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*आज का प्रेरक प्रसंग*
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*💐परम मित्र कौन है ?💐*


एक व्यक्ति था उसके तीन मित्र थे।
एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था।

दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।

और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब तब मिलता।

एक दिन कुछ ऐसा हुआ की उस व्यक्ति को अदालत में जाना था और किसी कार्यवश साथ में किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था।

अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला :- "मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?

वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।

उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था। आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया।

अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है।

फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।

दूसरे मित्र ने कहा कि :- मेरी एक शर्त है कि मैं सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं।

वह बोला कि :- बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए।

फिर वह थक हारकर अपने तीसरे मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।

तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरन्त उसके साथ चल दिया।

अब आप सोच रहे होंगे कि...
वो *तीन मित्र कौन है...?*

तो चलिये हम आपको बताते है इस *कथा का सार*।

जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे *हर व्यक्ति के तीन मित्र होते हैं।*

सब से *पहला मित्र है हमारा अपना 'शरीर'* हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता।

*दूसरा मित्र है शरीर के 'सम्बन्धी'* जैसे :- माता - पिता, भाई - बहन, मामा -चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते हैं, जो सुबह - दोपहर शाम मिलते है।

और *तीसरा मित्र है :- हमारे 'कर्म'* जो सदा ही साथ जाते है।

अब आप सोचिये कि *आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता।* जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।

*दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक यानी अदालत के दरवाजे तक "राम नाम सत्य है" कहते हुए जाते हैं तथा वहाँ से फिर वापिस लौट जाते है।*

और *तीसरा मित्र आपके कर्म हैं।*
*कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।*

*अब अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत में जाने की जरुरत नहीं होगी।*

और धर्मराज भी हमारे लिए स्वर्ग का दरवाजा खोल देगा।

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Novel Coronavirus (2019-nCoV) कोरोना वायरस क्या है कोरोना वायरस कैसे फैलता है कोरोना वायरस से बचने के उपाय

Novel Coronavirus (2019-nCoV) कोरोना वायरस क्या है कोरोना वायरस कैसे फैलता है कोरोना वायरस से बचने के उपाय

कोरोना वायरस क्या है कोरोना वायरस कैसे फैलता है कोरोना वायरस से बचने के उपाय

Novel Coronavirus (2019-nCoV) कोरोनावाईरस क्या है ?

कोरोनावाईरस (सीओवी) वायरस का एक बड़ा परिवार है जो सामान्य सर्दी से लेकर गंभीर बीमारियों जैसे मध्य पूर्व रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS-CoV) और गंभीर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS-CoV) का कारण बनता है। एक उपन्यास कोरोनावायरस (nCoV) एक नया स्ट्रेन है जो पहले मनुष्यों में पहचाना नहीं गया है।


कोरोनावीरस ज़ूनोटिक हैं, जिसका अर्थ है कि वे जानवरों और लोगों के बीच संचारित होते हैं। विस्तृत जांच में पाया गया कि SARS-CoV को केवेट बिल्लियों से मनुष्यों और MERS-CoV से ड्रोमेडरी ऊंटों से मनुष्यों में स्थानांतरित किया गया। कई ज्ञात कोरोनवीरस उन जानवरों में घूम रहे हैं जिन्होंने अभी तक मनुष्यों को संक्रमित नहीं किया है। संक्रमण के सामान्य संकेतों में श्वसन संबंधी लक्षण, बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ और सांस लेने में कठिनाई शामिल हैं। अधिक गंभीर मामलों में, संक्रमण से निमोनिया, गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम, गुर्दे की विफलता और यहां तक ​​कि मृत्यु भी हो सकती है। संक्रमण को रोकने के लिए मानक अनुशंसाओं में नियमित रूप से हाथ धोना, खाँसने और छींकने पर मुंह और नाक को ढंकना, मांस और अंडे को अच्छी तरह से पकाना शामिल है। खांसी और छींकने जैसी सांस की बीमारी के लक्षण दिखाने वाले किसी के भी निकट संपर्क से बचें।


Novel Coronavirus (2019-nCoV) के बारें जानकारी

31 दिसंबर 2019 को, डब्ल्यूएचओ को चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में निमोनिया के कई मामलों के लिए सतर्क किया गया था। वायरस किसी अन्य ज्ञात वायरस से मेल नहीं खाता था। इसने चिंता जताई क्योंकि जब कोई वायरस नया होता है, तो हम नहीं जानते कि यह लोगों को कैसे प्रभावित करता है। एक सप्ताह बाद, 7 जनवरी को, चीनी अधिकारियों ने पुष्टि की कि उन्होंने एक नए वायरस की पहचान की है। नया वायरस एक कोरोनावायरस है, जो वायरस का एक परिवार है जिसमें सामान्य सर्दी और SARS और MERS जैसे वायरस शामिल हैं। इस नए वायरस को अस्थायी रूप से "2019-nCoV" नाम दिया गया था। डब्ल्यूएचओ चीनी अधिकारियों और वैश्विक विशेषज्ञों के साथ काम कर रहा है जिस दिन से हमें सूचित किया गया था, वायरस के बारे में अधिक जानने के लिए, यह उन लोगों को कैसे प्रभावित करता है जो इसके साथ बीमार हैं, उनका इलाज कैसे किया जा सकता है, और कौन से देश प्रतिक्रिया देने के लिए कर सकते हैं। क्योंकि यह एक कोरोनोवायरस है, जो आमतौर पर सांस की बीमारी का कारण बनता है, डब्ल्यूएचओ ने लोगों को सलाह दी है कि वे खुद को और अपने आसपास के लोगों को बीमारी से कैसे बचाएं।

Novel Coronavirus (2019-nCoV) advice for the public कोरना वायरस से बचने के उपाय

WHO द्वारा कोरोना वायरस से बचने के लिए सुझाए गए उपाय
डब्ल्यूएचओ WHO ने आम जनता के लिए बीमारियों  सीमा के संपर्क और प्रसारण को कम करने की  उपाय व सुझाव इस प्रकार हैं | जिनमें हाथ और श्वसन स्वच्छता, और सुरक्षित खाद्य पद्धतियां शामिल हैं:

 1.अल्कोहल-आधारित - हाथ रगड़कर  साबुन और पानी का उपयोग करके साफ करे|

2.खाँसते और छींकते हुए मुंह और नाक को फ्लेक्सेड एल्बो या टिशू से ढके और टिशू को तुरंत फेंक दें और हाथ धो लें|

3. बुखार और खांसी वाले किसी भी व्यक्ति के निकट संपर्क से बचें; यदि आपको बुखार, खांसी और सांस लेने में कठिनाई हो रही है, तो जल्दी से डॉक्टर से मिले और परामर्श लेवे और डॉक्टर के साथ अपनी पिछली की गई  यात्रा की पूरी जानकारी डिटेल से बताएं कि वह किस देश ने की थी और कब की था|

4.कई क्षेत्रों में लाइव बाजारों का दौरा करते समय वर्तमान में कोरोनोवायरस के मामलों का सामना करना पड़ता है, इसलिए लाइव बाजारों में जाने से बचें | जीवित जानवरों से सीधे हाथ सुरक्षित संपर्क से बचें |

 5.कच्चे या अधपके पशु उत्पादों के सेवन से बचना चाहिए।  के अनुसार,   उचित देखभाल के साथ संभाला जाना चाहिए।

6.बिना पके हुए खाद्य पदार्थों को कच्चे मांस, दूध या जानवरों के अंगों आदी बिना पके हुए खाद्य पदार्थों से  प्रदूषित होने से बचाने के लिए खाद्य सुरक्षा प्रणाली से उचित देखभाल करके  संभाला जाना चाहिए।


नोट- इस वेबसाइट पर कोरोला वायरस के बारे में जो जानकारी दी गई है वह WHO की ऑफिशियल वेबसाइट से इंग्लिश भाषा से हिंदी में ट्रांसलेट की गई है ताकि लोगों को इससे बचने के हिंदी में उपाय बताए जा सके l हालांकि ट्रांसलेशन में पूरी सतर्कता बरती गई है लेकिन फिर भी डब्ल्यूएचओ की वेबसाइट पर बताए गए सुझाव को ही प्राथमिकता देवें l

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*आज का प्रेरक प्रसंग*

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*सोच का अंतर*

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        *एक अंधा लड़का एक इमारत की सीढ़ियों पर बैठा था*
          *उसके पैरों के पास एक टोपी रखी थी,पास ही एक बोर्ड रखा था, जिस पर लिखा था,"मैं अंधा हूँ,मेरी मदद करो"टोपी में केवल कुछ सिक्के थे वहां से गुजरता एक आदमी यह देख कर रुका,उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकले और टोपी में गिरा दिये,फिर उसने उस बोर्ड को पलट कर कुछ शब्द लिखे और वहां से चला गया,उसने बोर्ड को पलट दिया था जिससे कि लोग वह पढ़ें जो उसने लिखा था जल्द ही टोपी को भरनी शुरू हो गई*
       *अधिक से अधिक लोग अब उस अंधे लड़के को पैसे दे रहे थे,दोपहर को बोर्ड बदलने वाला आदमी फिर वहां आया,वह यह देखने के लिए आया था उसके शब्दों का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?अंधे लड़के ने उसके क़दमों की आहट पहचान ली और पूछा,"आप सुबह मेरे बोर्ड को बदल कर गए थे?आपने बोर्ड पर क्या लिखा था? उस आदमी ने कहा मैंने केवल सत्य लिखा था,मैंने तुम्हारी बात को एक अलग तरीके से लिखा"आज एक खूबसूरत दिन है और मैं इसे नहीं देख सकता आपको क्या लगता है?*
      *पहले वाले शब्द और बाद वाले शब्द,एक ही बात कह रहे थे?*
      *बेशक दोनों संकेत लोगों को बता रहे थे कि लड़का अंधा था*
       *लेकिन पहला संकेत बस इतना बता रहा था कि वह लड़का अंधा है,जबकि दूसरा संकेत लोगों को यह बता रहा था कि वे कितने भाग्यशाली हैं कि वे अंधे नहीं हैं. क्या दूसरा बोर्ड अधिक प्रभावशाली था? दोस्तों! यह कहानी हमें बताती है कि,जो कुछ हमारे पास है उसके लिए हमें आभारी होना चाहिए,रचनात्मक रहो,अभिनव रहो,अलग और सकारात्मक सोच रखो,लोगों को अच्छी चीजों की तरफ,समझदारी से आकर्षित करो,जीवन तुम्हे रोने का एक कारण देता है, तो तुम्हारे पास मुस्कुराने के लिए 10 कारण हैं*

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        *तत्त्वनिष्ठ*
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 "अजी सुनते हो? राहूल को कम्पनी में जाकर टिफ़िन दे आते हो क्या?"
"क्यों आज राहूल टिफ़िन लेकर नहीं गया।?"
शरदराव ने पुछा।
आज राहूल की कम्पनी के चेयरमैन आ रहे हैं, इसलिये राहूल सुबह सात बजे ही निकल गया और इतनी सुबह खाना नहीं बन पाया था।"
" ठीक हैं। दे आता हूँ मैं।"
शरदराव ने हाथ का पेपर रख दिया और वो कपडे बदलने के लिये कमरे में चले गये।"
पुष्पाबाई ने एक उच्छ्वास छोडकर राहत की साँस ली।
शरदराव तैयार हुए मतलब उसके और राहूल के बीच हुआ विवाद उन्होंने नहीं सुना था। विवाद भी कैसा ? हमेशा की तरह राहूल का अपने पिताजी पर दोषारोपण करना और पुष्पाबाई का अपनी पति के पक्ष में बोलना।
 विषय भी वही! हमारे पिताजी ने हमारे लिये क्या किया? मेरे लिये क्या किया हैं मेरे बाप ने ?  ऐसा गैरसमज उसके मन में समाया हुआ था।
  "माँ! मेरे मित्र के पिताजी भी शिक्षक थे, पर देखो उन्होंने कितना बडा बंगला बना लिया। नहीं तो एक ये हमारे नाना (पिताजी) । अभी भी हम किराये के मकान में ही रह रहे हैं।"
"राहूल, तुझे मालूम हैं कि तुम्हारे नाना घर में बडे हैं। और दो बहनों और दो भाईयों की शादी का खर्चा भी उन्होंने उठाया था। सिवाय इसके तुम्हारी बहन की शादी का भी खर्चा उन्होंने ने ही किया था। अपने गांव की जमीन की कोर्ट कचेरी भी लगी ही रही। ये सारी जवाबदारियाँ किसने उठाई? "
" क्या उपयोग हुआ उसका? उनके भाई - बहन बंगलों में रहते हैं। कभी भी उन्होंने सोचा कि हमारे लिये जिस भाई ने इतने कष्ट उठाये उसने एक छोटा सा मकान भी नहीं बनाया, तो हम ही उन्हें एक मकान बना कर दे दें ? "
एक क्षण के लिए पुष्पाबाई की आँखें भर आईं। क्या बतायें अपने जन्म दिये पुत्र को  *"बाप ने क्या किया मेरे लिये"*  पुछ रहा हैं? फिर बोली  ....
" तुम्हारे नाना ने अपना कर्तव्य निभाया। भाई-बहनों से कभी कोई आशा नहीं रखी। "
राहूल मूर्खों जैसी बात करते हुए बोला — "अच्छा वो ठीक हैं। उन्होंने हजारों बच्चों की ट्यूशन्स ली। यदि उनसे फीस ले लेते तो आज पैसो में खेल रहे होते। आजकल के क्लासेस वालों को देखो। इंपोर्टेड गाड़ियों में घुमते हैं। "
" यह तुम सच बोल रहे हो। परन्तु, तुम्हारे नाना( पिताजी) का तत्व था, *ज्ञानदान का पैसा नहीं लेना।* उनके इन्हीं तत्वों के कारण उनकी कितनी प्रसिद्धि हुई। और कितने पुरस्कार मिलें। उसकी कल्पना हैं तुझे। "
ये सुनते ही राहूल एकदम नाराज हो गया।
 " क्या चाटना हैं उन पुरस्कारों को? उन पुरस्कारों से घर थोडे ही बनाते आयेगा। पडे ही धूल खाते हुए। कोई नहीं पुछता उनको।"
इतने में दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। राहूल ने दरवाजा खोला तो शरदराव खडे थे। नाना ने अपना बोलना तो नहीं सुना इस डर से राहूल का चेहरा उतर गया। परन्तु, शरदराव बिना कुछ बोले अन्दर चले गये। और वह वाद वहीं खत्म हो गया।
 ये था पुष्पाबाई और राहूल का कल का झगड़ा, पर आज ....

शरदरावने टिफ़िन साईकिल को  अटकाया और तपती धूप में औद्योगिक क्षेत्र की राहूल की कम्पनी के लिये निकल पडे। सात किलोमीटर दूर कंपनी तक पहूचते - 2 उनका दम फूल गया था। कम्पनी के गेट पर सिक्युरिटी गार्ड ने उन्हें रोक दिया।
 "राहूल पाटील साहब का टिफ़िन देना हैं। अन्दर जाँऊ क्या?"
"अभी नहीं देते आयेगा।" गार्ड बोला।
"चेयरमैन साहब आये हुए हैं। उनके साथ मिटिंग चल रही हैं। किसी भी क्षण वो मिटिंग खत्म कर आ सकते हैं। तुम बाजू में ही रहिये। चेयरमैन साहब को आप दिखना नहीं चाहिये।"
 शरदराव थोडी दूरी पर धूप में ही खडे रहे। आसपास कहीं भी छांव नहीं थी।
थोडी देर बोलते बोलते एक घंटा निकल गया। पांवों में दर्द उठने लगा था। इसलिये शरदराव वहीं एक तप्त पत्थर पर बैठने लगे, तभी गेट की आवाज आई। शायद मिटिंग खत्म हो गई होगी।
  चेयरमैन साहेब के पीछे पीछे अधिकारी
और उनके साथ राहूल भी बाहर आया।
उसने अपने पिताजी को वहाँ खडे देखा तो मन ही मन नाराज हो गया।
   चेयरमैन साहब कार का दरवाजा खोलकर बैठने ही वाले थे तो उनकी नजर शरदराव की ओर उठ गई। कार में न बैठते हुए वो वैसे ही बाहर खडे रहे।
  "वो सामने कौन खडा हैं?" उन्होंने सिक्युरिटी गार्ड से पुछा।
"अपने राहूल सर के पिताजी हैं। उनके लिये खाने का टिफ़िन लेकर आये हैं।" गार्ड ने कंपकंपाती आवाज में कहा।
"बुलवाइये उनको। "
  जो नहीं होना था वह हुआ। राहूल के तन से पसीने की धाराऐं बहने लगी। क्रोध और डर से उसका दिमाग सुन्न हुआ जान पडने लगा।
गार्ड के आवाज देने पर शरदराव पास आये।
चेयरमैन साहब आगे बढे और उनके समीप गये।
" आप पाटील सर हैं ना? डी. एन. हायस्कूल में शिक्षक थे। "
" हाँ। आप कैसे पहचानते हो मुझे?"
कुछ समझने के पहले ही चेयरमैन साहब ने शरदराव के चरण छूये। सभी अधिकारी और राहूल वो दृश्य देखकर अचंभित रह गये।
"सर, मैं अतिश अग्रवाल। तुम्हारा विद्यार्थी । आप मुझे घर पर पढ़ाने आते थे। "
" हाँ.. हाँ.. याद आया। बाप रे बहुत बडे व्यक्ति बन गये आप तो ..."
चेयरमैन हँस दिये। फिर बोले, "सर आप यहाँ धूप में क्या कर रहे हैं। आईये अंदर चलते हैं। बहुत बातें करनी हैं आपसे।
सिक्युरिटी तुमने इन्हें अन्दर क्यों नहीं बिठाया? "
गार्ड ने शर्म से सिर नीचे झुका लिया।
वो देखकर शरदराव ही बोले —" उनकी कोई गलती नहीं हैं। आपकी मिटिंग चल रही थी। आपको तकलीफ न हो, इसलिये मैं ही बाहर रूक गया। "
"ओके... ओके...!"
चेयरमैन साहब ने शरदराव का हाथ  अपने हाथ में लिया और उनको अपने आलीशन चेम्बर में ले गये।
"बैठिये सर। अपनी कुर्सी की ओर इंगित करते हुए बोले।
" नहीं। नहीं। वो कुर्सी आपकी हैं।" शरदराव सकपकाते हुए बोले।
"सर, आपके कारण वो कुर्सी मुझे मिली हैं। तब पहला हक आपका हैं। "
चेयरमैन साहब ने जबरदस्ती से उन्हें अपनी कुर्सी पर बिठाया।
" आपको मालूम नहीं होगा पवार सर.."
 जनरल मैनेजर की ओर देखते हुए बोले,
"पाटिल सर नहीं होते तो आज ये कम्पनी नहीं होती और मैं मेरे पिताजी की अनाज की दुकान संभालता रहता। "
राहूल और जी. एम. दोनों आश्चर्य से उनकी ओर देखते ही रहे।
"स्कूल समय में मैं बहुत ही डब्बू विद्यार्थी था। जैसे तैसे मुझे नवीं कक्षा तक पहूँचाया गया। शहर की सबसे अच्छी क्लासेस में मुझे एडमिशन दिलाया गया। परन्तु मेरा ध्यान कभी पढाई में नहीं लगा। उस पर अमीर बाप की औलाद। दिन भर स्कूल में मौज मस्ती और मारपीट करना। शाम की क्लासेस से बंक मार कर मुवी देखना यही मेरा शगल था। माँ को वो सहन नहीं होता। उस समय पाटिल सर कडे अनुशासन और उत्कृष्ट शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध थे। माँ ने उनके पास मुझे पढ़ाने की विनती की। परन्तु सर के छोटे से घर में बैठने के लिए जगह ही नहीं थी। इसलिये सर ने पढ़ाने में असमर्थता दर्शाई। माँ ने उनसे बहुत विनती की। और हमारे घर आकर पढ़ाने के लिये मुँह मांगी फीस का बोला। सर ने फीस के लिये तो मना कर दिया। परन्तु अनेक प्रकार की विनती करने पर घर आकर पढ़ाने को तैयार हो गये। पहिले दिन सर आये। हमेशा की तरह मैं शैतानी करने लगा। सर ने मेरी अच्छी तरह से धुनाई कर दी। उस धुनाई का असर ऐसा हुआ कि मैं चुपचाप बैठने लगा। तुम्हें कहता हूँ राहूल, पहले हफ्ते में ही मुझे पढ़ने में रूचि जागृत हो गई। तत्पश्चात मुझे पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ भी सुझाई नहीं देता था। सर इतना अच्छा पढ़ाते थे, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान जैसे विषय जो मुझे कठिन लगते थे वो अब सरल लगने लगे थे। सर कभी आते नहीं थे तो मैं व्यग्र हो जाता था। नवीं कक्षा में मैं दुसरे नम्बर पर आया। माँ-पिताजी को खुब खुशी हुई। मैं तो, जैसे हवा में उडने लगा था। दसवीं में मैंने सारी क्लासेस छोड दी और सिर्फ पाटिल सर से ही पढ़ने लगा था। और दसवीं में मेरीट में आकर मैंने  सबको चौंका दिया था।"
" माय गुडनेस...! पर सर फिर भी आपने सर को फीस नहीं दी? "
  जनरल मैनेजर ने पुछा।         
" मेरे माँ - पिताजी के साथ मैं सर के घर पेढे लेकर गया। पिताजी ने सर को एक लाख रूपये का चेक दिया। सर ने वो नहीं लिया। उस समय सर क्या बोले वो मुझे आज भी याद हैं। सर बोले — "मैंने कुछ भी नहीं किया। आपका लडका ही बुद्धिमान हैं। मैंने सिर्फ़ उसे रास्ता बताया। और मैं ज्ञान नहीं बेचता। मैं वो दान देता हूँ। बाद में मैं सर के मार्गदर्शन में ही बारहवीं मे पुनः मेरीट में आया। बाद में बी. ई. करने के बाद अमेरिका जाकर एम. एस. किया। और अपने शहर में ही यह कम्पनी शुरु की। एक पत्थर को तराशकर सर ने हीरा बना दिया। और मैं ही नहीं तो सर ने ऐसे अनेक असंख्य हिरें बनाये हैं। सर आपको कोटी कोटी प्रणाम...!!"
चेयरमैन साहब ने अपनी आँखों में आये अश्रु रूमाल से पोंछे।
" परन्तु यह बात तो अदभूत ही हैं कि, बाहर शिक्षा का और ज्ञानदान का  बाजार भरा पडा होकर भी सर ने एक रूपया भी न लेते हुए हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाया, न केवल पढ़ाये पर उनमें पढ़ने की रूचि भी जगाई। वाह सर मान गये आपको और आपके आदर्श को।"
शरदराव की ओर देखकर जी. एम ने कहा।
 " अरे सर! ये व्यक्ति तत्त्वनिष्ठ हैं। पैसों, और मान सम्मान के भूखे भी नहीं हैं। विद्यार्थी का भला हो यही एक मात्र उद्देश्य था। "चेयरमैन बोले।
" मेरे पिताजी भी उन्हीं मे से एक। एक समय भूखे रह लेंगे, पर अनाज में मिलावट करके बेचेंगे नहीं।" ये उनके तत्व थे। जिन्दगी भर उसका पालन किया। ईमानदारी से व्यापार किया। उसका फायदा आज मेरे भाईयों को हो रहा हैं।"
बहुत देर तक कोई कुछ भी नहीं बोला  । फिर चेयरमैन ने शरदराव से पुछा, - "सर आपने मकान बदल लिया या उसी मकान में हैं रहते हैं। "
"उसी पुराने मकान में रहते हैं सर! "
शरदराव के बदले में राहूल ने ही उत्तर दिया।
    उस उत्तर में पिताजी के प्रति छिपी नाराजगी तत्पर चेयरमैन साहब की समझ में आ गई ।
‌"तय रहा फिर। सर आज मैं आपको गुरू दक्षिणा दे रहा हूँ। इसी शहर में मैंने कुछ फ्लैट्स ले रखे हैं। उसमें का एक थ्री बी. एच. के. का मकान आपके नाम कर रहा हूँ....."
 "क्या.?"
शरदराव और राहूल दोनों आश्चर्य चकित रूप से बोलें। "नहीं नहीं इतनी बडी गुरू दक्षिणा नहीं चाहिये मुझे।"शरदराव आग्रहपूर्वक बोले।
चेयरमैन साहब ने शरदराव के हाथ को अपने हाथ में लिया।  " सर, प्लीज....  ना मत करिये और मुझे माफ करें। काम की अधिकता में आपकी गुरू दक्षिणा देने में पहले ही बहुत देर हो चुकी हैं।"
फिर राहूल की ओर देखते हुए उन्होंने पुछ लिया, राहूल तुम्हारी शादी हो गई क्या? "
‌" नहीं सर, जम गई हैं। और जब तक रहने को अच्छा घर नहीं मिल जाता तब तक शादी नहीं हो सकती। ऐसी शर्त मेरे ससुरजी ने रखी होने से अभी तक शादी की डेट फिक्स नहीं की। तो फिर हाॅल भी बुक नहीं किया। "
चेयरमैन ने फोन उठाया और किसी से बात करने लगे।समाधान कारक चेहरे से फोन रखकर, धीरे से बोले" अब चिंता की कोई बात नहीं। तुम्हारे मेरीज गार्डन का काम हो गया। *"सागर लान्स"* तो मालूम ही होगा! "
" सर वह तो बहूत महंगा हैं... "
" अरे तुझे कहाँ पैसे चुकाने हैं। सर के सारे विद्यार्थी सर के लिये कुछ भी कर
‌ ‌सकते हैं। सर के बस एक आवाज देने की बात हैं। परन्तु सर तत्वनिष्ठ हैं, वैसा करेंगे भी नहीं। इस लान्स का मालिक भी सर का ही विद्यार्थी हैं। उसे मैंने सिर्फ बताया। सिर्फ हाॅल ही नहीं तो भोजन सहित संपूर्ण शादी का खर्चा भी उठाने की जिम्मेदारियाँ ली हैं उसने... वह भी स्वखुशी से। तुम केवल तारिख बताओ और सामान लेकर जाओ।
"बहूत बहूत धन्यवाद सर।" राहूल अत्यधिक खुशी से हाथ जोडकर बोला। "धन्यवाद मुझे नहीं, तुम्हारे पिताश्री को दो राहूल! ये उनकी पुण्याई हैं। और मुझे एक वचन दो राहूल! सर के अंतिम सांस तक तुम उन्हें अलग नहीं करोगे और उन्हें
कोई दुख भी नहीं होने दोगे। मुझे जब भी मालूम चला कि, तुम उन्हें दुख दे रहे होतो, न केवल इस कम्पनी से  लात मारकर भगा दुंगा परन्तु पुरे महाराष्ट्र भर के किसी भी स्थान पर नौकरी करने लायक नहीं छोडूंगा। ऐसी व्यवस्था कर दूंगा।"
चेयरमैन साहब कठोर शब्दों में बोले।
" नहीं सर। मैं वचन देता हूँ, वैसा कुछ भी नहीं होगा। "राहूल हाथ जोडकर बोला।
   शाम को जब राहूल घर आया तब, शरदराव किताब पढ रहे थे। पुष्पाबाई पास ही सब्जी काट रही थी। राहूल ने बॅग रखी और शरदराव के पाँव पकडकर बोला —" नाना, मुझसे गलती हो गई। मैं आपको आजतक गलत समझता रहा। मुझे पता नहीं था नाना आप इतने बडे व्यक्तित्व लिये हो।"
‌ शरदराव ने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया।
अपना लडका क्यों रो रहा हैं, पुष्पाबाई की समझ में नहीं आ रहा था। परन्तु कुछ अच्छा घटित हुआ हैं। इसलिये पिता-पुत्र में प्यार उमड रहा हैं। ये देखकर उनके नयनों से भी कुछ बुन्दे गाल पर लुढक आई।
.....................................

   *उपरोक्त कथा पढने के उपरान्त आपकी आँखों से 1 भी बुन्द बाहर आ गई हो तो ही यह पोस्ट अपने स्नेहीजन तक भेजियेगा जरूर ! ✍✍✍✍✍✍ * और कृपया अपने पिताजी से कभी यह न कहे कि "आपने मेरे लिये किया ही क्या हैं? क्या कमाकर रखा मेरे लिये? जो भी कमाना हो वो स्वयम् अर्जित करें। जो शिक्षा और संस्कार उन्होंने तुम्हें दिये हैं वही तुम्हें कमाने के लिए पथप्रदर्शक रहेंगे
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*आज का प्रेरक प्रसंग*
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*जो चाहोगे सो पाओगे*


*एक साधु था , वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता था ,”जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।”*

*बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीँ देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे।*




*एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसनेँ उस साधु की आवाज सुनी , “जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।” ,और आवाज सुनते ही उसके पास चला गया।*

*उसने साधु से पूछा -“महाराज आप बोल रहे थे कि ‘जो चाहोगे सो पाओगे’ तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मैँ जो चाहता हूँ?”*

*साधु उसकी बात को सुनकर बोला – “हाँ बेटा तुम जो कुछ भी चाहता है मैँ उसे जरुर दुँगा, बस तुम्हे मेरी बात माननी होगी। लेकिन पहले ये तो बताओ कि तुम्हे आखिर चाहिये क्या?”*

*युवक बोला-” मेरी एक ही ख्वाहिश है मैँ हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूँ। “*

*साधू बोला ,” कोई बात नहीँ मैँ तुम्हे एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने भी हीरे मोती बनाना चाहोगे बना पाओगे !”*

*और ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुए कहा , ” पुत्र , मैं तुम्हे दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं, लोग इसे ‘समय’ कहते हैं, इसे तेजी से अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे कभी मत गंवाना, तुम इससे जितने चाहो उतने हीरे बना सकते हो “*

*युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि साधु उसका दूसरी हथेली , पकड़ते हुए बोला , ” पुत्र , इसे पकड़ो , यह दुनिया का सबसे कीमती मोती है , लोग इसे “धैर्य ” कहते हैं , जब कभी समय देने के बावजूद परिणाम ना मिलेंटो इस कीमती मोती को धारण कर लेना , याद रखन जिसके पास यह मोती है, वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर सकता है। “*

*युवक गम्भीरता से साधु की बातों पर विचार करता है और निश्चय करता है कि आज से वह कभी अपना समय बर्वाद नहीं करेगा और हमेशा धैर्य से काम लेगा । और ऐसा सोचकर वह हीरों के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम शुरू करता है और अपने मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक दिन खुद भी हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनता है।*

*Friends, ‘समय’ और ‘धैर्य’ वह दो हीरे-मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। अतः ज़रूरी है कि हम अपने कीमती समय को बर्वाद ना करें और अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए धैर्य से काम लें।*
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*आज का प्रेरक प्रसंग*

  *!!!---: नई उड़ान :---!!!*
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T
एक नन्हा पंछी अपने परिवार-जनों से बिछड़ कर अपने घोंसले से बहुत दूर आ गया था । उस नन्हे पंछी को अभी उड़ान भरने अच्छे से नहीं आता था… उसने उड़ना सीखना अभी शुरू ही किया था ! उधर नन्हे पंछी के परिवार वाले बहुत परेशान थे और उसके आने की राह देख रहे थे । इधर नन्हा पंछी भी समझ नहीं पा रहा था कि वो अपने घोंसले तक कैसे पहुंचे?

वह उड़ान भरने की काफी कोशिश कर रहा था पर बार-बार कुछ ऊपर उठ कर गिर जाता।

कुछ दूर से एक अनजान पंछी अपने मित्र के साथ ये सब दृश्य बड़े गौर से देख रहा था । कुछ देर देखने के बाद वो दोनों पंछी उस नन्हे पंछी के करीब आ पहुंचे । नन्हा पंछी उन्हें देख के पहले घबरा गया फिर उसने सोचा शायद ये उसकी मदद करें और उसे घर तक पहुंचा दें ।

अनजान पंछी – क्या हुआ नन्हे पंछी काफी परेशान हो ?

नन्हा पंछी – मैं रास्ता भटक गया हूँ और मुझे शाम होने से पहले अपने घर लौटना है । मुझे उड़ान भरना अभी अच्छे से नहीं आता । मेरे घर वाले बहुत परेशान हो रहे होंगे । आप मुझे उड़ान भरना सीखा सकते है ? मैं काफी देर से कोशिश कर रहा हूँ पर कामयाबी नहीं मिल पा रही है ।
अनजान पंछी – (थोड़ी देर सोचने के बाद )- जब उड़ान भरना सीखा नहीं तो इतना दूर निकलने की क्या जरुरत थी ? वह अपने मित्र के साथ मिलकर नन्हे पंछी का मज़ाक उड़ाने लगा ।
 उन लोगो की बातों से नन्हा पंछी बहुत क्रोधित हो रहा था ।

अनजान पंछी हँसते हुए बोला – देखो हम तो उड़ान भरना जानते हैं और अपनी मर्जी से कहीं भी जा सकते हैं । इतना कहकर अनजान पंछी ने उस नन्हे पंछी के सामने पहली उड़ान भरी । वह फिर थोड़ी देर बाद लौटकर आया और दो-चार कड़वी बातें बोल पुनः उड़ गया । ऐसा उसने पांच- छः बार किया और जब इस बार वो उड़ान भर के वापस आया तो नन्हा पंछी वहां नहीं था ।

अनजान पंछी अपने मित्र से- नन्हे पंछी ने उड़ान भर ली ना? उस समय अनजान पंछी के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी ।

मित्र पंछी – हाँ नन्हे पंछी ने तो उड़ान भर ली लेकिन तुम इतना खुश क्यों हो रहे हो मित्र? तुमने तो उसका कितना मज़ाक बनाया ।

अनजान पंछी – मित्र तुमने मेरी सिर्फ नकारात्मकता पर ध्यान दिया । लेकिन नन्हा पंछी मेरी नकारात्मकता पर कम और सकारात्मकता पर ज्यादा ध्यान दे रहा था । इसका मतलब यह है कि उसने मेरे मज़ाक को अनदेखा करते हुए मेरी उड़ान भरने वाली चाल पर ज्यादा ध्यान दिया और वह उड़ान भरने में सफल हुआ ।

मित्र पंछी – जब तुम्हे उसे उड़ान भरना सिखाना ही था तो उसका मज़ाक बनाकर क्यों सिखाया ?

अनजान पंछी – मित्र, नन्हा पंछी अपने जीवन की पहली बड़ी उड़ान भर रहा था और मैं उसके लिए अजनबी था । अगर मैं उसको सीधे तरीके से उड़ना सिखाता तो वह पूरी ज़िंदगी मेरे उपकार के नीचे दबा रहता और आगे भी शायद ज्यादा कोशिश खुद से नहीं करता ।

मैंने उस पंछी के अंदर छिपी लगन देखी थी। जब मैंने उसको कोशिश करते हुए देखा था तभी समझ गया था इसे बस थोड़ी सी दिशा देने की जरुरत है और जो मैंने अनजाने में उसे दी और वो अपने मंजिल को पाने में कामयाब हुआ ।अब वो पूरी ज़िंदगी खुद से कोशिश करेगा और दूसरों से कम मदद मांगेगा । इसी के साथ उसके अंदर आत्मविश्वास भी ज्यादा बढ़ेगा ।

मित्र पंछी ने अनजान पंछी की तारीफ करते हुए बोला तुम बहुत महान हो, जिस तरह से तुमने उस नन्हे पंछी की मदद की वही सच्ची मदद है !

🌹 *शिक्षा* -
मित्रों , सच्ची  मदद  वही  है  जो  मदद  पाने  वाले  को  ये  महसूस  न  होने  दे  कि  उसकी  मदद  की  गयी  है  . बहुत  बार  लोग  मदत तो  करते  हैं  पर  उसका  ढिंढोरा  पीटने  से  नहीं  चूकते . ऐसी  मदत किस  काम की  ! पंछियों की  ये  कहानी  हम  इंसानो  के  लिए  भी  एक  सीख  है  कि  हम  लोगों  की  मदद  तो  करें  पर  उसे  जताएं नहीं !

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*प्रेरक प्रसंग*
🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀

दोस्तो,एक बूढे पिता अपने IAS बेटे के चेंबर में  जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया !

और प्यार से अपने पुत्र से पूछा...

"इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान कौन है"?

पुत्र ने पिता को बड़े प्यार से हंसते हुए कहा "मेरे अलावा कौन हो सकता है पिताजी "!

पिता को इस जवाब की  आशा नहीं थी, उसे विश्वास था कि उसका बेटा गर्व से कहेगा पिताजी इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान आप हैैं, जिन्होंने मुझे इतना योग्य बनाया !

उनकी आँखे छलछला आई !
वो चेंबर के गेट को खोल कर बाहर निकलने लगे !

उन्होंने एक बार पीछे मुड़ कर पुनः बेटे से पूछा एक बार फिर बताओ इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान कौन है ???

       पुत्र ने  इस बार कहा...
         "पिताजी आप हैैं,
       इस दुनिया के सब से
        शक्तिशाली इंसान "!

पिता सुनकर आश्चर्यचकित हो गए उन्होंने कहा "अभी तो तुम अपने आप को इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान बता रहे थे अब तुम मुझे बता रहे हो " ???*

पुत्र ने हंसते हुए उन्हें अपने सामने बिठाते  हुए कहा ..

*"पिताजी उस समय आप का हाथ मेरे कंधे पर था, जिस पुत्र के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ हो वो पुत्र तो दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान ही होगा ना,,,,,*

बोलिए पिताजी"  !

पिता की आँखे भर आई उन्होंने अपने पुत्र को कस कर के अपने गले लगा लिया !
    "तब में चन्द पंक्तिया लिखता हुं"*
          जो पिता के पैरों को छूता है *वो कभी गरीब नहीं होता।

जो मां के पैरों को छूता है  वो कभी बदनसीब नही होता।

जो भाई के पैराें को छुता हें वो कभी गमगीन नही होता।

जो बहन के पैरों को छूता है वो कभी चरित्रहीन नहीं होता।

जो गुरू के पैरों को छूता है
 उस जेसा कोई खुशनसीब नहीं होता.......

💞अच्छा दिखने के लिये मत जिओ
          *बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओ💞

 💞जो झुक सकता है वह सारी*
          ☄दुनिया को झुका सकता है 💞

🙏🙏🌹 🌹🙏🙏
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*आज का प्रेरक प्रसंग*


             *!!!---: मन की आवाज :---!!!*
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एक बुढ़िया बड़ी सी गठरी लिए चली जा रही थी। चलते-चलते वह थक गई थी। तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है। उसे देख बुढ़िया ने आवाज दी, ‘अरे बेटा, एक बात तो सुन।’ घुड़सवार रुक गया। उसने पूछा, ‘क्या बात है माई ?’ बुढ़िया ने कहा, ‘बेटा, मुझे उस सामने वाले गांव में जाना है। बहुत थक गई हूं। यह गठरी उठाई नहीं  जाती। तू भी शायद उधर ही जा रहा है। यह गठरी घोड़े पर रख ले। मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।’

उस व्यक्ति ने कहा, ‘माई तू पैदल है। मैं घोड़े पर हूं। गांव अभी बहुत दूर है।.पता नहीं तू कब तक वहां पहुंचेगी। मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा। वहां पहुंचकर क्या तेरी प्रतीक्षा करता रहूंगा?’ यह कहकर वह चल पड़ा। कुछ ही दूर जाने के बाद उसने अपने आप से कहा, ‘तू भी कितना मूर्ख है। वह वृद्धा है, ठीक से चल भी नहीं सकती। क्या पता उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं। तुझे गठरी दे रही थी। संभव है उस गठरी में कोई कीमती सामान हो। तू उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता। चल वापस, गठरी ले ले।

वह घूमकर वापस आ गया और बुढ़िया से बोला, ‘माई, ला अपनी गठरी। मैं ले चलता हूं। गांव में रुककर तेरी राह देखूंगा।’

बुढ़िया ने कहा, ‘न बेटा, अब तू जा, मुझे गठरी नहीं देनी।’ घुड़सवार ने कहा, ‘अभी तो तू कह रही थी कि ले चल। अब ले चलने को तैयार हुआ तो गठरी दे नहीं रही। ऐसा क्यों? यह उलटी बात तुझे किसने समझाई है?’

बुढ़िया मुस्कराकर बोली, ‘उसी ने समझाई है जिसने तुझे यह समझाया कि माई की गठरी ले ले। जो तेरे भीतर बैठा है वही मेरे भीतर भी बैठा है। तुझे उसने कहा कि गठरी ले और भाग जा। मुझे उसने समझाया कि गठरी न दे, नहीं तो वह भाग जाएगा। तूने भी अपने मन की आवाज सुनी और मैंने भी सुनी।

राष्ट्रीय बालिका दिवस 2020: इसके बारे में सब कुछ जानें  National Girl Child Day 2020 theme in India

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राष्ट्रीय बालिका दिवस 2020
National Girl Child Day 2020
राष्ट्रीय बालिका दिवस 2020 आज मनाया जा रहा है। यह दिन भारत में बालिका अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करता है।


राष्ट्रीय बालिका दिवस 2020
National Girl Child Day 2020

 यह दिन हर साल 24 जनवरी को देश भर में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य देश की लड़कियों को हर लिहाज से अधिक से अधिक सहायता और सुविधाएं प्रदान करना है। इसके अलावा, राष्ट्रीय बालिका दिवस का एक अन्य उद्देश्य लड़कियों के प्रति भेदभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल से ही लड़कियों को जीवन के हर पहलू में भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। अब, उन्हें उनके उचित अधिकार देने का समय आ गया है। भारत सरकार ने कई अधिनियम लाए हैं और समाज में समानता लाने के लिए संविधान में कई संशोधन किए हैं l


राष्ट्रीय बालिका दिवस का इतिहास
History of National Girl Child Day



भारत में हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 2008 में महिला और बाल विकास मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा की गई थी। 2019 में, इसका विषय "एक उज्जवल कल के लिए लड़कियों का सशक्तीकरण" था।

राष्ट्रीय बालिका दिवस का महत्व
Significance of National Girl Child Day

 भारत सरकार ने एक अभियान के रूप में समाज में समानता लाने के लिए राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत की है। इस अभियान का उद्देश्य देश भर की लड़कियों को जागरूक करना है। साथ ही, इसका उद्देश्य लोगों को यह बताना है कि समाज के निर्माण में महिलाओं का समान योगदान है। सभी क्षेत्रों के लोगों को शामिल किया गया है और उन्हें जागरूक किया गया है कि लड़कियों को भी निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए।

राष्ट्रीय बालिका दिवस 2020 का उद्देश्य 
Objectives of National Girl Child Day

• राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं। 
•पहला - लड़कियों के अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
 • दूसरा, विभिन्न अत्याचारों और असमानताओं के बारे में बात करना, जो लड़कियों को अपने दैनिक जीवन में सामना करना पड़ता है।
 • तीसरा, बालिका शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना।

राष्ट्रीय बालिका दिवस क्यों मनाया जाता है 
Why we celebrate National Girl Child Day

समाज में लड़कियों की स्थिति में सुधार के लिए राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। महिलाओं को अपने घरों, कार्यस्थलों और दैनिक जीवन में कई प्रकार के भेदभाव का सामना करना पड़ता है। अब भी, महिलाओं को न केवल गाँव में, बल्कि शहरों में भी कई तरह से लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। लड़कियों की स्थितियों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए देश भर में कई कार्यक्रम और अभियान चलाए जाते हैं।

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*आज का प्रेरक प्रसंग*

 परमात्मा से मिलन 


एक चोर अक्सर एक साधु के पास आता और उससे ईश्वर से साक्षात्कार का उपाय पूछा करता था। लेकिन साधु टाल देता था। लेकिन चोर पर इसका असर नहीं पड़ता था। वह रोज पहुँच जाता था।

एक दिन साधु ने कहा, 'तुम्हें सिर पर कुछ पत्थर रखकर पहाड़ पर चढ़ना होगा। वहाँ पहुंचने पर ही ईश्वर के दर्शन की व्यवस्था की जाएगी।'

चोर के सिर पर पांच पत्थर लाद दिए गए और साधु ने उसे अपने पीछे-पीछे चले आने को कहा।

इतना भार लेकर वह कुछ ही दूर चला तो पत्थरों के बोझ से उसकी गर्दन दुखने लगी। उसने अपना कष्ट कहा तो साधु ने एक पत्थर फिंकवा दिया।

थोड़ी देर चलने पर शेष भार भी कठिन प्रतीत हुआ तो चोर की प्रार्थना पर साधु ने दूसरा पत्थर भी फिंकवा दिया। यही क्रम आगे भी चला। अंत में सब पत्थर फेंक दिए गए और चोर सुगमतापूर्वक पर्वत पर चढ़ता हुआ ऊँचे शिखर पर जा पहुंचा।

साधु ने कहा, 'जब तक तुम्हारे सिर पर पत्थरों का बोझ रहा, तब तक पर्वत के ऊँचे शिखर पर तुम्हारा चढ़ सकना संभव नहीं हो सका। पर जैसे ही तुमने पत्थर फेंके, वैसे ही चढ़ाई सरल हो गई। इसी तरह पापों का बोझ सिर पर लादकर कोई मनुष्य ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता।'

चोर साधु का आशय समझ गया । उसने कहा, 'आप ठीक कह रहे हैं । मैं ईश्वर को पाना तो चाहता था, पर अपने बुरे कर्मों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।' उस दिन से चोर पूरी तरह बदल गया।
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बहुत मर्मस्पर्शी

*जन्मदिन का उपहार*

मैं सुचित्रा। आज मेरा जन्मदिन है।

सचिन ने सुबह ही कहा : *" आज कुछ बनाना नहीं। लंच के लिए हम बाहर चलेंगे। तुम्हारे जन्मदिन पर आज तुम्हें एक अनोखी ट्रीट मिलेगी। "*

10 साल हो गए हमारी शादी को। मैं सचिन को बहुत अच्छे से जानती हूँ। जीवन के अनोखे अनुभव देना, दुनिया से अलग कुछ मजेदार करना उसकी आदत में शुमार है।
दोनों बच्चे शाम 4 बजे स्कूल से लौटेंगे यानी लंच पर मैं और सचिन ही जाएँगे और बच्चों के आने से पहले लौट भी आएँगे।

दोपहर 12 बजे हम घर से निकले।
एक नए बने मॉल की पार्किंग में हमारी गाड़ी पहुँची। पार्किंग की लिफ्ट में हम दाखिल हुए और सचिन ने 5 वीं मंजिल का स्विच दबाया।
इस मंजिल पर खाने पीने के ढेरों स्टॉल्स थे लेकिन सचिन मेरा हाथ थामे उन सारे स्टॉल्स के सामने से आगे बढ़ता गया। फाइनली एक बंद द्वार पर हम पहुँचे। *द्वार पर एक बोर्ड लगा था, जिसपर लिखा था : “ Dialogue in the dark ”*

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। *" अंधेरे में संवाद " ? ये कैसा नाम है, रेस्टॉरेंट का ?*

द्वार ठेलकर हम अंदर पहुँचे। वो एक मध्यम आकार बिना चेयर टेबल्स वाला कमरा था। रिसेप्शन काउंटर के पीछे से तुरंत एक सूटबूटधारी बाहर आया और स्वागत भरे स्वर में हमसे बोला : *" वेलकम मिस्टर सचिन। हैप्पी बर्थडे टू यू मैडम। "*

मैं समझ गई कि, सचिन पहले ही सारी व्यवस्था कर चुका है। फिर सूटबूटधारी बोला : *" सर, मैडम, यू आर अवर स्पेशल गेस्ट टुडे। कहिए क्या लेंगे आप ? "*
उसने काउंटर पर से उठाकर एक मैनू कार्ड हमें दिया। सचिन ने कार्ड मुझे थमाया। *मुझे अजीब लगा। टेबल पर बैठने से पहले ही ऑर्डर देने की प्रथा मैंने पहली बार अनुभव की। बड़ा विचित्र लग रहा था सब कुछ। मुस्कुराते हुए सचिन, मेरे चेहरे पर आते जाते भावों को पढ़ जैसे आनंदित हो रहा था। फिर मैंने ऑर्डर दिया और वह आदमी हमें कमरे के एक अन्य दरवाजे पर ले गया और उसे खोला।*

सामने एक संकरा गलियारा नजर आया जिसपर 3 लोग एक साथ नहीं चल सकते थे। वो आदमी आगे बढ़ा और हम उसके पीछे। कुछ कदम बाद गलियारा दाएँ मुड़ गया। हम भी मुड़े। पीछे कमरे की जो थोड़ी बहुत रोशनी आ रही थी, वो भी खत्म हो गई। उस गलियारे में प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं थी। अगले मोड़ के बाद इतना अंधेरा हो गया कि, मैंने सचिन का हाथ पकड़ लिया और दूसरे हाथ को गलियारे की दीवार को महसूस करती आगे बढ़ती रही। सचिन मेरे हाथ पर दबाव बढ़ाकर जैसे मुझे सांत्वना दे रहा था। अगले *मोड़ के बाद हाथ को हाथ सुझाई देना भी बंद हो गया। आँखें फाड़ फाड़कर देखने के बाद भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन हवा ठंडी और खुशबूदार थी। फिर शायद हम एक हॉल में पहुँचे।*

उस आदमी ने किसी को आवाज लगाई : *" संपत। "*

*“ यस सर। ”* अंधेरे में ही जवाब मिला। फिर किसी के करीब आते कदमों की आवाज आई।

*“ ये आज के हमारे स्पेशल गेस्ट हैं। आज मैडम का बर्थडे है। गिव देम स्पेशल ट्रीट। ऑर्डर मैंने ले लिया है, तुम इन्हें इनकी टेबलपर लेकर जाओ। "*

*“ यस सर। ”* : अंधेरे में फिर वही आवाज एकदम करीब सुनाई दी।
अब उस दूसरे आदमी संपत ने हमारे हाथ थामे और हमें टेबल पर पहुँचाया। फिर चेयर सरकाने की आवाज आई और उसने मेरा हाथ चेयर की पीठ पर रखा। वैसे ही जरूर सचिन के साथ भी किया होगा।

हम बैठ गए। *मैंने सामने टेबल पर हाथ फिराया। जब टेबल ही नहीं दिख रहा तो खाना कैसे दिखेगा ? हम खाना कैसे खाएँगे ? ये सचिन की कैसी जग से निराली पार्टी है ? ये कैसा जन्मदिन का उपहार है ? ऐंसे न जाने कितने प्रश्न मेरे दिमाग में घुमड़ रहे थे। लेकिन मुझे सचिन पर भरोसा था। आज जरूर उसने मेरे लिए कुछ अलग, कुछ आश्चर्यजनक कर रखा है।*

फिर कोई आया और उसने हमारे हाथ धुलवाए। फिर टेबल पर प्लेट्स आदि सजाए जाने की आवाजें आने लगीं। वेटर्स का आना जाना समझ में आ रहा था। फिर *संपत ने मेरे हाथ प्लेट्स पर छुआए और उनकी पोजीशन बताई। चम्मच मेरे हाथ में पकड़ाया। फिर वो प्लेट्स में खाना सर्व करने लगा।*

सबकुछ सर्व होने के बाद वो बोला : *" मैंने परोस दिया है। अब आप लोग शुरू कीजिए। आपको कुछ दिखेगा नहीं लेकिन मुझे विश्वास है कि, स्पर्श और खुशबू से आपको खाने में एक अलग ही आनंद प्राप्त होगा। "*

उस घनघोर अंधेरे में मैंने रोटी तोड़ी, प्लेट में रखी सब्जी को लपेटा और पहला निवाला लिया। फिर ऐंसे ही अंदाज से 4-5 निवाले और खाए। उल्टे हाथ से मैंने प्लेट पकड़ी हुई थी अतः प्रत्येक पदार्थ की जगह सीधे हाथ के स्पर्श से मुझे ज्ञात हो रही थी।

और फिर, *आहा... अंधेरे में भी मैं बड़ी सहजता से भोजन कर पा रही थी। खाने के पदार्थ तो अपने स्वाद का मजा दे ही रहे थे लेकिन साथ ही इस अनोखे खेल में एक अलग ही आनंद की अनुभूति हम दोनों को ही हो रही थी।  सचिन ने किस पदार्थ का निवाला लिया ये मैं पूछ रही थी और ऐंसे ही सचिन मुझसे पूछता जा रहा था। कभी कभी हम दोनों का जवाब एक ही होता था तो कभी अलग। बहुत मजा आ रहा था।  उस स्याह अंधकार में, खुशबू, स्पर्श और आवाज बस यही काम कर रहे थे। बीच बीच में संपत, सब्जियाँ या अन्य कुछ और परोस देता।*

हमें *खुद नहीं समझ आ रहा था कि, प्लेट में कौन सा पदार्थ खत्म हुआ लेकिन संपत को शायद दिव्यदृष्टि प्राप्त थी, जो वो तुरंत समझ जाता और पुनः वह पदार्थ परोस देता।*
आखीर में *संपत स्वीट डिश लाया जो उसने हमारे हाथों में थमा दी।*

मेरा *जन्मदिन, अंधेरे में लंच, एक अनोखा आनंद दे गया। कदाचित कैंडल लाइट डिनर से भी अधिक आनंददायक रहा।*

*" आप जब, बाहर जाना चाहें तो बताइएगा। मैं आपको बाहर छोड़ आऊँगा। "* ---संपत ने कहा।

तो सचिन बोल पड़ा : *" हाँ.... हाँ.... अब चलो। बिल भी तो बाहर ही पे करना है। चलो संपत, ले चलो हमें। "*

फिर संपत ने हम दोनों के हाथ थामे और हमें बाहर को ले चला। अंधेरे हॉल से बाहर निकल हम गलियारे में पहुँचे तो दूसरा खाली हाथ स्वतः ही दीवार को छूने लगा।
दो मोड़ों के बाद प्रकाश दिखने लगा और हम संपत का हाथ छोड़ उसके पीछे चलते रहे।

फाइनली रिसेप्शन काउंटर वाले रूम में हम पहुँचे। सचिन बिल देने काउंटर पर पहुँचा और संपत लौटकर गलियारे की ओर बढ़ा। उसका आभार मानने के लिए मैंने उसे आवाज लगाई तो संपत पलटा और मेरी ओर देखने लगा।
तब कमरे के प्रकाश में मैंने संपत का चेहरा देखा और *मैं जहाँ की तहाँ खड़ी रह गई, मेरे मुँह से हल्की चीख निकल गई क्योंकि, संपत की आँखों की जगह दो अंधेरे गढ्ढे नजर आ रहे थे। वो पूर्ण रूप से अँधा था।*

संपत बोला : *" येस मैडम ? "*

मैं समझ नहीं पा रही थी कि, क्या कहूँ ? फिर मैंने कहा : *" संपत, अपनी ऐंसी हालत में भी तुमने, हमारी खूब और दिलखुश सेवा की, इतनी बढ़िया खातिरदारी की। मैं ये बात सारी जिंदगी नहीं भूलूँगी। "*

संपत : *" मैडम, आपने जिस अंधेरे को आज अनुभव किया है वो तो हमारा रोज का ही है। लेकिन हमने उसपर विजय पा ली है। We are not disabled, we are differently able people. We can lead our life without any problem with all joy and happiness as you enjoy. ”*

मुझे अपने सहानुभूति पूर्ण बोले गए शब्दों पर खुद ही लज्जा आई। *बिना किसी की सहानुभूति के मोहताज एक सशक्त व्यक्ति से आज सचिन ने मुझे मिलवाया। ऐंसा जन्मदिन मुझे कभी नहीं भूलेगा। मुझे अभिमान है अपने सचिन पर।*

सचिन बिल देकर मेरे पास आया और बिल मेरे हाथ में पकड़ाया। हमेशा सचिन को उसकी फिजूलखर्ची के चिल्लाने वाली मैंने, बिल को देखा तो मेरी नजर बिल पर सबसे नीचे लिखे प्रिंटेड शब्दों पर ठहर गई.......

लिखा था : *We do not accept tips, Please think of donating your eyes, which will bring light to somebody’s life.* (हम टिप्स स्वीकार नहीं करते। कृपया अपने नेत्रदान के बारे में सोचें, जो किसी के जीवन में रोशनी ले आएगा)

*नेत्रदान महादान...*🙏

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ANTYODAY - TOYS AND VASTRA BANK* '  द्वारा खिलौना बैंक की स्थापना

ANTYODAY - TOYS AND VASTRA BANK* ' द्वारा खिलौना बैंक की स्थापना


ANTYODAY - TOYS AND VASTRA BANK द्वारा राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेघातफला में खिलौना बैंक की स्थापना
आज दिनांक *20 जनवरी 2020* को ' *ANTYODAY - TOYS AND VASTRA BANK* '  द्वारा *राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेघातफला (नालहल्कार) ब्लॉक-सराडा, जिला - उदयपुर (राज)* में खिलौना बैंक की स्थापना की गई |
  कार्यक्रम *पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी श्रीमती ज्योति शर्मा* के मार्गदर्शन में पूरा हुआ| *पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी श्रीमती ज्योति शर्मा* ने ' *अंत्योदय टॉयज एंड वस्त्र बैंक* ' की टीम की इस पुण्य कार्य की भुरी-भुरी प्रशंसा की  | 

इस अवसर पर *संस्था प्रधान श्रीमती सुगना मीणा* ने *पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी श्रीमती ज्योति शर्मा* तथा उपस्थित अभिभावकगण तथा *एसएमसी सदस्यों* का आभार व्यक्त किया |  आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह *खिलौना बैंक श्रीमान महेंद्र जी मेहता  (मुंबई)* द्वारा स्थापित करने में सहयोग प्रदान किया गया हैl 
इस अवसर पर अध्यापक कल्पेश गर्ग, अध्यापक श्री इंद्रजीत मीणा तथा कुक कम हेल्पर श्रीमती लक्ष्मी मीणा w/o श्री रूपजी मीणा तथा श्रीमती लक्ष्मी मीणा W/o श्री मंगला मीणा मौजूद थे |
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*राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेघातफला (नालहल्कार)*

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*आज का प्रेरक प्रसंग*
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*💐👳🏼‍♀कबीर जी की पगड़ी👳🏼‍♀💐💐*

        *एक प्रसिद्ध किवंदती हैं। एक बार संत कबीर ने बड़ी कुशलता से पगड़ी बनाई। झीना- झीना कपडा बुना और उसे गोलाई में लपेटा। हो गई पगड़ी तैयार। वह पगड़ी जिसे हर कोई बड़ी शान से अपने सिर सजाता हैं। यह नई नवेली पगड़ी लेकर संत कबीर दुनिया की हाट में जा बैठे। ऊँची- ऊँची पुकार उठाई- 'शानदार पगड़ी! जानदार पगड़ी! दो टके की भाई! दो टके की भाई!'*

      *एक खरीददार निकट आया। उसने घुमा- घुमाकर पगड़ी का निरीक्षण किया। फिर कबीर जी से प्रश्न किया- 'क्यों महाशय एक टके में दोगे क्या?' कबीर जी ने अस्वीकार कर दिया- 'न भाई! दो टके की है। दो टके में ही सौदा होना चाहिए।' खरीददार भी नट गया। पगड़ी छोड़कर आगे बढ़ गया। यही प्रतिक्रिया हर खरीददार की रही।*

       *सुबह से शाम हो गई। कबीर जी अपनी पगड़ी बगल में दबाकर खाली जेब वापिस लौट आए। थके- माँदे कदमों से घर- आँगन में प्रवेश करने ही वाले थे कि तभी... एक पड़ोसी से भेंट हो गई। उसकी दृष्टि पगड़ी पर पड गई। 'क्या हुआ संत जी, इसकी बिक्री नहीं हुई?'- पड़ोसी ने जिज्ञासा की। कबीर जी ने दिन भर का क्रम कह सुनाया। पड़ोसी ने कबीर जी से पगड़ी ले ली- 'आप इसे बेचने की सेवा मुझे दे दीजिए। मैं कल प्रातः ही बाजार चला जाऊँगा।'*

     *अगली सुबह... कबीर जी के पड़ोसी ने ऊँची- ऊँची बोली लगाई- 'शानदार पगड़ी! जानदार पगड़ी! आठ टके की भाई! आठ टके की भाई!' पहला खरीददार निकट आया, बोला- 'बड़ी महंगी पगड़ी हैं! दिखाना जरा!'*

*पडोसी- पगड़ी भी तो शानदार है। ऐसी और कही नहीं मिलेगी।*

*खरीददार- ठीक दाम लगा  लो, भईया।*

*पड़ोसी- चलो, आपके लिए- सात टका लगा देते हैं।*

*खरीददार - ये लो छः टका। पगड़ी दे दो।*

    *एक घंटे के भीतर- भीतर पड़ोसी पगड़ी बेचकर वापस लौट आया। कबीर जी के चरणों में छः टके अर्पित किए। पैसे देखकर कबीर जी के मुख से अनायास ही निकल पड़ा-*

*सत्य गया पाताल में,*
          *झूठ रहा जग छाए।*
*दो टके की पगड़ी,*
        *छः टके में जाए।।*

   *यही इस जगत का व्यावहारिक सत्य है। सत्य के पारखी इस जगत में बहुत कम होते हैं। संसार में अक्सर सत्य का सही मूल्य नहीं मिलता, लेकिन असत्य बहुत ज्यादा कीमत पर बिकता हैं। इसलिए कबीर जी ने कहा-*

*'सच्चे का कोई ग्राहक नाही, झूठा जगत पतीजै जी।*

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moral stories in hindi,kahaniya hindi,kahaniya in hindi,hindi me kahaniya,hindi mein kahani,kahaniyan hindi गुरु का आदेश

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*आज का प्रेरक प्रसंग*

*गुरु का आदेश*

    *एक शिष्य था समर्थ गुरु रामदास जी का जो भिक्षा लेने के लिए गांव में गया और घर-घर भिक्षा की मांग करने लगा।*
*समर्थ गुरु की जय ! भिक्षा देहिं....*
*समर्थ गुरु की जय ! भिक्षा देहिं....*
 *एक घर के भीतर से जोर से दरवाजा खुला ओर एक  बड़ी-बड़ी दाढ़ी वाला तान्त्रिक बाहर निकला और चिल्लाते हुए बोला - मेरे दरवाजे पर आकर किसी दूसरे का गुणगान करता है। कौन है ये समर्थ??*
*शिष्य ने गर्व से कहा-- *मेरे गुरु समर्थ रामदास जी... जो सर्व समर्थ है।*
  *तांत्रिक ने सुना तो क्रोध में आकर बोला कि इतना दुःसाहस कि मेरे दरवाजे पर आकर किसी और का गुणगान करे .. तो देखता हूँ कितना सामर्थ्य है तेरे गुरु में !*
*मेरा श्राप है कि तू कल का उगता सूरज नही देख पाएगा अर्थात् तेरी मृत्यु हो जाएगी।*
  *शिष्य ने सुना तो देखता ही रह गया और आस-पास के भी गांव वाले कहने लगे कि इस तांत्रिक का दिया हुआ श्राप कभी भी व्यर्थ नही जाता.. बेचारा युवावस्था में ही अपनी जान गवा बैठा....*
    *शिष्य उदास चेहरा लिए वापस आश्रम की ओर चल दिया और सोचते-सोचते जा रहा था कि आज मेरा अंतिम दिन है, लगता है मेरा समय खत्म हो गया है।*
   *आश्रम में जैसे ही पहुँचा। गुरु सामर्थ्य रामदास जी हँसते हुए बोले -- *ले आया भिक्षा?*
  *बेचार शिष्य क्या बोले---!*


  *गुरुदेव हँसते हुए बोले कि भिक्षा ले आया।*
*शिष्य--*  *जी गुरुदेव! भिक्षा में मैं अपनी मौत ले आया हूँ !* *और सारी घटना सुना दी और एक कोने में चुप-चाप बैठ गया।*
*गुरुदेव बोले अच्छा चल भोजन कर ले!*
*शिष्य--* *गुरुदेव! आप भोजन करने की बात कर रहे है और यहाँ मेरा प्राण सूख रहा है। भोजन तो दूर एक दाना भी मुँह में न जा पाएगा।*
*गुरुदेव बोले---*
*अभी तो पूरी रात बाकी है अभी से चिंता क्यों कर रहा है, चल ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा। ओर यह कहकर गुरुदेव भोजन करने चले गए।*
  *फिर सोने की बारी आई तब गुरुदेव शिष्य को बुलाकर आदेश किया - *हमारे चरण दबा दे!*
*शिष्य मायूस होकर बोला! जी गुरुदेव जो कुछ क्षण बचे है जीवन के, वे क्षण मैं आपकी सेवा कर ही प्राण त्याग करूँ यहिं अच्छा होगा। ओर फिर गुरुदेव के चरण दबाने की सेवा शुरू की।*
*गुरुदेव बोले--* *चाहे जो भी हो जाय चरण छोड़ कर कहीं मत जाना!*
*शिष्य--* *जी गुरुदेव कही नही जाऊँगा।*
*गुरुदेव ने अपने शब्दों को तीन बार दोहराया कि *चरण मत छोड़ना, चाहे जो हो जाए।*
   *यह कह कर गुरुदेव सो गए।*
*शिष्य पूरी भावना से चरण दबाने लगा!*
  *रात्रि का पहला पहर बीतने को था अब तांत्रिक अपनी श्राप को पूरा करने के लिए एक देवी को भेजा जो धन से सोने-चांदी से, हीरे-मोती से भरी थाली हाथ में लिए थी।*
    *शिष्य चरण दबा रहा था। तभी दरवाजे पर वो देवी प्रकट हुई और कहने लगी - कि इधर आओ ओर ये थाली ले लो। शिष्य भी बोला-- जी मुझे लेने में कोई परेशानी नही है लेकिन क्षमा करें! मैं वहाँ पर आकर नही ले सकता। अगर आपको देना ही है तो यहाँ पर आकर रख दीजिए।*
 *तो वह देवी कहने लगी कि-- नही !! नही!! तुम्हे यहाँ आना होगा। देखो कितना सारा माल है। शिष्य बोला-- नही। अगर देना है तो यही आकर रख दो।*
*तांत्रिक ने अपना पहला पासा असफल देख दूसरा पासा फेंका रात्रि का दूसरा पहर बीतने को था तब तांत्रिक ने भेजा....*

*शिष्य समर्थ गुरु रामदास जी के चरण दबाने की सेवा कर रहा था तब रात्रि का दूसरा पहर बीता और तांत्रिक ने इस बार उस शिष्य की माँ का रूप बनाकर एक नारी को भेजा।*
   *शिष्य गुरु के चरण दबा रहा था तभी दरवाजे पर आवाज आई -- बेटा! तुम कैसे हो?*
*शिष्य ने अपनी माँ को देखा तो सोचने लगा अच्छा हुआ जो माँ के दर्शन हो गए, मरते वक्त माँ से भी मिल ले।*
*वह औरत जो माँ के रूप को धारण किये हुए थी बोली - आओ बेटा गले से लगा लो! बहुत दिन हो गए तुमसे मिले।*
*शिष्य बोला-- क्षमा करना मां! लेकिन मैं वहाँ नही आ सकता क्योंकि अभी गुरुचरण की सेवा कर रहा हूँ। मुझे भी आपसे गले लगना है इसलिए आप यही आ कर बैठ जाओ।*
  *फिर उस औरत ने देखा कि चाल काम नही आ रहा है तो वापिस चली गई।*
  *रात्रि का तीसरा पहर बीता ओर इस बार तांत्रिक ने यमदूत रूप वाला राक्षस भेजा।*
 *राक्षस पहुँच कर उस शिष्य से बोला कि चल तुझे लेने आया हूँ तेरी मृत्यु आ गई है। उठ ओर चल....*
*शिष्य भी झल्लाकर बोला-- काल हो या महाकाल मैं नही आने वाला ! अगर मेरी मृत्यु आई है तो यही आकर मेरे प्राण ले लो,लेकिन मैं गुरु के चरण नही छोडूंगा!*
*फिर राक्षस भी उसका दृढ़। निश्चय देख कर वापिस चला गया।*
  *सुबह हुई चिड़ियां अपनी घोसले से निकलकर चिचिहाने लगी। सूरज भी उदय हो गया।*
  *गुरुदेव रामदास जी नींद से उठे और शिष्य से पूछा कि - सुबह हो गई क्या ?*
*शिष्य बोला-- जी! गुरुदेव सुबह हो गई*
*गुरुदेव - अरे! तुम्हारी तो मृत्यु होने वाली थी न, तुमने ही तो कहा था कि तांत्रिक का श्राप कभी व्यर्थ नही जाता। लेकिन तुम तो जीवित हो...!! गुरुदेव ने मुस्कराते हुए ऐसा बोला।*
*शिष्य भी सोचते हुए कहने लगा - जी गुरुदेव, लग तो रहा हूँ कि जीवित ही हूँ। अब शिष्य को समझ में आई कि गुरुदेव ने क्यों कहा था कि* --- *चाहे जो भी हो जाए चरण मत छोड़ना।* *शिष्य गुरुदेव के चरण पकड़कर खूब रोने लगा  बार बार मन ही मन यही सोच रहा था;* - *जिसके सिर उपर आप जैसे गुरु का हाथ हो तो उसे काल भी कुछ नही कर सकता है।*
    *मतलब कि गुरु की आज्ञा पर जो शिष्य चलता है उससे तो स्वयं मौत भी आने से एक बार नही अनेक बार सोचती है।*
*करता करें न कर सके, गुरु करे सो होय*
*तीन-लोक,नौ खण्ड में गुरु से बड़ा न कोय*
 
*पूर्ण सद्गुरु में ही सामर्थ्य है कि वो प्रकृति के नियम को बदल सकते है जो ईश्वर भी नही बदल सकते, क्योंकि ईश्वर भी प्रकृति के नियम से बंधे होते है लेकिन पूर्ण सद्गुरु नही। 🙏🏼*
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20 जनवरी 2020 परीक्षा पर चर्चा : माननीय प्रधानमंत्री महोदय श्रीमान नरेंद्र मोदी

20 जनवरी 2020 परीक्षा पर चर्चा : माननीय प्रधानमंत्री महोदय श्रीमान नरेंद्र मोदी


20 जनवरी 2020 परीक्षा पर चर्चा : माननीय प्रधानमंत्री महोदय श्रीमान नरेंद्र मोदी द्वारा प्रदान किए गए टिप्स :*

● जानने की इच्छा रखिए
● प्रतिदिन 10 नए शब्द सीखिए
● चुनौतियों के लिए तैयार रहिए ●राष्ट्र के लिए हमारे कुछ कर्तव्य है
 ● परीक्षा में प्राप्त अंक जिंदगी नहीं है
● परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होना चाहिए
● पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद व अन्य पाठ्यतर गतिविधियां भी आवश्यक है
 ● नई तकनीक के लिए तैयार रहिए लेकिन तकनीक पर आश्रित मत रहिए
 ● परश्यू करना चाहिए प्रेशर नहीं करना चाहिए
 ● विद्यार्थियों में खुलापन होना चाहिए विद्यार्थी अपने गुरुजनों और अभिभावकों को छोटी-छोटी समस्याएं भी शेयर करें ऐसी स्थिति होनी चाहिए
 ● व्यक्ति के अंदर की क्षमता को प्रेरित करना चाहिए
 ● प्रतिदिन 10 मिनट परिजनों के साथ बैठिए
 ● क्षमता से अधिक किसी पर कुछ नहीं थोपना चाहिए
 ●सदैव नवीन ज्ञान प्राप्त करने हेतु तैयार रहना चाहिए
 ● परीक्षा जिंदगी नहीं है जिंदगी में परीक्षा एक मुकाम है
 ● प्रकृति के साथ संघर्ष टालना चाहिए प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर के जीवन जीना चाहिए
 ● जीवन की सफलता के लिए सिर्फ एक ही रास्ता नहीं है अनेक रास्ते हैं
 ● रात को हल्का भोजन लेना चाहिए
 ● विद्यार्थियों का अवसर प्रदान करने चाहिए
 ● कोई कार्य छोटा बड़ा नहीं होता जीवन में प्रत्येक आवश्यक कार्य महत्वपूर्ण होता है
 ● अपनी जिम्मेदारी को समझना चाहिए
 ● डायरी मेंटेन करनी चाहिए
 ● अध्ययन के लिए श्रेष्ठ समय जल्दी सवेरे सूर्योदय से पूर्व का होता है इसलिए गहरी नींद के बाद सुबह जल्दी 4:00 बजे के आसपास उठना चाहिए ; फिर भी विद्यार्थियों को उनकी सुविधा के समय के अनुसार पढ़ाई करनी चाहिए
 ● मन से असफलता विफलता के भय को दूर करके सफलता के लिए चुनौती स्वीकार करना चाहिए
 ● तनाव परीक्षा का नहीं होता है तनाव आकांक्षा का होता है तनाव पूर्वाग्रह का होता है अपने आप को कैरियर से जोड़ने के कारण तनाव होता है
 ● जीवन में परीक्षा को बोझ नहीं बनने देना चाहिए  परीक्षा कक्ष में  जाने के पश्चात  आत्मविश्वास जाग्रत करना चाहिए प्रश्न पत्र मिलने के बाद सहज हो करके कंफर्ट जोन में आकर के सरल प्रश्नों के उत्तर देना प्रारंभ करना चाहिए
 ● अपने सामर्थ्य को जानना चाहिए
 ● खुद को जानना बड़ा मुश्किल होता है इसलिए खुद के साथ तारतम्य बनाना सीखना चाहिए
 ● बहानेबाजी से बचना चाहिए
 ● ताउम्र सीखते रहना चाहिए
 ● बनने के सपनों में निराशा का भाव उत्पन्न होता है इसलिए कुछ करने का सपना देखना चाहिए
 ●संतोष और विश्वास में तारतम्य होना चाहिए
 ● आने वाला समय हिंदुस्तान का है l

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*आज का प्रेरक प्रसंग*



*!!!---: संस्कार :---!!!*

एक राजा की घोड़ी का एक काना बच्चा था, बच्चे ने मां से इसका कारण पूछा तो घोड़ी बोली, मैं गर्भवती थी, राजा ने मुझे कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया।

बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और बोला, मैं बदला लूंगा।

मां ने कहा, राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है, सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है ।

मगर बच्चे ने राजा से बदला लेने की ठान ली।

एक दिन राजा उसे युद्ध पर ले गया, जहाँ राजा घायल हो गया ।

घोड़े के पास राजा को युद्ध में छोड़कर भागने का मौका था, मगर घोड़े के मन में ऐसा कोई ख्याल नहीं आया और वह राजा को उठाकर महल ले आया।

 घोड़े ने मां से पूछा, युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया, ऐसा क्यों?

घोडी बोली, तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं, तुझसे नमकहरामी हो नहीं सकती, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है । मेरे संस्कार और सीख को तू कैसे झुठला सकता था।


🏆 *शिक्षा*-
ऐसे ही जो मां बाप सत्संगी होते हैं और भजन सिमरन करते हैं तो उनकी भक्ति के संस्कार उनके बच्चों को भी मिलते हैं । अगर बच्चों को भक्ति पथ पर लाना हो तो पहले मां बाप को खुद भक्ति करनी चाहिए ।
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