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आत्म मूल्यांकन


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*आज का प्रेरक प्रसंग*


                   *आत्म मूल्यांकन-*
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एक बार एक व्यक्ति कुछ पैसे निकलवाने के लिए बैंक में गया। उसने एक लाख चालीस हज़ार रुपए निकलवाए थे। उसे पता था कि कैशियर ने ग़लती से एक लाख चालीस हज़ार रुपए देने के बजाय एक लाख साठ हज़ार रुपए उसे दे दिए हैं लेकिन उसने ये आभास कराते हुए कि उसने पैसे गिने ही नहीं और कैशियर की ईमानदारी पर उसे पूरा भरोसा है चुपचाप पैसे रख लिए।

इसमें उसका कोई दोष था या नहीं लेकिन पैसे बैग में रखते ही 20,000 अतिरिक्त रुपयों को लेकर उसके मन में  उधेड़ -बुन शुरू हो गई। एक बार उसके मन में आया कि फालतू पैसे वापस लौटा दे लेकिन दूसरे ही पल उसने सोचा कि जब मैं ग़लती से किसी को अधिक पेमेंट कर देता हूँ तो मुझे कौन लौटाने आता है ???

लेकिन इंसान के अन्दर सिर्फ दिमाग ही तो नहीं होता… दिल और अंतरात्मा भी तो होती है… रह-रह कर उसके अंदर से आवाज़ आ रही थी कि तुम किसी की ग़लती से फ़ायदा उठाने से नहीं चूकते और ऊपर से बेईमान न होने का ढोंग भी करते हो। क्या यही ईमानदारी है?

उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अचानक ही उसने बैग में से बीस हज़ार रुपए निकाले और जेब में डालकर बैंक की ओर चल दिया।

रुपए पाकर कैशियर ने चैन की सांस ली। उसने कस्टमर को अपनी जेब से हज़ार रुपए का एक नोट निकालकर उसे देते हुए कहा, ‘‘भाई साहब आपका बहुत-बहुत आभार! आज मेरी तरफ से बच्चों के लिए मिठाई ले जाना। प्लीज़ मना मत करना।”

‘‘भाई आभारी तो मैं हूँ आपका और आज मिठाई भी मैं ही आप सबको खिलाऊँगा, ’’ कस्टमर ने बोला।

कैशियर ने पूछा, ‘‘ भाई आप किस बात का आभार प्रकट कर रहे हो और किस ख़ुशी में मिठाई खिला रहे हो?’’

कस्टमर ने जवाब दिया,  ‘‘आभार इस बात का कि बीस हज़ार के चक्कर ने मुझे आत्म-मूल्यांकन का अवसर प्रदान किया। आपसे ये ग़लती न होती तो न तो मैं द्वंद्व में फँसता और न ही उससे निकल कर अपनी लोभवृत्ति पर क़ाबू पाता। यह बहुत मुश्किल काम था। घंटों के द्वंद्व के बाद ही मैं जीत पाया। इस दुर्लभ अवसर के लिए आपका आभार।”


*शिक्षा;-*
मित्रों, कहाँ तो वो लोग हैं जो अपनी ईमानदारी का पुरस्कार और प्रशंसा पाने का अवसर नही चूकते और कहाँ वो जो औरों को पुरस्कृत करते हैं। ईमानदारी का कोई पुरस्कार नहीं होता अपितु ईमानदारी स्वयं में एक बहुत बड़ा पुरस्कार है। अपने लोभ पर क़ाबू पाना कोई सामान्य बात नहीं। ऐसे अवसर भी जीवन में सौभाग्य से ही मिलते हैं अतः उन्हें गंवाना नहीं चाहिए अपितु उनका उत्सव मनाना चाहिए ।

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*आज का प्रेरक प्रसंग*
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*💐"चोर की चतुराई*💐



किसी जमाने में एक चोर था। वह बडा ही चतुर था। लोगों का कहना था कि वह आदमी की आंखों का काजल तक उडा सकता था। एक दिन उस चोर ने सोचा कि जबतक वह राजधानी में नहीं जायगा और अपना करतब नहीं दिखायगी, तबतक चोरों के बीच उसकी धाक नहीं जमेगी। यह सोचकर वह राजधानी की ओर रवाना हुआ और वहां पहुंचकर उसने यह देखने के लिए नगर का चक्कर लगाया कि कहां क्या कर सकता है।

उसने तय कि कि राजा के महल से अपना काम शुरू करेगा। राजा ने रातदिन महल की रखवाली के लिए बहुतसे सिपाही तैनात कर रखे थे। बिना पकडे गये परिन्दा भी महल में नहीं घुस सकता था। महल में एक बहुत बडी घडीं लगी थी, जो दिन रात का समय बताने के लिए घंटे बजाती रहती थी।

चोर ने लोहे की कुछ कीलें इकठटी कीं ओर जब रात को घडी ने बारह बजाये तो घंटे की हर आवाज के साथ वह महल की दीवार में एकएक कील ठोकता गया। इसतरह बिना शोर किये उसने दीवार में बारह कीलें लगा दीं, फिर उन्हें पकड पकडकर वह ऊपर चढ गया और महल में दाखिल हो गया। इसके बाद वह खजाने में गया और वहां से बहुत से हीरे चुरा लाया।

अगले दिन जब चोरी का पता लगा तो मंत्रियों ने राजा को इसकी खबर दी। राजा बडा हैरान और नाराज हुआ। उसने मंत्रियों को आज्ञा दी कि शहर की सडकों पर गश्त करने के लिए सिपाहियों की संख्या दूनी कर दी जाय और अगर रात के समय किसी को भी घूमते हुए पाया जाय तो उसे चोर समझकर गिरफतार कर लिया जाय।

जिस समय दरबार में यह ऐलान हो रहा था, एक नागरिक के भेष में चोर मौजूद था। उसे सारी योजना की एक एक बात का पता चल गया। उसे फौरन यह भी मालूम हो यगा कि कौन से छब्बीस सिपाही शहर में गश्त के लिए चुने गये हैं। वह सफाई से घर गया और साधु का वेश धारण करके उन छब्बीसों सिपाहियों की बीवियों से जाकर मिला। उनमें से हरेक इस बात के लिए उत्सुक थी कि उसकी पति ही चोर को पकडे ओर राजा से इनाम ले।

एक एक करके चोर उन सबके पास गया ओर उनके हाथ देख देखकर बताया कि वह रात उसके लिए बडी शुभ है। उसक पति की पोशाक में चोर उसके घर आयेगा; लेकिन, देखो, चोर की अपने घर के अंदर मत आने देना, नहीं तो वह तुम्हें दबा लेगा। घर के सारे दरवाजे बंद कर लेना और भले ही वह पति की आवाज में बोलता सुनाई दे, उसके ऊपर जलता कोयला फेंकना। इसका नतीजा यह होगा कि चोर पकड में आ जायगा।

सारी स्त्रियां रात को चोर के आगमन के लिए तैयार हो गईं। अपने पतियों को उन्होंने इसकी जानकारी नहीं दी। इस बीच पति अपनी गश्त पर चले गये और सवेरे चार बजे तक पहरा देते रहे। हालांकि अभी अंधेरा था, लेकिन उन्हें उस समय तक इधर उधर कोई भी दिखाई नहीं दिया तो उन्होंने सोचा कि उस रात को चोर नहीं आयगा, यह सोचकर उन्होंने अपने घर चले जाने का फैसला किया। ज्योंही वे घर पहुंचे, स्त्रियों को संदेह हुआ और उन्होंने चोर की बताई कार्रवाई शुरू कर दी।

फल वह हुआ कि सिपाही जल गये ओर बडी मुश्किल से अपनी स्त्रियों को विश्वास दिला पाये कि वे ही उनके असली पति हैं और उनके लिए दरवाजा खोल दिया जाय। सारे पतियों के जल जाने के कारण उन्हें अस्पताल ले जाया गया। दूसरे दिन राजा दरबार में आया तो उसे सारा हाल सुनाया गया। सुनकर राजा बहुत चिंतित हुआ और उसने कोतवाल को आदेश दिया कि वह स्वयं जाकर चोर पकड़े।

उस रात कोतवाल ने तेयार होकर शहर का पहरा देना शुरू किया। जब वह एक गली में जा रहा रहा था, चोर ने जवाब दिया, ″मैं चोर हूं।″ कोतवाल समझा कि लड़की उसके साथ मजाक कर रही है। उसने कहा, ″मजाक छाड़ो ओर अगर तुम चोर हो तो मेरे साथ आओ। मैं तुम्हें काठ में डाल दूंगा।″ चोर बाला, ″ठीक है। इससे मेरा क्या बिगड़ेगा!″ और वह कोतवाल के साथ काठ डालने की जगह पर पहुंचा।

वहां जाकर चोर ने कहा, ″कोतवाल साहब, इस काठ को आप इस्तेमाल कैसे किया करते हैं, मेहरबानी करके मुझे समझा दीजिए।″ कोतवाल ने कहा, तुम्हारा क्या भरोसा! मैं तुम्हें बताऊं और तुम भाग जाओं तो ?″ चोर बाला, ″आपके बिना कहे मैंने अपने को आपके हवाले कर दिया है। मैं भाग क्यों जाऊंगा?″ कोतवाल उसे यह दिखाने के लिए राजी हो गया कि काठ कैसे डाला जाता है। ज्यों ही उसने अपने हाथ-पैर उसमें डाले कि चोर ने झट चाबी घुमाकर काठ का ताला बंद कर दिया और कोतवाल को राम-राम करके चल दिया।

जाड़े की रात थी। दिन निकलते-निकलते कोतवाल मारे सर्दी के अधमरा हो गया। सवेरे जब सिपाही बाहर आने लगे तो उन्होंने देखा कि कोतवाल काठ में फंसे पड़े हैं। उन्होंने उनको उसमें से निकाला और अस्पताल ले गये।

अगले दिन जब दरबार लगा तो राजा को रात का सारा किस्सा सुनाया गया। राजा इतना हैरान हुआ कि उसने उस रात चोर की निगरानी स्वयं करने का निश्चय किया। चोर उस समय दरबार में मौजूद था और सारी बातों को सुन रहा था। रात होने पर उसने साधु का भेष बनाया और नगर के सिरे पर एक पेड़ के नीचे धूनी जलाकर बैठ गया।

राजा ने गश्त शुरू की और दो बार साधु के सामने से गुजरा। तीसरी बार जब वह उधर आया तो उसने साधु से पूछा कि, ″क्या इधर से किसी अजनबी आदमी को जाते उसने देखा है?″ साधु ने जवाब दिया कि “वह तो अपने ध्यान में लगा था, अगर उसके पास से कोई निकला भी होगा तो उसे पता नहीं। यदि आप चाहें तो मेरे पास बैठ जाइए और देखते रहिए कि कोई आता-जाता है या नहीं।″ यह सुनकर राजा के दिमाग में एक बात आई और उसने फौरन तय किया कि साधु उसकी पोशाक पहनकर शहर का चक्कर लगाये और वह साधु के कपड़े पहनकर वहां चोर की तलाश में बैठे।

आपस में काफी बहस-मुबाहिसे और दो-तीन बार इंकार करने के बाद आखिर चोर राजा की बात मानने को राजी हो गया ओर उन्होंने आपस में कपड़े बदल लिये। चोर तत्काल राजा के घोड़े पर सवार होकर महल में पहुंचा ओर राजा के सोने के कमरे में जाकर आराम से सो गया, बेचारा राजा साधु बना चोर को पकड़ने के लिए इंतजार करता रहा। सवेरे के कोई चार बजने आये। राजा ने देखा कि न तो साधु लौटा और कोई आदमी या चोर उस रास्ते से गुजरा, तो उसने महल में लौट जाने का निश्चय किया; लेकिन जब वह महल के फाटक पर पहुंचा तो संतरियों ने सोचा, राजा तो पहले ही आ चुका है, हो न हो यह चोर है, जो राजा बनकर महल में घुसना चाहता है। उन्होंने राजा को पकड़ लिया और काल कोठरी में डाल दिया। राजा ने शोर मचाया, पर किसी ने भी उसकी बात न सुनी।

दिन का उजाला होने पर काल कोठरी का पहरा देने वाले संतरी ने राजा का चेहरा पहचान लिया ओर मारे डर के थरथर कांपने लगा। वह राजा के पैरों पर गिर पड़ा। राजा ने सारे सिपाहियों को बुलाया और महल में गया। उधर चोर, जो रात भर राजा के रुप में महल में सोया था, सूरज की पहली किरण फूटते ही, राजा की पोशाक में और उसी के घोड़े पर रफूचक्कर हो गया।

अगले दिन जब राजा अपने दरबार में पहुंचा तो बहुत ही हतरश था। उसने ऐलान किया कि अगर चोर उसके सामने उपस्थितित हा जायगा तो उसे माफ कर दिया जायगा और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कीह जायगी, बल्कि उसकी चतुराई के लिए उसे इनाम भी मिलेगा। चोर वहां मौजूद था ही, फौरन राजा के सामने आ गया ओर बोला, “महाराज, मैं ही वह अपराधीह हूं।″ इसके सबूत में उसने राजा के महल से जो कुछ चुराया था, वह सब सामने रख दिया, साथ ही राजा की पोशाक और उसका घोड़ा भी। राजा ने उसे गांव इनाम में दिये और वादा कराया कि वह आगे चोरी करना छोड़ देगा। इसके बाद से चोर खूब आनन्द से रहने लगा।

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*आज का प्रेरक प्रसंग*
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*💐"पंछी बोला चार पहर"💐*

पुराने समय की बात है। एक राजा था। वह बड़ा समझदार था और हर नई बात को जानने को इच्छुक रहता था। उसके महल के आंगनमें एक बकौली का पेड़ था। रात को रोज नियम से एक पक्षी उस पेड़ पर आकर बैठता और रात के चारों पहरों के लिए अलग-अलग चार तरह की बातें कहा करता। पहले पहर में कहता :
“किस मुख दूध पिलाऊं,
किस मुख दूध पिलाऊं”

दूसरा पहर लगते बोलता :
“ऐसा कहूं न दीख,
ऐसा कहूं न दीख !”

जब तीसरा पहर आता तो कहने लगता :
“अब हम करबू का,
अब हम करबू का ?”

जब चौथा पहर शुरू होता तो वह कहता :
“सब बम्मन मर जायें,
सब बम्मन मर जायें !”

राजा रोज रात को जागकर पक्षी के मुख से चारों पहरों की चार अलग-अलग बातें सुनता। सोचता, पक्षी क्या कहता ?पर उसकी समझ में कुछ न आता। राजा की चिन्ता बढ़ती गई। जब वह उसका अर्थ निकालने में असफल रहा तो हारकर उसने अपने पुरोहित को बुलाया। उसे सब हाल सुनाया और उससे पक्षी के प्रशनों का उत्तर पूछा। पुरोहित भी एक साथ उत्तर नहीं दे सका। उसने कुछ समय की मुलत मांगी और चिंतित होकर घर चला आया। उसके सिर में राजा की पूछी गई चारों बातें बराबर चक्कर काटती रहीं। वह बहुतेरा सोचता, पर उसे कोई जवाब न सूझता। अपने पति को हैरान देखकर ब्राह्रणी ने पूछा, “तुम इतने परेशान क्यों दीखते हो ? मुझे बताओ, बात क्या है ?”

ब्राह्मणी ने कहा, “क्या बताऊं ! एक बड़ी ही कठिन समस्या मेरे सामने आ खड़ी हुई है। राजा के महल का जो आंगन है, वहां रोज रात को एक पक्षी आता है और चारों पहरों मे नितय नियम से चार आलग-अलग बातें कहता है। राजा पक्षी की उन बातों का मतलब नहीं समझा तो उसने मुझसे उनका मतलब पूछा। पर पक्षी की पहेलियां मेरी समझ में भी नहीं आतीं। राजा को जाकर क्या जवाब दूं, बस इसी उधेड़-बुन में हूं।”

ब्राह्मणी बोली, “पक्षी कहता क्या है? जरा मुझे भी सुनाओ।”

ब्राह्मणी ने चारों पहरों की चारों बातें कह सुनायीं। सुनकर ब्राह्मणी बोली। “वाह, यह कौन कठिन बात है! इसका उत्तर तो मैं दे सकती हूं। चिंता मत करो। जाओ, राजा से जाकर कह दो कि पक्षी की बातों का मतलब मैं बताऊंगी।”

ब्राह्मण राजा के महल में गया और बोला, “महाराज, आप जो पक्षी के प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं, उनको मेरी स्त्री बता सकती है।”

पुरोहित की बात सुनकर राजा ने उसकी स्त्री को बुलाने के लिए पालकी भेजी। ब्राह्मणी आ गई। राजा-रानी ने उसे आदर से बिठाया। रात हुई तो पहले पहर पक्षी बोला:
“किस मुख दूध पिलाऊं,
किस मुख दूध पिलाऊं ?”
राजा ने कहा, “पंडितानी, सुन रही हो, पक्षी क्या बोलता है?”
वह बोली, “हां, महाराज ! सुन रहीं हूं। वह अधकट बात कहता है।”
राजा ने पूछा, “अधकट बात कैसी ?”
पंडितानी ने उत्तर दिया, “राजन्, सुनो, पूरी बात इस प्रकार है-
लंका में रावण भयो बीस भुजा दशशीश,
माता ओ की जा कहे, किस मुख दूध पिलाऊं।
किस मुख दूध पिलाऊं ?”
लंका में रावण ने जन्म लिया है, उसकी बीस भुजाएं हैं और दश शीश हैं। उसकी माता कहती है कि उसे उसके कौन-से मुख से दूध पिलाऊं?”
राज बोला, “बहुत ठीक ! बहुत ठीक ! तुमने सही अर्थ लगा लिया।”
दूसरा पहर हुआ तो पक्षी कहने लगा :
ऐसो कहूं न दीख,
ऐसो कहूं न दीख।
राजा बोला, ‘पंडितानी, इसका क्या अर्थ है ?”
पडितानी ने समझाया, “महाराज ! सुनो, पक्षी बोलता है :
“घर जम्ब नव दीप
बिना चिंता को आदमी,
ऐसो कहूं न दीख,
ऐसो कहूं न दीख !”

चारों दिशा, सारी पृथ्वी, नवखण्ड, सभी छान डालो, पर बिना चिंता का आदमी नहीं मिलेगा। मनुष्य को कोई-न-कोई चिंता हर समय लगी ही रहती है। कहिये, महाराज! सच है या नहीं ?”

राजा बोला, “तुम ठीक कहती हो।”
तीसरा पहर लगा तो पक्षी ने रोज की तरह अपी बात को दोहराया :
“अब हम करबू का,
अब हम करबू का ?”
ब्राह्मणी राजा से बोली, “महाराज, इसका मर्म भी मैं आपको बतला देती हूं। सुनिये:
पांच वर्ष की कन्या साठे दई ब्याह,
बैठी करम बिसूरती, अब हम करबू का,
अब हम करबू का।

पांच वर्ष की कन्या को साठ वर्ष के बूढ़े के गले बांध दो तो बेचारी अपनी करम पीट कर यही कहेगी-‘अब हम करबू का, अब हम करबू का ?” सही है न, महाराज !”

राजा बोला, “पंडितानी, तुम्हारी यह बात भी सही लगी।”
चौथा पहर हुआ तो पक्षी ने चोंच खोली :
“सब बम्मन मर जायें,
सब बम्मन मर जायें !”
तभी राज ने ब्राह्मणी से कहा, “सुनो, पंडितानी, पक्षी जो कुछ कह रहा है, क्या वह उचित है ?”
ब्रह्मणी मुस्कायी और कहने लगी, “महाराज ! मैंने पहले ही कहा है कि पक्षी अधकट बात कहता है। वह तो ऐसे सब ब्राह्मणों के मरने की बात कहता है :
विश्वा संगत जो करें सुरा मांस जो खायें,
बिना सपरे भोजन करें, वै सब बम्मन मर जायें
वै सब बम्मन मर जायें।

जो ब्राह्मण वेश्या की संगति करते हैं, सुरा ओर मांस का सेवन करते हैं और बिना स्नान किये भोजन करते हैं, ऐसे सब ब्राह्मणों का मर जाना ही उचित है। अब बोलिये, पक्षी का कहना ठीक है या नहीं ?”
राजा ने कहा, “तुम्हारी चारों बातें बावन तोला, पाव रत्ती ठीक लगीं। तुम्हारी बुद्धि धन्य है !”
राजा-रानी ने उसको बढ़िया कपड़े और गहने देकर मान-सम्मान से विदा किया। अब पुरोहित का आदर भी राजदरबार में पहले से अधिक बढ़ गया।
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आज का प्रेरक प्रसंग*

        *टोडरमल की रचना और उनकी माँ*
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प्रसिद्ध विद्वान पंडित टोडरमल राजस्थान के रहने वाले थे। एक बार उन्होंने एक ग्रंथ लिखने की योजना बनाई। इसके लिए उन्होंने अपना पूरा ध्यान पठन-पाठन और लेखन पर केंद्रित कर लिया। कार्य करते हुए उन्हें दिन, महीनों का पता ही न चला। काफी समय बीत गया। एक दिन वह अपनी मां के साथ भोजन करने बैठे। मां ने बड़े प्रेम से टोडरमल को सब्जी परोसी, चपातियां दीं और खाने के लिए कहा।

टोडरमल ने एक टुकड़ा खाया, फिर दूसरा टुकड़ा खाया और खाते-खाते रुक गए। यह देखकर उनकी मां बोलीं, 'बेटा, क्या बात है ? क्या तुम्हें आज मेरी बनी सब्जी पसंद नहीं आई।' मां की बात सुनकर टोडरमल सहजता से बोले, 'नहीं मां, ऐसी बात नहीं है। पर मुझे लग रहा है कि आज आप सब्जी में नमक डालना भूल गई हैं।' बेटे की बात सुनकर मां उन्हें हैरानी से देखने लगीं।

टोडरमल ने पूछा,'मां क्या हुआ? क्या मैंने कोई गलत बात कह दी। आप मुझे इतनी हैरानी से क्यों देख रही हैं?' यह सुनकर मां मुस्करा कर बोलीं, 'बेटा, मैं तेरे सवाल का जवाब अवश्य दूंगी। पहले मुझे यह बता कि क्या आज तेरा ग्रंथ पूरा हो गया है।' टोडरमल प्रसन्न होकर बोले, 'हां मां, आज मेरा ग्रंथ पूरा हो गया है। इसलिए मैं चैन की सांस ले पा रहा हूं।' फिर वह मां की ओर देखकर बोले, 'पर मां तुम्हें यह कैसे पता चला कि मेरा ग्रंथ पूरा हो गया है। मैंने तो अभी इस बारे में तुम्हें कुछ बताया ही नहीं।'

इस पर मां बोली, 'बेटा। दरअसल मैं कई दिनों से सब्जी में जान-बूझकर कुछ कमी छोड़ती थी कि इसी बहाने तुम मुझसे कुछ देर बात करोगे। लेकिन तुम अपने काम में इतने मगन थे कि तुम्हें सब्जी की कमी का पता ही न चला।' टोडरमल का वह ग्रंथ 'मोक्षमार्ग' अत्यंत प्रसिद्ध है। अपना कार्य पूरी तन्मयता से करने वालों को सफलता अवश्य मिलती है।


*कथांत एक शिक्षाप्रद सारांश के साथ:*

हर कार्य में सफलता प्राप्त करने हेतु अपना सो प्रतिशत लगाना जरूरी है। पूर्ण एकाग्रता से कार्य करने पर सफलता मिलती है। कार्य को पूरी तन्मयता से करना चाहिए। हमें पूरी तरह तन, मन व भाव से कार्य करना चाहिए तभी हम सम्पूर्ण हो पाते है। अन्यथा हम बिखरे-बिखरे से रहते है। कार्य को समग्रता से करने पर ही आनन्द मिलता है। यह एक आध्यात्मिक सत्य भी है।
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*📓आज का प्रेरक प्रसंग📓*

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
             *!!!---: लक्ष्मी के पैर :---!!!*
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रात बजे का समय रहा होगा, एक लड़का एक जूतों की दुकान में आता है. गांव का रहने वाला था पर तेज था ,उसका बोलने का लहज़ा गाव वालो की तरह का था, पर बहुत ठहरा हुआ लग रहा था. लगभग 22 वर्ष का रहा होगा .

*दुकानदार की पहली नज़र पैरों पर ही जाती है. उसके पैर में लेदर के शूज थे,सही से पाॅलीश किये हुये थे*

दुकानदार - क्या सेवा करू ?
लड़का - मेरी माँ के लिये चप्पल चाहिये,किंतु टिकाऊ होनी चाहिये
दुकानदार - वे आई है क्या ?उनके पैर का नाप ?"

*लड़के ने अपना बटुआ बाहर निकाला, उसको चार बार फोल्ड किया एक कागज़ पर पेन से  आऊटलाईन बनाई दोनों पैर की.*

दुकादार - अरे मुझे तो नाप के लिये नम्बर चाहिये था.

* वह लड़का ऐसा बोला मानो कोई बाँध फूट गया हो "क्या नाप बताऊ साहब?*
मेरी माँ की जिंदगी बीत गई, पैरों में कभी चप्पलच नही पहनी, माँ मेरी मजदूर है, काँटे झाड़ी में भी जानवरो जैसे मेहनत करकर के मुझे पढ़ाया , पढ़कर,अब नोकरी लगी. आज पहली तनख़्वाह मिली दिवाली पर घर जा रहा हूं, तो सोचा माँ के लिए क्या ले जाऊ ? तो मन मे आया कि अपनी पहली तनख़्वाह से माँ के लिये चप्पल लेकर जाऊँ ."

*दुकानदार ने अच्छी टिकाऊ चप्पल दिखाई जिसकी आठ सौ रुपये कीमत थी* .
"चलेगी क्या "वह उसके लिये तैयार था.

दुकानदार ने सहज ही पूछ लिया; "कितनी तनख़्वाह है तेरी ?"

"अभी तो बारह हजार,रहना - खाना मिलाकर सात-आठ हजार खर्च हो जाते है यहाँ, और दो - तीन हजार माँ को भेज देता हूँ."

*अरे फिर आठ सौ रूपये कहीं  ज्यादा तो नहीं  .....तो बीच में ही काटते हुए बोला .... नही कुछ नही होता*

दुकानदार ने बाॅक्स पेक कर दिया उसने पैसे दिये.
ख़ुशी ख़ुशी वह बाहर निकला.

*चप्पल जैसी चीज की, कोई किसी को इतनी महंगी भेंट नही दे सकता. ......... पर दुकानदार ने उसे कहा- "थोड़ा रुको! दुकानदार ने एक और बाॅक्स उसके हाथ में दिया. "यह चप्पल माँ को तेरे इस भाई की ओर से गिफ्ट । माँ से कहना पहली ख़राब हो जाय तो दूसरी पहन लेना नँगे पैर नही घूमना,और इसे लेने से मना मत करना."*

दुकानदार की और उसकी दोनों की आँखे भर आईं.

दुकानदार ने पूछा "क्या नाम है तेरी माँ का?" .
"लक्ष्मी "उसने उत्तर दिया.
दुकानदार ने एकदम से दूसरी मांग करते हुए कहा, उन्हें "मेरा प्रणाम कहना, और क्या मुझे एक चीज़ दोगे ?

*वह पेपर जिस पर तुमने पैरों की आऊटलाईन बनाई थी,वही पेपर मुझे चाहिये*.
वह कागज़ दुकानदार के हाथ मे देकर ख़ुशी ख़ुशी चला गया ।*

वह फोल्ड वाला कागज़ लेकर दुकानदार ने अपनी दुकान के पूजा घर में रख़ा.
दुकान के पूजाघर में कागज़ को रखते हुये दुकानदार के बच्चों ने देख लिया था और उन्होंने पूछ लिया कि ये क्या है पापा  ?"

*दुकानदार ने लम्बी साँस लेकर अपने बच्चों से बोला;*
"लक्ष्मीजी के पैर " है बेटा
 एक सच्चे भक्त ने उसे बनाया है . इससे धंधे में बरकत आती है.*"

बच्चों ने, दुकानदार ने और सभी ने मन से उन पैरों को प्रणाम किया,......

*सदैव प्रसन्न रहिये!!*
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!*
https://www.facebook.com/groups/422360518220835/
*🎗📓 शिक्षा जगत समाचार📓🎗*
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*आज का प्रेरक प्रसंग*


      *अहं के त्याग से ही जीवन सार्थक*
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दुनिया में व्यर्थ सिर्फ अहंकार ही होता है इससे मिलता तो कुछ नहीँ बल्कि जो है, उसे भी नष्ट कर देता है। इससे यथासंभव बचना चाहिए।

एक ऋषि थे-सर्वथा सहज, निराभिमानी, वैरागी और अत्यधिक ज्ञानी। दूर -दूर से लोग उनके पास ज्ञान अर्जन करने के लिए आते थे। एक दिन एक युवक ने आकर उनके समक्ष शिष्य बनने की इच्छा प्रकट की। ऋषि ने सहमति दे दी। वह ऋषि के पास रहने लगा।वह ऋषि की शिक्षा को पूर्ण मनोयोग से ग्रहण करता। एक दिन ऋषि ने कहा -जाओ वत्स; तुम्हारी शिक्षा पूर्ण हुई। अब तुम इसका उपयोग कर दूसरों का जीवन बेहतर बनाओ।
                           

युवक ने उन्हें गुरुदक्षिणा देनी चाही। ऋषि बोले यदि तुम गुरु दक्षिणा देना ही चाहते हो तो वह चीज लेकर आओ,जो बिल्कुल व्यर्थ हो। युवक व्यर्थ चीज की खोज में चल पड़ा।  उसने सोचा मिट्टी ही सबसे व्यर्थ हो सकती है। यह सोचकर उसने मिट्टी लेने के लिए हाथ बढ़ाया, तो वह बोल उठी -तुम मुझे व्यर्थ समझते हो? धरती का सारा वैभव मेरे गर्भ में ही प्रकट होता है। ये विविध रूप,रस, गंध क्या मुझ से उत्पन्न नहीं होते? युवक आगे बढ़ा तो उसे गंदगी का ढेर दिखाई दिया। उसने गंदगी की ओर हाथ बढ़ाया तो उसमें से आवाज आई -क्या मुझसे बेहतर खाद धरती पर मिलेगी? सारी फसलेँ मुझसे ही पोषण पाती है,फिर मैं व्यर्थ कैसे हो सकती हूँ ?
                               

युवक सोचने लगा,वस्तुतः सृष्टि का हर पदार्थ अपने में उपयोगी है। व्यर्थ और तुच्छ तो वह है जो दूसरों को व्यर्थ व तुच्छ समझता है और अहंकार के सिवा और क्या हो सकता है? युवक तत्काल ऋषि के पास जाकर बोला कि वह गुरु दक्षिणा में अपना अहंकार देने आया है यह सुनकर ऋषि बोले ठीक समझे वत्स।अहंकार के विसर्जन से ही विद्या सार्थक और फलवती होती है। कथा का संकेत स्पष्ट है कि दुनिया में व्यर्थ सिर्फ अहंकार होता है ॥

"ज्ञानविघ्नोSहंकार:
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*आज का प्रेरक प्रसंग*
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*💐न माया मिली न राम!*💐

किसी गाँव में दो दोस्त रहते थे. एक का नाम हीरा था और दूसरे का मोती. दोनों में गहरी दोस्ती थी और वे बचपन से ही खेलना-कूदना, पढना-लिखना हर काम साथ करते आ रहे थे.

जब वे बड़े हुए तो उनपर काम-धंधा ढूँढने का दबाव आने लगा. लोग ताने मारने लगे कि दोनों निठल्ले हैं और एक पैसा भी नही कमाते.

एक दिन दोनों ने विचार-विमर्श कर के शहर की ओर जाने का फैसला किया. अपने घर से रास्ते का खाना पीना ले कर दोनों भोर होते ही शहर की ओर चल पड़े.

शहर का रास्ता एक घने जंगल से हो कर गुजरता था. दोनों एक साथ अपनी मंजिल की ओर चले जा रहे थे. रास्ता लम्बा था सो उन्होंने एक पेड़ के नीचे विश्राम करने का फैसला किया. दोनों दोस्त विश्राम करने बैठे ही थे की इतने में एक साधु वहां पर भागता हुआ आया. साधु तेजी से हांफ रहा था और बेहद डरा हुआ था.

मोती ने साधु से उसके डरने का कारण पूछा.

साधु ने बताय कि-

आगे के रास्ते में एक डायन है और उसे हरा कर आगे बढ़ना बहुत मुश्किल है, मेरी मानो तुम दोनों यहीं से वापस लौट जाओ.

इतना कह कर साधु अपने रास्ते को लौट गया.

हीरा और मोती साधु की बातों को सुन कर असमंजस में पड़ गए. दोनों आगे जाने से डर रहे थे. दोनों के मन में घर लौटने जाने का विचार आया, लेकिन लोगों के ताने सुनने के डर से उन्होंने आगे बढ़ने का निश्चेय किया.

आगे का रास्ता और भी घना था और वे दोनों बहुत डरे हुए भी थे.  कुछ दूर और चलने के बाद उन्हें एक बड़ा सा थैला पड़ा हुआ दिखाई दिया. दोनों दोस्त डरते हुए उस थैले के पास पहुंचे.

उसके अन्दर उन्हें कुछ चमकता हुआ नज़र आया. खोल कर देखा तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही न रहा. उस थैले में बहुत सारे सोने के सिक्के थे. सिक्के इतने अधिक थे कि दोनों की ज़िंदगी आसानी से पूरे ऐश-ओ-आराम से कट सकती थी. दोनों ख़ुशी से झूम रहे थे, उन्हें अपने आगे बढ़ने के फैसले पर गर्व हो रहा था.

साथ ही वे उस साधु का मजाक उड़ा रहे थे कि वह कितना मूर्ख था जो आगे जाने से डर गया.

अब दोनों दोस्तों ने आपस में धन बांटने और साथ ही भोजन करने का निश्चेय किया.

दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गए. हीरा ने मोती से कहा कि वह आस-पास के किसी कुएं से पानी लेकर आये, ताकि भोजन आराम से किया जा सके. मोती पानी लेने के लिए चल पड़ा.

मोती रास्ते में चलते-चलते सोच रहा था कि अगर वो सारे सिक्के उसके हो जाएं तो वो और उसका परिवार हमेशा राजा की तरह रहेगा. मोती के मन में लालच आ चुका था.

वह अपने दोस्त को जान से मर डालने की योजना बनाने लगा. पानी भरते समय उसे कुंए के पास उसे एक धारदार हथियार मिला. उसने सोचा की वो इस हथियार से अपने दोस्त को मार देगा और गाँव में कहेगा की रास्ते में डाकुओं ने उन पर हमला किया था. मोती मन ही मन अपनी योजना पर खुश हो रहा था.

वह पानी लेकर वापस पहुंचा और मौका देखते ही हीरा पर पीछे से वार कर दिया. देखते-देखते हीरा वहीं ढेर हो गया.

मोती अपना सामान और सोने के सिक्कों से भरा थैला लेकर वहां से वापस भागा.

कुछ एक घंटे चलने के बाद वह एक जगह रुका. दोपहर हो चुकी थी और उसे बड़ी जोर की भूख लग आई थी. उसने अपनी पोटली खोली और बड़े चाव से खाना-खाने लगा.

लेकिन ये क्या ? थोड़ा खाना खाते ही मोती के मुँह से खून आने आने लगा और वो तड़पने लगा. उसे

एहसास हो चुका था कि जब वह पानी लेने गया था तभी हीरा ने उसके खाने में कोई जहरीली जंगली बूटी मिला दी थी. कुछ ही देर में उसकी भी तड़प-तड़प कर मृत्यु हो गयी.

अब दोनों दोस्त मृत पड़े थे और वो थैला यानी माया रूपी डायन जस का तस पड़ा हुआ था.

जी हाँ दोस्तों उस साधु ने एकदम ठीक कहा था कि आगे डायन है. वो सिक्कों से भरा थैला उन दोनों दोस्तों के लिए डायन ही साबित हुआ. ना वो डायन रूपी थैला वहां होता न उनके मन में लालच आता और ना वे एक दूसरे की जाना लेते.

मित्रों! यही जीवन का सच भी है. हम माया यानी धन-दौलत-सम्पदा  एकत्रित करने में इतना उलझ जाते हैं कि अपने रिश्ते-नातों तक को भुला देते हैं. माया रूपी डायन आज हर घर में बैठी है. इसी माया के चक्कर में मानव दानव बन बैठा है. हमें इस प्रेरक कहानी से ये सीख लेनी चाहिए की हमें कभी भी पैसे को ज़रुरत से अधिक महत्त्व नहीं देना चाहिए और अपनी दोस्ती… अपने रिश्तों के बीच में इसको कभी नहीं लाना चाहिए.

और हमारे पूर्वज भी तो कह गए हैं-

माया के चक्कर में दोनों गए, न माया मिली न राम

इसलिए हमें हमेशा माया के लोभ व धन के लालच से बचना चाहिए और ज्यादा ना सही पर कुछ समय भगवान् की अराधना में ज़रूर लगाना चाहिए.


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*आज का प्रेरक प्रसंग*
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*🎀अवसर की पहचान*🎀

एक बार एक ग्राहक चित्रों की दुकान पर गया।उसने वहां पर अजीब से चित्र देखे। पहले चित्र में चेहरा पूरी तरह बालों से ढका हुआ था और पैरों में पंख थे। एक दूसरे चित्र में सिर पीछे से गंजा था। ग्राहक ने पूछा,'यह चित्र किसका है?' दुकानदार ने कहा,'अवसर का।' ग्राहक ने पूछा,'इसका चेहरा बालों से ढका क्यों है?' दुकानदार ने कहा क्योंकि अक्सर जब अवसर आता है तो मनुष्य उसे पहचानता नहीं है। ग्राहक ने पूछा,'इसके पैरों में पंख क्यों है?' दुकानदार ने कहा, 'वह इसलिए कि यह तुरंत वापस भाग जाता है,यदि इसका उपयोग न हो तो यह तुरंत उड़ जाता है।' ग्राहक ने पूछा '......और यह दूसरे चित्र में पीछे से गंजा सिर किसका है?' दुकानदार ने कहा, यह भी अवसर का है। यदि अवसर को सामने से ही बालों से पकड़ लेंगे तो वह आपका है। अगर आपने पकड़ने में देरी की तो पीछे का गंजा सिर हाथ आएगा और वो फिसलकर निकल जाएगा। वह ग्राहक इन चित्रों का रहस्य जानकर हैरान था पर अब वह बात समझ चुका था। आपने कई बार दूसरों को यह कहते हुए सुना होगा या खुद भी कहा होगा कि हमें अवसर ही नहीं मिला। लेकिन ये अपनी जिम्मेदारी से भागने और अपनी गलती को छुपाने का बस एक बहाना है। भगवान ने हमें ढेरों अवसरों के बीच जन्म दिया है। अवसर हमारे सामने से आते -जाते रहते है पर हम उसे पहचान नहीं पाते ।

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नई दिल्ली: आज इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) द्वारा नवंबर 2019 में आयोजित चार्टर्ड अकाउंटेंट इंटरमीडिएट (ओल्ड कोर्स एंड न्यू कोर्स) परीक्षा और फाउंडेशन परीक्षा के परिणाम जारी किए जाने की उम्मीद है। ICAI CA नवंबर 2019 अंतिम परीक्षा (पुराना पाठ्यक्रम और नया पाठ्यक्रम) परिणाम निम्नलिखित वेबसाइटों पर घोषित किए जाएंगे:

 👉https://icaiexam.icai.org/,
👉https://caresults.icai.org/ और
👉https: // icai। nic.in

अभ्यर्थी, जो नवंबर परीक्षा में उपस्थित हुए थे, आज ऊपर बताई गयी वेबसाईट्स  पर अपना परिणाम देख सकते हैं। उपर्युक्त वेबसाइटों पर आईसीएआई अंतिम परिणाम देखने के लिए केन्डीडेट को रजिस्ट्रेशन नम्बर या पिन नम्बर के साथ रोल नम्बर एन्टर करना होगा ( उम्मीदवार को अपना पंजीकरण नंबर या पिन नंबर दर्ज करना होगा।)

 एसएमएस के माध्यम से परिणामों की जांच कैसे करें?
 इसके अलावा, नवंबर 2019 में आयोजित सीए की परीक्षा के अभ्यर्थियों के लिए एसएमएस पर अंकों के साथ उनके परिणाम जानने के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। एसएमएस के माध्यम से परिणाम प्राप्त करने के लिए उम्मीदवारों को टाइप करना होगा:

इंटरमीडिएट (IPC) के लिए : - इंटरमीडिएट (IPC) परीक्षा (पुराना पाठ्यक्रम)

 Intermediate (IPC) examination (Old Course)
CAIPCOLD (space) XXXXXX (Where XXXXXX is the six digit Intermediate(IPC) Examination roll number of the candidate),e.g. CAIPCOLD 000128

 फाउंडेशन परीक्षा के लिए : -
CAFND (Space)XXXXXX (where XXXXXX is the six digit Foundation Examination roll number of the candidate), e.g. CAFND 00017

और उम्मीदवार फाउंडेशन और इंटरमीडिएट परीक्षा के CA परिणामों के लिए 57575 (सभी मोबाइल) से संदेश भेज सकते हैं। ICAI CA इंटरमीडिएट और फाउंडेशन रिजल्ट 2019 की जाँच करने के लिए चरण
How to check ICAI CA result 2019
 1) ICAI की आधिकारिक वेबसाइट - https://icaiexam.icai.org/, https://caresults.icai.org/ और https://icai.nic.in पर लॉग ऑन करें।

 2) दिए गए ICAI CA Intermediate (Old and New) और Foundation result लिंक पर क्लिक करें

 3) ICAI परिणाम लिंक में पंजीकरण संख्या / पिन और रोल नंबर दर्ज करें

 4) ICAI CA इंटरमीडिएट और फाउंडेशन परिणाम डाउनलोड करें l

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*आज का प्रेरक प्रसंग*
 !! *संघर्ष का महत्व*!!
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एक गांव में एक गरीब किसान रहता था । वह खेती किया करता था | एक बार बाढ़ आ जाने से उसकी सारी फसल खराब हो गई । उसने हार नही मानी और फसल बोई, अबकी बार बारिश  ही नहीं आयी। लगातार दो फसलें के खराब हो जाने से उसे भगवान पर गूस्सा आया और वह उन्हे कोसने लगा | उस किसान की बातें सूनकर प्रभू प्रकट हुए। भगवान ने उस किसान से मनचाही वरदान मांगने को कहा और उसके पूरे होने का आश्वासन भी दिया |  किसान ने कहा कि- सिर्फ एक साल मुझे मौका दीजिए, जैसा मौसम मैं चाहूं, वैसा हो जाए। फिर आप देखना मैं कैसे अन्न के भंडार भर दूंगा। भगवान ने उसे ये वरदान दे दिया।


किसान ने गेहूं की फ़सल बोई।

उसने जैसा मौसम चाहा, उसे मिला। समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी। क्योंकि ऐसी फसल तो पहले कभी नहीं नहीं हुई थी। किसान ने सोचा अब पता चलेगा भगवान को, कि फसल कैसे करते हैं, बेकार ही इतने साल हम किसानों को परेशान करते रहे। फसल काटने का समय भी आया, किसान बड़े गर्व से खेत में गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा तो उसने देखा कि बाली में एक भी गेहूं का दाना नहीं था। ये देखकर किसान बहुत दुखी हो गया और उसने परमात्मा से क्हा- आपने ऐसा क्यों किया?


भगवान प्रकट हुए और बोलें

ये तो होना ही था, तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया। इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए। जब आंधी और तेज बारिश होती है तो पौधा विपरीत परिस्थिति में खुद को बचाने के लिए संघर्ष करता है, इससे उसके अंदर ऊर्जा का संचार होता है। तभी उसमें से अन्न उपजता है। भगवान की बात सुनकर किसान को अपनी गलती का अहसास हुआ।


*कथानक का प्रेरणादायक सारांश:*

लाइफ में कई बार ऐसा समय आता है जब हम हर तरफ से हताश हो जाते हैं तब भगवान को कोसते हैं। लेकिन इसका दूसरा नजरिया भी है। अगर हमें बिना किसी परेशानी के सबकुछ आसानी से मिल जाएगा तो हम संघर्ष का महत्व नहीं समझ पाएंगे
मैं कड़ी मेहनत के साथ अच्छे व्यक्तित्व की कमी की भरपाई करता हूं: अनिल कपूर ll The lack of good personality, I indemnify with hardwork: Anil Kapoor

मैं कड़ी मेहनत के साथ अच्छे व्यक्तित्व की कमी की भरपाई करता हूं: अनिल कपूर ll The lack of good personality, I indemnify with hardwork: Anil Kapoor

The lack of good personality, I indemnify with hardwork: Anil Kapoor



मैं कड़ी मेहनत के साथ अच्छे व्यक्तित्व की कमी की भरपाई करता हूं: अनिल कपूर

मुंबई, 2 फरवरी (वार्ता) अभिनेता अनिल कपूर का कहना है कि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत में महसूस किया कि कभी भी उनके समकालीनों की तरह फिल्मों में उनकी कास्टिंग का मापदंड नहीं होगा और इसलिए उन्होंने अपने शिल्प पर कड़ी मेहनत करने का फैसला किया। 80 के दशक में शुरुआत करने वाले कपूर का कहना है कि आज लोग उनके लुक्स और फिटनेस के बारे में बात करते हैं लेकिन पहले ऐसा नहीं था। "मेरे करियर के शुरुआती चरण में, लोग मुझसे कहते थे कि '' आपको काम करने की ज़रूरत नहीं है।
कपूर ने यहां एक साक्षात्कार में बताया। ' सोचो, भगवान ने मुझे एक महान व्यक्तित्व, शरीर या चेहरा नहीं दिया है। इसलिए शायद मैं अपनी मेहनत पर पूरी तरह काम करूंगा "
 "मैं कभी भी भ्रम में नहीं था, मुझे पता था कि मैं कहाँ खड़ा था। मुझे लगा कि मुझे कड़ी मेहनत करनी चाहिए और मैंने अन्य अभिनेताओं की तुलना में कड़ी मेहनत की क्योंकि भगवान ने उन्हें एक बेहतर व्यक्तित्व, उपस्थिति के साथ उपहार दिया था |अनिल कपूर कहते है " इसलिए कहीं न कहीं मुझे लगता है कि मैंने उन्हें कड़ी मेहनत के साथ अच्छे व्यक्तित्व दिया" |

कपूर के करियर को समय ने  बदलते अभिनेता के रूप में चिह्नित किया जाता है। जबकि 80 'में उन्होंने "तेज़ाब" और "मिस्टर इंडिया" जैसी हिट फ़िल्में दीं, 90 के दशक ने उन्हें ब्लॉकबस्टर "बेटा", "जुदाई", "1942: ए लव स्टोरी", "विराट" और "ताल" में अपना कमाल दिखाया। 2000 के दशक में, उन्होंने "नायक", "वेलकम", "रेस", "स्लमडॉग मिलियनेयर" और "दिल धड़कने दो" जैसी फिल्मों में बहुमुखी विकल्प बनाए। कपूर कहते हैं कि अभीनेता के लिए उद्योग में दीर्घायु होना, यह सभी विकल्पों के लिए नीचे आता है। "आपके द्वारा किए गए विकल्प आपको प्रासंगिक बनाए रखते हैं। आपकी सहजता जो आपको चुनती है। जिन लोगों के साथ आप काम करते हैं, जो सहयोग होता है। निश्चित रूप से, मेरे काम के लिए प्यार ने मुझे भी रखा है। मेरे  किसी भी पात्र में अंदर तक जाने का और महसूस करने का जुनून  कुछ नया करने की मेरी लालसा  को जिंदा रखता है।

हर स्तर पर मैं ऐसे लोगों से मिलता रहा जिन्होंने मुझे प्रेरित किया, मेरे लिए नए  रास्ते खूलते रहे। उन्होंने कहा कि मुझे कामयाब बनाए रखने में सभी का योगदान है। 63 वर्षीय अभिनेता का कहना है कि बॉलीवुड में 40 साल के बाद भी, वह उसी प्रतिस्पर्धी भावना के लिए भाग्यशाली महसूस करते हैं जो उनके पास एक नवागंतुक के रूप में थी। "जब मैंने शुरुआत की, तो मैं हर नए चेहरी की तरह था, एक अवसर की तलाश में भूखा, क्रोधित | मैं अच्छे काम का भूखा हूं। मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि निर्देशक मुझे ऐसी स्क्रिप्ट्स दे रहे हैं जो इतनी मौलिक हैं | यह स्क्रिप्ट्स आपको बनाती है।" तनाव और आश्चर्य '' मैं इसे कैसे खींच पाऊंगा? '' "क्योंकि वहाँ यंगस्टर्स हैं और मैं अपने जुनून में, अपने काम, लुक्स या फिटनेस में पीछे नहीं रहना चाहता। मेरे पास अभी भी वह प्रतिस्पर्धी भावना है।" अपनी अगली फिल्म "मलंग" में, अनिलकपूर आदित्य रॉय कपूर, दिशा पटानी और कुणाल खेमू के साथ नजर आएंगे।

मोहित सूरी निर्देशित थ्रिलर में "शूटआउट एट वडाला" के सात साल बाद, एक बार फिर उन्हें एक पुलिस वाले के रूप में उन्हें दिखाया गया है। "7 साल का समय एक पुलिस वाले  के रूप में अभिनय करना के लिए पर्याप्त अंतर है अन्यथा लोग  लोग कहेंगे कि एक का एक रोल दोहराया जा रहा है। मैंने इसे लिया क्योंकि यह एक आकर्षक भूमिका थी। लेकिन  ऐसा नहीं है कि मैं सीधा  सेट पर चला जाता हूं और मुझे सब कुछ पता है कि क्या करना है और  कैसे प्रदर्शन करना है। आपको जो भी आता है वह आपको तब तक ही आता है जब आप घर पर होते हैं लेकिन जब आप सेट पर जाते हैं तो चीजें बदल जाती हैं वहां जाकर आपको पता चलता है कि यह काम नहीं कर रहा है ,तबतो निर्देशक आपको बताता है, लेखक आपको और यहां तक ​​कि आपके सह-कलाकारों भी आपको  बताते हैं कि क्या करना है और कैसे करना है। कुछ भूमिकाएँ ऐसी होती हैं जिनके लिए आपको टोन, बारीकियों को पूरी तरह से समझना पडता है  और सेट पर तैयार होना पड़ता है, जैसे '' 24 ', या अधिकांश "'मलंग' के दृश्य । '' इस पर बहुत चर्चा हुई। "मलंग" 7 फरवरी को रिलीज होने वाली है।
नोट- यह लेख गूगल ट्रांसलेट की मदद से अंग्रेजी से हिंदी में ट्रांसलेट किया गया है ट्रांसलेट करने से कुछ शब्दों का अर्थ बदल जाना संभव है अतः अंग्रेजी में छपे इंटरव्यू को ही सही माने

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*💐कर्म फल*💐


एक बार शंकर पार्वती भ्रमण पर निकले । रास्ते में उन्होंने देखा कि एक तालाब में कई बच्चे तैर रहे थे, लेकिन एक बच्चा उदास मुद्रा में बैठा था। पार्वती जी ने शंकर जी से पूछा, यह बच्चा उदास क्यों है ? शंकर जी ने कहा, बच्चे को ध्यान से देखो। पार्वती जी ने देखा, बच्चे के दोनों हाथ नही थे, जिस कारण वो तैर नही पा रहा था। पार्वती जी ने शंकर जी से कहा कि आप शक्ति से इस बच्चे को हाथ दे दो ताकि वो भी तैर सके। शंकर जी ने कहा, हम किसी के पार्ट में हस्तक्षेप नही कर सकते हैं क्योंकि हर आत्मा अपने कर्मो के फल द्वारा ही अपना पार्ट अदा करती है। पार्वती ने बार बार विनती की। आखिरकर शंकर जी ने उसे हाथ दे दिए। वह बच्चा भी पानी में तैरने लगा। एक सप्ताह बाद शंकर पार्वती फिर वहाँ से गुज़रे। इस बार मामला उल्टा था, सिर्फ वही बच्चा तैर रहा था और बाकी सब बच्चे बाहर थे। पार्वती जी ने पूछा यह क्या है ? शंकर जी ने कहा, ध्यान से देखो। देखा तो वह बच्चा दूसरे बच्चों को पानी में डुबो रहा था इसलिए सब बच्चे भाग रहे थे। शंकर जी ने जवाब दिया : हर व्यक्ति अपने कर्मो के अनुसार फल भोगता है। भगवान किसी के कर्मो के फेर में नही पड़ते है। उसने पिछले जन्मो में हाथों द्वारा यही कार्य किया था इसलिए उसके हाथ नही थे। हाथ देने से पुनः वह दूसरों की हानि करने लगा है। प्रकृति नियम के अनुसार चलती है, किसी के साथ कोई पक्षपात नही। आत्माएँ जब ऊपर से नीचे आती हैं तो अच्छी ही होती हैं, कर्मो अनुसार कोई अपाहिज है तो कोई भिखारी, तो कोई गरीब तो कोई अमीर लेकिन सब परिवर्तन शील है। अगर महलों में रहकर या पैसे के नशे में आज कोई बुरा काम करता है तो कल उसका भुगतान तो सबको करना ही पड़ेगा।

*पाप पुण्य दो बीज हैं ऋतू आये फल देत*

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किसी गाँव में दो दोस्त रहते थे. एक का नाम हीरा था और दूसरे का मोती. दोनों में गहरी दोस्ती थी और वे बचपन से ही खेलना-कूदना, पढना-लिखना हर काम साथ करते आ रहे थे.

जब वे बड़े हुए तो उनपर काम-धंधा ढूँढने का दबाव आने लगा. लोग ताने मारने लगे कि दोनों निठल्ले हैं और एक पैसा भी नही कमाते.

एक दिन दोनों ने विचार-विमर्श कर के शहर की ओर जाने का फैसला किया. अपने घर से रास्ते का खाना पीना ले कर दोनों भोर होते ही शहर की ओर चल पड़े.

शहर का रास्ता एक घने जंगल से हो कर गुजरता था. दोनों एक साथ अपनी मंजिल की ओर चले जा रहे थे. रास्ता लम्बा था सो उन्होंने एक पेड़ के नीचे विश्राम करने का फैसला किया. दोनों दोस्त विश्राम करने बैठे ही थे की इतने में एक साधु वहां पर भागता हुआ आया. साधु तेजी से हांफ रहा था और बेहद डरा हुआ था.

मोती ने साधु से उसके डरने का कारण पूछा.

साधु ने बताय कि-

आगे के रास्ते में एक डायन है और उसे हरा कर आगे बढ़ना बहुत मुश्किल है, मेरी मानो तुम दोनों यहीं से वापस लौट जाओ.

इतना कह कर साधु अपने रास्ते को लौट गया.

हीरा और मोती साधु की बातों को सुन कर असमंजस में पड़ गए. दोनों आगे जाने से डर रहे थे. दोनों के मन में घर लौटने जाने का विचार आया, लेकिन लोगों के ताने सुनने के डर से उन्होंने आगे बढ़ने का निश्चेय किया.

आगे का रास्ता और भी घना था और वे दोनों बहुत डरे हुए भी थे.  कुछ दूर और चलने के बाद उन्हें एक बड़ा सा थैला पड़ा हुआ दिखाई दिया. दोनों दोस्त डरते हुए उस थैले के पास पहुंचे.

उसके अन्दर उन्हें कुछ चमकता हुआ नज़र आया. खोल कर देखा तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही न रहा. उस थैले में बहुत सारे सोने के सिक्के थे. सिक्के इतने अधिक थे कि दोनों की ज़िंदगी आसानी से पूरे ऐश-ओ-आराम से कट सकती थी. दोनों ख़ुशी से झूम रहे थे, उन्हें अपने आगे बढ़ने के फैसले पर गर्व हो रहा था.

साथ ही वे उस साधु का मजाक उड़ा रहे थे कि वह कितना मूर्ख था जो आगे जाने से डर गया.

अब दोनों दोस्तों ने आपस में धन बांटने और साथ ही भोजन करने का निश्चेय किया.

दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गए. हीरा ने मोती से कहा कि वह आस-पास के किसी कुएं से पानी लेकर आये, ताकि भोजन आराम से किया जा सके. मोती पानी लेने के लिए चल पड़ा.

मोती रास्ते में चलते-चलते सोच रहा था कि अगर वो सारे सिक्के उसके हो जाएं तो वो और उसका परिवार हमेशा राजा की तरह रहेगा. मोती के मन में लालच आ चुका था.

वह अपने दोस्त को जान से मर डालने की योजना बनाने लगा. पानी भरते समय उसे कुंए के पास उसे एक धारदार हथियार मिला. उसने सोचा की वो इस हथियार से अपने दोस्त को मार देगा और गाँव में कहेगा की रास्ते में डाकुओं ने उन पर हमला किया था. मोती मन ही मन अपनी योजना पर खुश हो रहा था.

वह पानी लेकर वापस पहुंचा और मौका देखते ही हीरा पर पीछे से वार कर दिया. देखते-देखते हीरा वहीं ढेर हो गया.

मोती अपना सामान और सोने के सिक्कों से भरा थैला लेकर वहां से वापस भागा.

कुछ एक घंटे चलने के बाद वह एक जगह रुका. दोपहर हो चुकी थी और उसे बड़ी जोर की भूख लग आई थी. उसने अपनी पोटली खोली और बड़े चाव से खाना-खाने लगा.

लेकिन ये क्या ? थोड़ा खाना खाते ही मोती के मुँह से खून आने आने लगा और वो तड़पने लगा. उसे

एहसास हो चुका था कि जब वह पानी लेने गया था तभी हीरा ने उसके खाने में कोई जहरीली जंगली बूटी मिला दी थी. कुछ ही देर में उसकी भी तड़प-तड़प कर मृत्यु हो गयी.

अब दोनों दोस्त मृत पड़े थे और वो थैला यानी माया रूपी डायन जस का तस पड़ा हुआ था.

जी हाँ दोस्तों उस साधु ने एकदम ठीक कहा था कि आगे डायन है. वो सिक्कों से भरा थैला उन दोनों दोस्तों के लिए डायन ही साबित हुआ. ना वो डायन रूपी थैला वहां होता न उनके मन में लालच आता और ना वे एक दूसरे की जाना लेते.

मित्रों! यही जीवन का सच भी है. हम माया यानी धन-दौलत-सम्पदा  एकत्रित करने में इतना उलझ जाते हैं कि अपने रिश्ते-नातों तक को भुला देते हैं. माया रूपी डायन आज हर घर में बैठी है. इसी माया के चक्कर में मानव दानव बन बैठा है. हमें इस प्रेरक कहानी से ये सीख लेनी चाहिए की हमें कभी भी पैसे को ज़रुरत से अधिक महत्त्व नहीं देना चाहिए और अपनी दोस्ती… अपने रिश्तों के बीच में इसको कभी नहीं लाना चाहिए.

और हमारे पूर्वज भी तो कह गए हैं-

माया के चक्कर में दोनों गए, न माया मिली न राम

इसलिए हमें हमेशा माया के लोभ व धन के लालच से बचना चाहिए और ज्यादा ना सही पर कुछ समय भगवान् की अराधना में ज़रूर लगाना चाहिए.

आपसी समझदारी से काम आसानMoral stories in hindi,Hindi story,hindi kahani,kahaniya,kahaniya,jadui kahaniya,hindikahaniya,kahani hindi

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*आज का प्रेरक प्रसंग*
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            *आपसी समझदारी से काम आसान*
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एक साधु थे, जो सदैव परमात्म-भक्ति में लीन रहते थे, वो गृहस्थी भी थे, इसलिए समय निकाल कर घर द्वार का भी काम देखा करते थे , समय निकालकर लोगों को अच्छी बाते भी बताते थे ।  दूर-दूर से लोग उन्हें सुनने आते थे।

एक दिन प्रातः सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी वहीं  बैठा रहा। साधु ने उससे कारण पूछा तो उस व्यक्ति ने कहा,

"मैं गृहस्थ हूं। घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होते रहता है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है ?"

साधु थोड़ी देर चुप रहे। फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, ‘दीपक जला कर लाओ।’

साधु  की पत्नी दीपक जला कर ले आईं। वह आदमी हैरानी से देखता रहा कि साधु ने दिन में दीपक क्यों मँगवाया ?

 थोड़ी देर बाद कबीर बोले, ‘कुछ मीठा दे जाना।’ इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन ले आईं। उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन, दिन में दीपक, यह सब क्या है ?

वह बोला, ‘ठीक है, मैं चलता हूं।’ साधु  ने पूछा, ‘आपको अपनी समस्या का समाधान मिल गया या अभी कुछ संशय बाकी है?’

वह व्यक्ति बोला, ‘मेरी समझ में कुछ नहीं आया।’

साधु  ने कहा, ‘मैंने दीपक मंगवाया तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो? प्रातःकाल दीपक की क्या जरूरत है? लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए मंगवाया होगा। इसके बाद मैंने मीठा मंगवाया तो वह नमकीन दे गई। मैं चुप रहा, यह सोचकर कि हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यही तुम्हारे सवाल का जवाब है। आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थितियां अपने आप दूर हो जाती हैं।’

इतनी देर में वह व्यक्ति समझ चुका था कि गृहक्लेश का रोना रोने से कुछ नहीं होता।


*सीख :----*
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गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है। पति से गलती हो तो पत्नी संभाल ले और पत्नी से कोई त्रुटि हो तो पति उसे नजरअंदाज कर दे, यही गृहस्थी का मूल मंत्र है।
Moral stories in hindi,Hindi story,hindi kahani,kahaniya,kahaniya,jadui kahaniya,hindikahaniya,kahani hindi,bhoot ki kahaniya परम मित्र कौन है ?

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*आज का प्रेरक प्रसंग*
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*💐परम मित्र कौन है ?💐*


एक व्यक्ति था उसके तीन मित्र थे।
एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था।

दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।

और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब तब मिलता।

एक दिन कुछ ऐसा हुआ की उस व्यक्ति को अदालत में जाना था और किसी कार्यवश साथ में किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था।

अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला :- "मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?

वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।

उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था। आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया।

अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है।

फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।

दूसरे मित्र ने कहा कि :- मेरी एक शर्त है कि मैं सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं।

वह बोला कि :- बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए।

फिर वह थक हारकर अपने तीसरे मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।

तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरन्त उसके साथ चल दिया।

अब आप सोच रहे होंगे कि...
वो *तीन मित्र कौन है...?*

तो चलिये हम आपको बताते है इस *कथा का सार*।

जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे *हर व्यक्ति के तीन मित्र होते हैं।*

सब से *पहला मित्र है हमारा अपना 'शरीर'* हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता।

*दूसरा मित्र है शरीर के 'सम्बन्धी'* जैसे :- माता - पिता, भाई - बहन, मामा -चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते हैं, जो सुबह - दोपहर शाम मिलते है।

और *तीसरा मित्र है :- हमारे 'कर्म'* जो सदा ही साथ जाते है।

अब आप सोचिये कि *आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता।* जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।

*दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक यानी अदालत के दरवाजे तक "राम नाम सत्य है" कहते हुए जाते हैं तथा वहाँ से फिर वापिस लौट जाते है।*

और *तीसरा मित्र आपके कर्म हैं।*
*कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।*

*अब अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत में जाने की जरुरत नहीं होगी।*

और धर्मराज भी हमारे लिए स्वर्ग का दरवाजा खोल देगा।

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Novel Coronavirus (2019-nCoV) कोरोना वायरस क्या है कोरोना वायरस कैसे फैलता है कोरोना वायरस से बचने के उपाय

Novel Coronavirus (2019-nCoV) कोरोना वायरस क्या है कोरोना वायरस कैसे फैलता है कोरोना वायरस से बचने के उपाय

कोरोना वायरस क्या है कोरोना वायरस कैसे फैलता है कोरोना वायरस से बचने के उपाय

Novel Coronavirus (2019-nCoV) कोरोनावाईरस क्या है ?

कोरोनावाईरस (सीओवी) वायरस का एक बड़ा परिवार है जो सामान्य सर्दी से लेकर गंभीर बीमारियों जैसे मध्य पूर्व रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS-CoV) और गंभीर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS-CoV) का कारण बनता है। एक उपन्यास कोरोनावायरस (nCoV) एक नया स्ट्रेन है जो पहले मनुष्यों में पहचाना नहीं गया है।


कोरोनावीरस ज़ूनोटिक हैं, जिसका अर्थ है कि वे जानवरों और लोगों के बीच संचारित होते हैं। विस्तृत जांच में पाया गया कि SARS-CoV को केवेट बिल्लियों से मनुष्यों और MERS-CoV से ड्रोमेडरी ऊंटों से मनुष्यों में स्थानांतरित किया गया। कई ज्ञात कोरोनवीरस उन जानवरों में घूम रहे हैं जिन्होंने अभी तक मनुष्यों को संक्रमित नहीं किया है। संक्रमण के सामान्य संकेतों में श्वसन संबंधी लक्षण, बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ और सांस लेने में कठिनाई शामिल हैं। अधिक गंभीर मामलों में, संक्रमण से निमोनिया, गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम, गुर्दे की विफलता और यहां तक ​​कि मृत्यु भी हो सकती है। संक्रमण को रोकने के लिए मानक अनुशंसाओं में नियमित रूप से हाथ धोना, खाँसने और छींकने पर मुंह और नाक को ढंकना, मांस और अंडे को अच्छी तरह से पकाना शामिल है। खांसी और छींकने जैसी सांस की बीमारी के लक्षण दिखाने वाले किसी के भी निकट संपर्क से बचें।


Novel Coronavirus (2019-nCoV) के बारें जानकारी

31 दिसंबर 2019 को, डब्ल्यूएचओ को चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में निमोनिया के कई मामलों के लिए सतर्क किया गया था। वायरस किसी अन्य ज्ञात वायरस से मेल नहीं खाता था। इसने चिंता जताई क्योंकि जब कोई वायरस नया होता है, तो हम नहीं जानते कि यह लोगों को कैसे प्रभावित करता है। एक सप्ताह बाद, 7 जनवरी को, चीनी अधिकारियों ने पुष्टि की कि उन्होंने एक नए वायरस की पहचान की है। नया वायरस एक कोरोनावायरस है, जो वायरस का एक परिवार है जिसमें सामान्य सर्दी और SARS और MERS जैसे वायरस शामिल हैं। इस नए वायरस को अस्थायी रूप से "2019-nCoV" नाम दिया गया था। डब्ल्यूएचओ चीनी अधिकारियों और वैश्विक विशेषज्ञों के साथ काम कर रहा है जिस दिन से हमें सूचित किया गया था, वायरस के बारे में अधिक जानने के लिए, यह उन लोगों को कैसे प्रभावित करता है जो इसके साथ बीमार हैं, उनका इलाज कैसे किया जा सकता है, और कौन से देश प्रतिक्रिया देने के लिए कर सकते हैं। क्योंकि यह एक कोरोनोवायरस है, जो आमतौर पर सांस की बीमारी का कारण बनता है, डब्ल्यूएचओ ने लोगों को सलाह दी है कि वे खुद को और अपने आसपास के लोगों को बीमारी से कैसे बचाएं।

Novel Coronavirus (2019-nCoV) advice for the public कोरना वायरस से बचने के उपाय

WHO द्वारा कोरोना वायरस से बचने के लिए सुझाए गए उपाय
डब्ल्यूएचओ WHO ने आम जनता के लिए बीमारियों  सीमा के संपर्क और प्रसारण को कम करने की  उपाय व सुझाव इस प्रकार हैं | जिनमें हाथ और श्वसन स्वच्छता, और सुरक्षित खाद्य पद्धतियां शामिल हैं:

 1.अल्कोहल-आधारित - हाथ रगड़कर  साबुन और पानी का उपयोग करके साफ करे|

2.खाँसते और छींकते हुए मुंह और नाक को फ्लेक्सेड एल्बो या टिशू से ढके और टिशू को तुरंत फेंक दें और हाथ धो लें|

3. बुखार और खांसी वाले किसी भी व्यक्ति के निकट संपर्क से बचें; यदि आपको बुखार, खांसी और सांस लेने में कठिनाई हो रही है, तो जल्दी से डॉक्टर से मिले और परामर्श लेवे और डॉक्टर के साथ अपनी पिछली की गई  यात्रा की पूरी जानकारी डिटेल से बताएं कि वह किस देश ने की थी और कब की था|

4.कई क्षेत्रों में लाइव बाजारों का दौरा करते समय वर्तमान में कोरोनोवायरस के मामलों का सामना करना पड़ता है, इसलिए लाइव बाजारों में जाने से बचें | जीवित जानवरों से सीधे हाथ सुरक्षित संपर्क से बचें |

 5.कच्चे या अधपके पशु उत्पादों के सेवन से बचना चाहिए।  के अनुसार,   उचित देखभाल के साथ संभाला जाना चाहिए।

6.बिना पके हुए खाद्य पदार्थों को कच्चे मांस, दूध या जानवरों के अंगों आदी बिना पके हुए खाद्य पदार्थों से  प्रदूषित होने से बचाने के लिए खाद्य सुरक्षा प्रणाली से उचित देखभाल करके  संभाला जाना चाहिए।


नोट- इस वेबसाइट पर कोरोला वायरस के बारे में जो जानकारी दी गई है वह WHO की ऑफिशियल वेबसाइट से इंग्लिश भाषा से हिंदी में ट्रांसलेट की गई है ताकि लोगों को इससे बचने के हिंदी में उपाय बताए जा सके l हालांकि ट्रांसलेशन में पूरी सतर्कता बरती गई है लेकिन फिर भी डब्ल्यूएचओ की वेबसाइट पर बताए गए सुझाव को ही प्राथमिकता देवें l

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*आज का प्रेरक प्रसंग*

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*सोच का अंतर*

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        *एक अंधा लड़का एक इमारत की सीढ़ियों पर बैठा था*
          *उसके पैरों के पास एक टोपी रखी थी,पास ही एक बोर्ड रखा था, जिस पर लिखा था,"मैं अंधा हूँ,मेरी मदद करो"टोपी में केवल कुछ सिक्के थे वहां से गुजरता एक आदमी यह देख कर रुका,उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकले और टोपी में गिरा दिये,फिर उसने उस बोर्ड को पलट कर कुछ शब्द लिखे और वहां से चला गया,उसने बोर्ड को पलट दिया था जिससे कि लोग वह पढ़ें जो उसने लिखा था जल्द ही टोपी को भरनी शुरू हो गई*
       *अधिक से अधिक लोग अब उस अंधे लड़के को पैसे दे रहे थे,दोपहर को बोर्ड बदलने वाला आदमी फिर वहां आया,वह यह देखने के लिए आया था उसके शब्दों का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?अंधे लड़के ने उसके क़दमों की आहट पहचान ली और पूछा,"आप सुबह मेरे बोर्ड को बदल कर गए थे?आपने बोर्ड पर क्या लिखा था? उस आदमी ने कहा मैंने केवल सत्य लिखा था,मैंने तुम्हारी बात को एक अलग तरीके से लिखा"आज एक खूबसूरत दिन है और मैं इसे नहीं देख सकता आपको क्या लगता है?*
      *पहले वाले शब्द और बाद वाले शब्द,एक ही बात कह रहे थे?*
      *बेशक दोनों संकेत लोगों को बता रहे थे कि लड़का अंधा था*
       *लेकिन पहला संकेत बस इतना बता रहा था कि वह लड़का अंधा है,जबकि दूसरा संकेत लोगों को यह बता रहा था कि वे कितने भाग्यशाली हैं कि वे अंधे नहीं हैं. क्या दूसरा बोर्ड अधिक प्रभावशाली था? दोस्तों! यह कहानी हमें बताती है कि,जो कुछ हमारे पास है उसके लिए हमें आभारी होना चाहिए,रचनात्मक रहो,अभिनव रहो,अलग और सकारात्मक सोच रखो,लोगों को अच्छी चीजों की तरफ,समझदारी से आकर्षित करो,जीवन तुम्हे रोने का एक कारण देता है, तो तुम्हारे पास मुस्कुराने के लिए 10 कारण हैं*

बसन्त पंचमी 29 जनवरी विशेष,आज का विशेष दिन

बसन्त पंचमी 29 जनवरी विशेष,आज का विशेष दिन


बसन्त पंचमी 29 जनवरी विशेष
क्यो मनाई जाती है,क्या है इतिहास,क्यो शूरू हुया,कैसे मनाते है,क्या खास बात है,कहा मनाई जाती है?
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बसंत पंचमी की तिथि पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व महत्व
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बसंत पंचमी भारतीय संस्कृति में एक बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है जिसमे हमारी परम्परा, भौगौलिक परिवर्तन , सामाजिक कार्य तथा आध्यात्मिक पक्ष सभी का सम्मिश्रण है, हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है वास्तव में भारतीय गणना के अनुसार वर्ष भर में पड़ने वाली छः ऋतुओं (बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में बसंत को ऋतुराज अर्थात सभी ऋतुओं का राजा माना गया है और बसंत पंचमी के दिन को बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है इसलिए बसंत पंचमी ऋतू परिवर्तन का दिन भी है जिस दिन से प्राकृतिक सौन्दर्य निखारना शुरू हो जाता है पेड़ों पर नयी पत्तिया कोपले और कालिया खिलना शुरू हो जाती हैं पूरी प्रकृति एक नवीन ऊर्जा से भर उठती है।

बसंत पंचमी को विशेष रूप से सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है यह माता सरस्वती का प्राकट्योत्सव है इसलिए इस दिन विशेष रूप से माता सरस्वती की पूजा उपासना कर उनसे विद्या बुद्धि प्राप्ति की कामना की जाती है इसी लिए विद्यार्थियों के लिए बसंत पंचमी का त्यौहार बहुत विशेष होता है।

बसंत पंचमी का त्यौहार बहुत ऊर्जामय ढंग से और विभिन्न प्रकार से पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता है इस दिन पीले वस्त्र पहनने और खिचड़ी बनाने और बाटने की प्रथा भी प्रचलित है तो इस दिन बसंत ऋतु के आगमन होने से आकास में रंगीन पतंगे उड़ने की परम्परा भी बहुत दीर्घकाल से प्रचलन में है।

बसंत पंचमी के दिन का एक और विशेष महत्व भी है बसंत पंचमी को मुहूर्त शास्त्र के अनुसार एक स्वयं सिद्ध मुहूर्त और अनसूज साया भी माना गया है अर्थात इस दिन कोई भी शुभ मंगल कार्य करने के लिए पंचांग शुद्धि की आवश्यकता नहीं होती इस दिन नींव पूजन, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना, व्यापार आरम्भ करना, सगाई और विवाह आदि मंगल कार्य किये जा सकते है।

माता सरस्वती को ज्ञान, सँगीत, कला, विज्ञान और शिल्प-कला की देवी माना जाता है।

भक्त लोग, ज्ञान प्राप्ति और सुस्ती, आलस्य एवं अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिये, आज के दिन देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। कुछ प्रदेशों में आज के दिन शिशुओं को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। दूसरे शब्दों में वसन्त पञ्चमी का दिन विद्या आरम्भ करने के लिये काफी शुभ माना जाता है इसीलिये माता-पिता आज के दिन शिशु को माता सरस्वती के आशीर्वाद के साथ विद्या आरम्भ कराते हैं। सभी विद्यालयों में आज के दिन सुबह के समय माता सरस्वती की पूजा की जाती है।

वसन्त पञ्चमी का दिन हिन्दु कैलेण्डर में पञ्चमी तिथि को मनाया जाता है। जिस दिन पञ्चमी तिथि सूर्योदय और दोपहर के बीच में व्याप्त रहती है उस दिन को सरस्वती पूजा के लिये उपयुक्त माना जाता है। हिन्दु कैलेण्डर में सूर्योदय और दोपहर के मध्य के समय को पूर्वाह्न के नाम से जाना जाता है।

ज्योतिष विद्या में पारन्गत व्यक्तियों के अनुसार वसन्त पञ्चमी का दिन सभी शुभ कार्यो के लिये उपयुक्त माना जाता है। इसी कारण से वसन्त पञ्चमी का दिन अबूझ मुहूर्त के नाम से प्रसिद्ध है और नवीन कार्यों की शुरुआत के लिये उत्तम माना जाता है।

वसन्त पञ्चमी के दिन किसी भी समय सरस्वती पूजा की जा सकती है परन्तु पूर्वाह्न का समय पूजा के लिये श्रेष्ठ माना जाता है। सभी विद्यालयों और शिक्षा केन्द्रों में पूर्वाह्न के समय ही सरस्वती पूजा कर माता सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है।

नीचे सरस्वती पूजा का जो मुहूर्त दिया गया है उस समय पञ्चमी तिथि और पूर्वाह्न दोनों ही व्याप्त होते हैं। इसीलिये वसन्त पञ्चमी के दिन सरस्वती पूजा इसी समय के दौरान करना श्रेष्ठ है।

सरस्वती, बसंतपंचमी पूजा
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1. प्रात:काल स्नाना करके पीले वस्त्र धारण करें। 

2. मां सरस्वती की प्रतिमा को सामने रखें तत्पश्चात कलश स्थापित कर प्रथम पूज्य गणेश जी का पंचोपचार विधि पूजन उपरांत सरस्वती का ध्यान करें 

ध्यान मंत्र 
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या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता। 
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।। 
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता। 
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।। 
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापनीं । 
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।। 
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् । 
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।2।।

आवाहन मंत्र
〰🔸〰
ॐपावका नः सरस्वती
       वाजेभिर्वाजिनीवती ।
           यज्ञं वष्टु धियावसुः ॥
          -- ऋग्वेद १ - ३ - १०

प्रणवस्यैव जननीं 
रसनाग्रस्थितां सदा । 
प्रागल्भ्यदात्रीं चपलां 
वाणीमावाहयाम्यहम् ।।

ॐ भूर्भुवः स्वः सरस्वत्यै नमः सरस्वती मावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ।

प्रतिष्ठा मंत्र
〰🔸〰
ॐ मनोजूतिर्जूषतामाज्यस्य बृहस्पतीर्यज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टँ यज्ञ ँ समिमन्दधातु विश्वेदेवास  इह मादयन्तामों3म्प्रतिष्ठ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः सरस्वत्यै नमः प्रतिष्ठापनार्थे अक्षतान समर्पयामि ।

3. मां की पूजा करते समय सबसे पहले उन्हें आचमन व स्नान कराएं। 
4. माता का श्रंगार कराएं ।
5. माता श्वेत वस्त्र धारण करती हैं इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं। 
6. प्रसाद के रुप में खीर अथवा दुध से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं। 
7. श्वेत फूल माता को अर्पण करें।
8. तत्पश्चात नवग्रह की विधिवत पूजा करें। 

बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा के साथ सरस्वती चालीसा पढ़ना और कुछ मंत्रों का जाप आपकी बुद्धि प्रखर करता है। अपनी सुविधानुसार आप ये मंत्र 11, 21 या 108 बार जाप कर सकते हैं।

निम्न मंत्र या इनमें किसी भी एक मंत्र का यथा सामर्थ्य जाप करें
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1. सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने
विद्यारूपा विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते॥

2. या देवी सर्वभूतेषू, मां सरस्वती रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

3. ऐं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां।
सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाहा।।

4. एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र
ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।

5. वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ।।

6. सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।
वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।।

7. प्रथम भारती नाम, द्वितीय च सरस्वती
तृतीय शारदा देवी, चतुर्थ हंसवाहिनी
पंचमम् जगतीख्याता, षष्ठम् वागीश्वरी तथा
सप्तमम् कुमुदीप्रोक्ता, अष्ठमम् ब्रह्मचारिणी
नवम् बुद्धिमाता च दशमम् वरदायिनी
एकादशम् चंद्रकांतिदाशां भुवनेशवरी
द्वादशेतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेनर:
जिह्वाग्रे वसते नित्यमं
ब्रह्मरूपा सरस्वती सरस्वती महाभागे
विद्येकमललोचने विद्यारूपा विशालाक्षि
विद्या देहि नमोस्तुते”

8. स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए।

जेहि पर कृपा करहिं जन जानि।
कवि उर अजिर नचावहिं वानी॥
मोरि सुधारहिं सो सब भांति।
जासु कृपा नहिं कृपा अघाति॥

9. गुरु गृह पढ़न गए रघुराई।
अलप काल विद्या सब पाई॥

माँ सरस्वती चालीसा
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दोहा 
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जनक जननि पदम दुरज, निजब मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि।।
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्टजनों के पाप को, मातु तुही अब हन्तु।।

चौपाई
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जय श्रीसकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी।।
जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी।।
रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता।।
जग में पाप बुद्धि जब होती।तबही धर्म की फीकी ज्योति।।
तबहि मातु का निज अवतारा।पाप हीन करती महितारा।।
बाल्मीकि  जी  था  हत्यारा।तव   प्रसाद   जानै   संसारा।।
रामचरित जो रचे बनाई । आदि कवि की पदवी पाई।।
कालीदास जो भये विख्याता । तेरी कृपा दृष्टि से माता।।
तुलसी सूर आदि विद्वाना । भये जो और ज्ञानी नाना।।
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा । केवल कृपा आपकी अम्बा।।
करहु कृपा सोई मातु भवानी।दुखित दीन निज दासहि जानी।।
पुत्र  करई  अपराध  बहूता । तेहि  न  धरई  चित  माता।।
राखु लाज जननि अब मेरी।विनय करऊ भांति बहुतेरी।।
मैं अनाथ तेरी अवलंबा । कृपा करउ जय जय जगदंबा।।
मधुकैटभ जो अति बलवाना । बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना।।
समर हजार पांच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा।।
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।बुद्धि विपरीत भई खलहाला।।
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी । पुरवहु मातु मनोरथ मेरी।।
चण्ड मुण्ड जो थे विख्याता । क्षण महु संहारे उन माता।।
रक्त बीज से समरथ पापी । सुर मुनि हृदय धरा सब कांपी।।
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा।बार बार बिनवऊं जगदंबा।।
जगप्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।क्षण में बांधे ताहि तूं अम्बा।।
भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई । रामचन्द्र बनवास कराई।।
एहि विधि रावन वध तू कीन्हा।सुर नर मुनि सबको सुख दीन्हा।।
को समरथ तव यश गुण गाना।निगम अनादि अनंत बखाना।।
विष्णु रूद्र जस कहिन मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी।।
रक्त दन्तिका और शताक्षी।नाम अपार है दानव भक्षी।।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा।।
दुर्ग आदि हरनी तू माता । कृपा करहु जब जब सुखदाता।।
नृप  कोपित को मारन चाहे । कानन  में घेरे  मृग  नाहै।।
सागर मध्य पोत के भंजे । अति तूफान नहिं कोऊ संगे।।
भूत प्रेत बाधा या दु:ख में।हो दरिद्र अथवा संकट में।।
नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करई न कोई।।
पुत्रहीन जो आतुर भाई । सबै छांड़ि पूजें एहि भाई।।
करै पाठ नित यह चालीसा । होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा।।
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।संकट रहित अवश्य हो जावै।।
भक्ति मातु की करैं हमेशा।निकट न आवै ताहि कलेशा।।
बंदी  पाठ  करें  सत  बारा । बंदी  पाश  दूर  हो  सारा।।
रामसागर बांधि हेतु भवानी।कीजे कृपा दास निज जानी।।

दोहा 
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मातु सूर्य कान्ति तव, अंधकार मम रूप।
डूबन से रक्षा कार्हु परूं न मैं भव कूप।।
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
रामसागर अधम को आश्रय तू ही दे दातु।।

माँ सरस्वती वंदना
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वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
        भारत में भर दे !

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
        जगमग जग कर दे !

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
        नव पर, नव स्वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे।

कुछ क्षेत्रों में देवी की पूजा कर प्रतिमा को विसर्जित भी किया जाता है। विद्यार्थी मां सरस्वती की पूजा कर गरीब बच्चों में कलम व पुस्तकों का दान करें। संगीत से जुड़े व्यक्ति अपने साज पर तिलक लगा कर मां की आराधना करें व मां को बांसुरी भेंट करें।

पूजा समय
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पंचमी तिथि अारंभ👉  29/जनवरी/2020 को 10.45 बजे से

पंचमी तिथि समाप्त👉 30/जनवरी/2020 को 01.18 बजे तक

सरस्वती पूजा का मुहूर्त सुबह 10:45 बजे से मध्यान 12:52 तक का है और इस मुहूर्त की अवधि 2 घंटे 07 मिनट तक रहेगी दोपहर तक इस पूजन को क‍िया जा सकता है। बसंत पंचमी के पूरे दिन आप अपने किसी भी नए कार्य का आरम्भ कर सकते हैं ये एक स्वयं सिद्ध और श्रेष्ठ मुहूर्त होता है।

सरस्वती स्तोत्रम्
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श्वेतपद्मासना देवि श्वेतपुष्पोपशोभिता। 

श्वेताम्बरधरा नित्या श्वेतगन्धानुलेपना॥ 

श्वेताक्षी शुक्लवस्रा च श्वेतचन्दन चर्चिता। 

वरदा सिद्धगन्धर्वैर्ऋषिभिः स्तुत्यते सदा॥  

स्तोत्रेणानेन तां देवीं जगद्धात्रीं सरस्वतीम्। 

ये स्तुवन्ति त्रिकालेषु सर्वविद्दां लभन्ति ते॥ 

या देवी स्तूत्यते नित्यं ब्रह्मेन्द्रसुरकिन्नरैः। 

सा ममेवास्तु जिव्हाग्रे पद्महस्ता सरस्वती॥ 
॥इति श्रीसरस्वतीस्तोत्रं संपूर्णम्॥ 

बसन्त पंचमी कथा
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सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं 

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