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*टोडरमल की रचना और उनकी माँ*
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प्रसिद्ध विद्वान पंडित टोडरमल राजस्थान के रहने वाले थे। एक बार उन्होंने एक ग्रंथ लिखने की योजना बनाई। इसके लिए उन्होंने अपना पूरा ध्यान पठन-पाठन और लेखन पर केंद्रित कर लिया। कार्य करते हुए उन्हें दिन, महीनों का पता ही न चला। काफी समय बीत गया। एक दिन वह अपनी मां के साथ भोजन करने बैठे। मां ने बड़े प्रेम से टोडरमल को सब्जी परोसी, चपातियां दीं और खाने के लिए कहा।
टोडरमल ने एक टुकड़ा खाया, फिर दूसरा टुकड़ा खाया और खाते-खाते रुक गए। यह देखकर उनकी मां बोलीं, 'बेटा, क्या बात है ? क्या तुम्हें आज मेरी बनी सब्जी पसंद नहीं आई।' मां की बात सुनकर टोडरमल सहजता से बोले, 'नहीं मां, ऐसी बात नहीं है। पर मुझे लग रहा है कि आज आप सब्जी में नमक डालना भूल गई हैं।' बेटे की बात सुनकर मां उन्हें हैरानी से देखने लगीं।
टोडरमल ने पूछा,'मां क्या हुआ? क्या मैंने कोई गलत बात कह दी। आप मुझे इतनी हैरानी से क्यों देख रही हैं?' यह सुनकर मां मुस्करा कर बोलीं, 'बेटा, मैं तेरे सवाल का जवाब अवश्य दूंगी। पहले मुझे यह बता कि क्या आज तेरा ग्रंथ पूरा हो गया है।' टोडरमल प्रसन्न होकर बोले, 'हां मां, आज मेरा ग्रंथ पूरा हो गया है। इसलिए मैं चैन की सांस ले पा रहा हूं।' फिर वह मां की ओर देखकर बोले, 'पर मां तुम्हें यह कैसे पता चला कि मेरा ग्रंथ पूरा हो गया है। मैंने तो अभी इस बारे में तुम्हें कुछ बताया ही नहीं।'
इस पर मां बोली, 'बेटा। दरअसल मैं कई दिनों से सब्जी में जान-बूझकर कुछ कमी छोड़ती थी कि इसी बहाने तुम मुझसे कुछ देर बात करोगे। लेकिन तुम अपने काम में इतने मगन थे कि तुम्हें सब्जी की कमी का पता ही न चला।' टोडरमल का वह ग्रंथ 'मोक्षमार्ग' अत्यंत प्रसिद्ध है। अपना कार्य पूरी तन्मयता से करने वालों को सफलता अवश्य मिलती है।
*कथांत एक शिक्षाप्रद सारांश के साथ:*
हर कार्य में सफलता प्राप्त करने हेतु अपना सो प्रतिशत लगाना जरूरी है। पूर्ण एकाग्रता से कार्य करने पर सफलता मिलती है। कार्य को पूरी तन्मयता से करना चाहिए। हमें पूरी तरह तन, मन व भाव से कार्य करना चाहिए तभी हम सम्पूर्ण हो पाते है। अन्यथा हम बिखरे-बिखरे से रहते है। कार्य को समग्रता से करने पर ही आनन्द मिलता है। यह एक आध्यात्मिक सत्य भी है।
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आज का प्रेरक प्रसंग*
*टोडरमल की रचना और उनकी माँ*
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प्रसिद्ध विद्वान पंडित टोडरमल राजस्थान के रहने वाले थे। एक बार उन्होंने एक ग्रंथ लिखने की योजना बनाई। इसके लिए उन्होंने अपना पूरा ध्यान पठन-पाठन और लेखन पर केंद्रित कर लिया। कार्य करते हुए उन्हें दिन, महीनों का पता ही न चला। काफी समय बीत गया। एक दिन वह अपनी मां के साथ भोजन करने बैठे। मां ने बड़े प्रेम से टोडरमल को सब्जी परोसी, चपातियां दीं और खाने के लिए कहा।
टोडरमल ने एक टुकड़ा खाया, फिर दूसरा टुकड़ा खाया और खाते-खाते रुक गए। यह देखकर उनकी मां बोलीं, 'बेटा, क्या बात है ? क्या तुम्हें आज मेरी बनी सब्जी पसंद नहीं आई।' मां की बात सुनकर टोडरमल सहजता से बोले, 'नहीं मां, ऐसी बात नहीं है। पर मुझे लग रहा है कि आज आप सब्जी में नमक डालना भूल गई हैं।' बेटे की बात सुनकर मां उन्हें हैरानी से देखने लगीं।
टोडरमल ने पूछा,'मां क्या हुआ? क्या मैंने कोई गलत बात कह दी। आप मुझे इतनी हैरानी से क्यों देख रही हैं?' यह सुनकर मां मुस्करा कर बोलीं, 'बेटा, मैं तेरे सवाल का जवाब अवश्य दूंगी। पहले मुझे यह बता कि क्या आज तेरा ग्रंथ पूरा हो गया है।' टोडरमल प्रसन्न होकर बोले, 'हां मां, आज मेरा ग्रंथ पूरा हो गया है। इसलिए मैं चैन की सांस ले पा रहा हूं।' फिर वह मां की ओर देखकर बोले, 'पर मां तुम्हें यह कैसे पता चला कि मेरा ग्रंथ पूरा हो गया है। मैंने तो अभी इस बारे में तुम्हें कुछ बताया ही नहीं।'
इस पर मां बोली, 'बेटा। दरअसल मैं कई दिनों से सब्जी में जान-बूझकर कुछ कमी छोड़ती थी कि इसी बहाने तुम मुझसे कुछ देर बात करोगे। लेकिन तुम अपने काम में इतने मगन थे कि तुम्हें सब्जी की कमी का पता ही न चला।' टोडरमल का वह ग्रंथ 'मोक्षमार्ग' अत्यंत प्रसिद्ध है। अपना कार्य पूरी तन्मयता से करने वालों को सफलता अवश्य मिलती है।
*कथांत एक शिक्षाप्रद सारांश के साथ:*
हर कार्य में सफलता प्राप्त करने हेतु अपना सो प्रतिशत लगाना जरूरी है। पूर्ण एकाग्रता से कार्य करने पर सफलता मिलती है। कार्य को पूरी तन्मयता से करना चाहिए। हमें पूरी तरह तन, मन व भाव से कार्य करना चाहिए तभी हम सम्पूर्ण हो पाते है। अन्यथा हम बिखरे-बिखरे से रहते है। कार्य को समग्रता से करने पर ही आनन्द मिलता है। यह एक आध्यात्मिक सत्य भी है।