्ण के पास चला जाए। कर्ण के द्वार पहुंच कर विप्र ने अलख जगाई, 'भिक्षां देहि!'
कर्ण तुरंत राजद्वार पर उपस्थित हुआ, विप्रवर! मैं आपका क्या अभीष्ट करूं?'
विप्र ने दुर्योधन से जो निवेदन किया था, वही कर्ण से भी कर दिया। कर्ण उस विप्र को प्रतीक्षा करने की विनय करके पत्नी से परामर्श करने अंदर चला गया लेकिन पत्नी ने कोई न-नुकुर नहीं की। वह बोली, 'महाराज! दानवीर को दान देने के लिए किसी से पूछने की जरूरत क्यों आ पड़ी? आप उस विप्र को नि:संकोच यौवन दान कर दें।' कर्ण ने अविलम्ब यौवन दान की घोषणा कर दी। तब विप्र के शरीर से स्वयं भगवान विष्णु प्रकट हो गए, जो दोनों की परीक्षा लेने गए थे।


5.सोने के दांतों का दान : कर्ण दान करने के लिए काफी प्रसिद्ध था। कहते हैं कि कर्ण जब युद्ध क्षेत्र में आखिरी सांस ले रहा था तो भगवान कृष्ण ने उसकी दानशीलता की परीक्षा लेनी चाही। वे गरीब ब्राह्मण बनकर कर्ण के पास गए और कहा कि तुम्हारे बारे में काफी सुना है और तुमसे मुझे अभी कुछ उपहार चाहिए। कर्ण ने उत्तर में कहा कि आप जो भी चाहें मांग लें। ब्राह्मण ने सोना मांगा।


कर्ण ने कहा कि सोना तो उसके दांत में है और आप इसे ले सकते हैं। ब्राह्मण ने जवाब दिया कि मैं इतना कायर नहीं हूं कि तुम्हारे  दांत तोड़ूं। कर्ण ने तब एक पत्थर उठाया और अपने दांत तोड़ लिए। ब्राह्मण ने इसे भी लेने से इंकार करते हुए कहा कि खून से सना हुआ यह सोना वह नहीं ले सकता। कर्ण ने इसके बाद एक बाण उठाया और आसमान की तरफ चलाया। इसके बाद बारिश होने लगी और दांत धुल गया
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