सच्चे गुरु बड़े ही प्रेम से समझाते हैं कि मनुष्य की ही आंखें हैं, जो जगत में पदार्थ और मृत्यु के अतिरिक्त ओर कुछ भी नहीं देखती और मनुष्य की ही आंखें हैं, जो जगत में परमात्मा के अमित सौंदर्य और संगीत को भी अनुभव करती हैं। इसलिए जो बाहर प्रतीत होता है, वह नहीं, वरन् जो भीतर उपस्थित है, वही जीवन में मौलिक और आधारभूत है। इस सत्य पर सतत जिनकी दृष्टि है, वे बाह्य से मुक्त हो अंतरस्थ में प्रतिष्ठित हो जाते हैं। सुख और दुख में, घृणा और प्रेम में, मित्र और शत्रु में, जो इस मूलस्रोत पर ध्यान रखते हैं वे अंततः पाते हैं कि मेरे स्वयं के अतिरिक्त न कोई सुख है, न दुख, न कोई शत्रु है, न मित्र। एक जगत मनुष्य के बाहर है। एक जगत मनुष्य के भीतर भी है। बाहर के जगत में कोई कभी सम्राट नहीं हो सका। हालांकि अधिकतम लोगों ने उसके लिए संघर्ष किया है और कर रहे हैं।
*कहानी:-*
लेकिन जिसे सम्राट होना हो, उसे संसार को नहीं, स्वयं को ही जीतना पड़ता है। इसका वर्णन एक घटना के माध्यम से इस प्रकार है। एक बार सम्राट सिकंदर सांझ के वक्त नदी किनारे टहल रहा था। उसने एक पेड़ के नीचे एक फकीर को आनंद की मुद्रा में बैठे देखा। वो फकीर के पास गया और पूछा : "आप कौन हैं?" उस फकीर ने कहा: "मैं एक सम्राट हूं।" सिकंदर ने आश्चर्य से कहा : "सम्राट?" उसने फकीर के चारों ओर देखा तो उसे फकीर के पास सिवाय लंगोटी के कुछ भी दिखाई नहीं दिया जिससे ऐसा लगता हो कि वह सम्राट है और फिर मजाक में पूछा: "किस देश पर आपका राज्य है?" उस फकीर ने कहा: *”स्वयं पर।"* निश्चय ही जिनका स्वयं पर राज है, वे ही सम्राट हैं।
*शिक्षा:-*
इस अनमोल स्वांस के होते हम सभी के पास अब भी समय है। इसलिए *अभ्यास से स्वांसों के भीतर की शक्ति को पहचान कर हृदय में शांति का अनुभव करें और सम्राट बनें।*
kahaniya hindi,kahaniya in hindi,hindi me kahaniya,hindi mein kahani,kahaniya hindi